*साहस*
कठिन राहों ने जब भी रस्ता बदला,
मेरा साया तेरे साथ, चुपचाप चलता रहा।
आँखों का दरिया — तेरी यादों में सावन बन बहा,
हर बूँद में, एक दुआ थी, सिर्फ़ तेरे लिए।
हम जानकर भी अनजान बनते रहे,
कि कहीं तेरा नाम न आ जाए सवालों में।
मेरे हमदर्द की पाक मोहब्बत पे कोई उंगली न उठे,
इसलिए अपनी चाहत को भी ख़ामोश कर बैठे।
पर चाहत जो सच्ची हो —
वो कहाँ किसी मंज़ूरी की मोहताज़ होती है?
चाहने से ही तो मेरा वजूद साँस लेता है,
और शायद... उसी साहस से मैं अब भी जिंदा हूं।
_Mohiniwrites