The Last Night of That Monsoon in Hindi Short Stories by Rishabh Sharma books and stories PDF | उस सावन की आख़िरी रात

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उस सावन की आख़िरी रात

🌧️ उस सावन की आख़िरी रात

 


"वो रात आज भी मेरी धड़कनों में ठहरी है... उस सावन की आख़िरी रात अब भी ज़िंदा है कहीं।"

खिड़की से टकराती बारिश की बूँदों की आवाज़ दिल को एक अजीब सुकून दे रही थी। बाहर मौसम भी शायद रिया की उलझनों को समझने की कोशिश कर रहा था।

👩‍🎓 रिया — कॉलेज की सबसे शांत लड़की
👨‍🎓 विवेक — सबसे ज़्यादा बातूनी लड़का

दोनों के बीच कुछ था... जो प्यार जैसा तो ज़रूर था, लेकिन इज़हार कभी नहीं हुआ।


🌙 पहला भाग: वो जो कहा नहीं गया...


कॉलेज का आख़िरी दिन था। हर कोई एक-दूसरे को गले लगा रहा था। कुछ तस्वीरें खिंच रही थीं, कुछ वादे किए जा रहे थे।

रिया गेट के पास खड़ी थी, आँखें बार-बार उसी दिशा में जातीं जहाँ से विवेक आने वाला था।

वो आया। मुस्कराया। और बोला —
"क्या बात है? आज तुम कुछ ज़्यादा ही शांत लग रही हो।"

रिया ने सिर्फ इतना कहा —
"बस... कुछ यादें हमेशा के लिए समेट रही हूँ।"

विवेक ने हँसते हुए कहा,
"ऐसा क्या कर दिया मैंने जो इतना याद आऊँगा?"

रिया मुस्कराई, लेकिन उसकी आँखें जवाब दे चुकी थीं।

📝 उसने एक लिफाफा उसकी ओर बढ़ाया:
"जब बहुत अकेले महसूस करना... तब पढ़ना इसे।"


🌧️ दूसरा भाग: आख़िरी मिलन


शादी तय हो चुकी थी। रिया के घर में हल्दी, मेंहदी और संगीत की तैयारियाँ चल रही थीं।

लेकिन दिल में कुछ अधूरा था...

📩 एक चिट्ठी आई — बिना नाम के:
"आज रात पुराने कॉलेज वाले पुल पर मिलो। बस एक आख़िरी बार।"

रिया जान गई थी — ये सिर्फ एक इंसान ही हो सकता है... विवेक।

वो रात बारिशों से भीगी थी। पुराना लकड़ी का पुल और उस पर खड़ा वही चेहरा... विवेक।

उसके हाथ में वही लिफाफा था।

"आज ही पढ़ा इसे..." विवेक बोला।

"तुमने लिखा था — अगर कभी खुद को खोया हुआ महसूस करो, तो समझ लेना कि मैंने भी तुम्हें कभी नहीं पाया...। ये क्यों लिखा था रिया?"

रिया की आँखें भीग गईं।
"क्योंकि मैं चाहती थी... एक बार बस तुम मेरी आँखों में झाँको। वहाँ हमेशा से सिर्फ तुम थे।"


💔 तीसरा भाग: अधूरी विदाई


"तो क्या अब कुछ मुमकिन है?" विवेक ने धीमे से पूछा।

रिया ने नज़रें झुका लीं —
"अब कुछ नहीं। शादी है... घर है... ज़िम्मेदारियाँ हैं। और उस सब में तुम नहीं होगे।"

वो चल पड़ी। विवेक वहीं खड़ा रह गया... बिलकुल उसी जगह, जहाँ कभी उसने रिया को पहली बार देखा था।


🕰️ चौथा भाग: पाँच साल बाद...


रिया अब एक स्कूल में पढ़ाती थी। बाहरी मुस्कान के पीछे एक खालीपन था।

📅 एक दिन एक बच्चा स्कूल में दाखिला लेने आया — नाम था "विवेक मिश्रा"

"तुम्हारा नाम किसने रखा बेटा?" — रिया ने पूछा।

"पापा ने। कहते हैं ये उनके सबसे अच्छे दोस्त का नाम था।"

उस दिन स्कूल की पार्किंग में एक जाना-पहचाना चेहरा खड़ा था — विवेक।

"रिया..." उसकी आवाज़ में वही पुरानी नमी थी।

"तुम?" — रिया का गला भर आया।

"हाँ... अब भी वहीं हूँ... पर अब तुम्हारे बिना पूरा।"

"शादी नहीं की?" — रिया ने पुछा।

"नहीं। कुछ अधूरा रह गया था। और उसी अधूरेपन में ही पूरी ज़िंदगी बीत गई।"

रिया ने मुस्कुराते हुए कहा —
"कभी-कभी अधूरी कहानियाँ ही सबसे मुकम्मल होती हैं, विवेक।"


🥀 अंतिम पंक्तियाँ:


कुछ बातें कह दी जाती हैं,
कुछ बातें रह जाती हैं।
लेकिन कुछ मुलाक़ातें...
सीधे दिल में बस जाती हैं। ❤️


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