Hindi Quote in Motivational by Manish Kumar

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बौद्धिक भीड़ और आध्यात्मिक पाखंड ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

आज जो “आध्यात्मिकता” मंचों और वीडियो क्लिपों में दिखाई देती है —
वह उतनी ही सजावटी है, जितनी खोखली।
लोग समझते हैं कि किसी ज्ञानी के पास जाकर आशीर्वाद ले लेना,
किसी पुस्तक पर हस्ताक्षर करवा लेना,
या किसी प्रवचन में भीड़ का हिस्सा बन जाना — यही साधना है।

पर यह वही पुराना खेल है, बस रूप बदल गया है।
पहले लोग मंदिरों और मठों में झुकते थे,
अब “आचार्यों” और “लाइव सेशन्स” में झुकते हैं।
पहले मूर्तियों के चरण छूते थे,
अब किसी गुरु के हाथों की तस्वीरें साझा करते हैं।

बदल केवल मंच का है — मानसिकता वही है।
लोग अब भी “किसी और” के माध्यम से मुक्ति चाहते हैं।
वे स्वयं में झाँकने से डरते हैं, क्योंकि वहाँ कोई भीड़ नहीं, कोई ताली नहीं।

ओशो ने कभी कहा था —
“मैं औषधि नहीं, दर्पण हूँ।”
पर लोग दर्पण से भी दवा माँगते हैं।
वे अपने भीतर झाँकने की बजाय यह सोचते हैं कि
“गुरु के हाथ का पानी पी लेने से” उनका रोग मिट जाएगा।
यह वही मूर्खता है जो कभी धर्मों को अंधा बना गई थी।

आज का “आध्यात्मिक उद्योग” बस शब्दों और मंचों का नया कारोबार है।
यह बौद्धिकता की भीड़ है — जहाँ जिज्ञासा है, पर तप नहीं;
जहाँ ज्ञान की बातें हैं, पर मौन का स्वाद नहीं।

सच्ची आध्यात्मिकता किसी सभा में नहीं,
बल्कि उस क्षण में जन्म लेती है —
जब इंसान अपने भीतर की भीड़ से उतरकर
एकदम अकेला रह जाता है।
जहाँ न कोई गुरु बचता है, न शिष्य।
बस एक मौन साक्षी — जो देखता है,
और उसी देखने में मुक्त हो जाता है।

भीड़ में आस्था आसान है —
मौन में सत्य कठिन।

Hindi Motivational by Manish Kumar : 112003639
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