हर शक्स बदल ही गया मौसम की तरह
वो शक्स बरस ही गया बादल की तरह
अब नजरे चुराए केसे हम उनसे भला
वो शक्स सामने आ ही गया दर्पण की तरह
ये दास्ता सुनाए हम किसको जरा
वो शक्स बदल ही गया गैरो की तरह
हम घर को लौट जाएं कैसे ये बता
जब घर से निकल आए मुसाफिर की तरह