यह रही एक भावनात्मक, प्रेरणादायक और जीवन के हर रंगों से सजी एक हिंदी प्रेम कहानी — संवादों और बॉलीवुड गानों से सजी। लेखक: विजय शर्मा एरी।कहानी का नाम: "रंग तेरे मेरे प्यार के"लेखक: विजय शर्मा एरीभाग 1: पहली मुलाक़ात – वो बारिश की शाम"शिवा! जल्दी कर यार, क्लास छूट जाएगी!" राघव ने आवाज़ लगाई।शिवा, दिल्ली यूनिवर्सिटी में फाइन आर्ट्स का स्टूडेंट था। रंगों से उसे इश्क़ था, और दुनिया की भीड़ में वो अपनी तन्हाई तलाशता रहता था। कॉलेज के कैंपस में बारिश की पहली बूँदें गिर रही थीं, और वो बस स्टॉप पर खड़ा स्केच बना रहा था।तभी एक लड़की भागती हुई आई – हाथ में छाता, चेहरे पर गुस्सा और आँखों में कुछ तलाशती हुई मासूमियत।"ओह गॉड! बस निकल गई!" लड़की ने गुस्से से कहा।शिवा ने बिना देखे जवाब दिया, "कलर ब्लेंड करने में भी समय लगता है, ज़िंदगी भी उसी तरह है… सब तुरंत नहीं मिलता।"लड़की पलटी और उसे देखती रह गई।"तुम फाइन आर्ट्स में हो ना?" उसने पूछा।"हाँ, और तुम?""मैं अनु हूँ, लॉ स्टूडेंट। लेकिन रंगों से प्यार है मुझे भी।""तो फिर दोस्ती हो गई?" शिवा ने मुस्कुराते हुए हाथ बढ़ाया।🎵 “तेरा नाम इश्क़, मेरा नाम इश्क़, बस चल पड़ा हूँ मैं तेरे पीछे-पीछे…” (फिल्म: टशन)भाग 2: प्यार के रंगसमय बीतता गया। अनु और शिवा की दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों के ख्वाब भी रंग-बिरंगे थे। अनु कानून की किताबों में खोई रहती, तो शिवा कैनवस पर उसे हर रोज़ पेंट करता।एक दिन, कैंपस के एक कोने में:अनु (शरारत से): "अगर मैं कभी चली जाऊं, तो क्या करोगे?"शिवा: "तुम्हारे बिना हर रंग फीका है।"अनु: "क्या सच में मुझसे इतना प्यार है?"शिवा: "तुम पर एक पूरा कैनवस बर्बाद कर चुका हूँ।"🎵 “तू मिले, दिल खिले, और जीने को क्या चाहिए…” (फिल्म: क्रिमिनल)भाग 3: संघर्ष और जुदाईसब कुछ अच्छा चल रहा था, जब अनु के पापा को ये रिश्ता पसंद नहीं आया। एक आम कलाकार को वकील बेटी के लायक नहीं समझा गया।"अनु, ये तुम्हारे करियर का समय है, किसी पेंटर के साथ ज़िंदगी बर्बाद मत करो!" – उसके पिता ने सख्त लहजे में कहा।अनु ने शिवा को मिलने बुलाया।अनु: "शिवा, पापा मान नहीं रहे। वो कहते हैं तुम्हारे पास स्थिर जीवन नहीं।"शिवा: "मैं जानता हूँ अनु, लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ बड़ा करूँगा, वादा करता हूँ।"अनु (रोते हुए): "अगर मैं चली जाऊँ, तो क्या होगा?"शिवा (धीरे से): "फिर शायद मैं अपने रंगों में ही खो जाऊँगा…"🎵 “तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…” (फिल्म: आँधि)अनु को मजबूरी में लखनऊ भेज दिया गया।भाग 4: रंगों में इंकलाबअनु के जाने के बाद शिवा टूट गया। मगर उसने हार नहीं मानी। उसने दिल्ली की सड़कों पर पेंटिंग बेचना शुरू किया। एक आर्ट गैलरी ने उसकी कला को पहचान दी।कुछ वर्षों में वो इंडिया का जाना-माना मॉडर्न आर्टिस्ट बन गया।एक आर्ट एग्जीबिशन में, अनु अपनी लीगल फर्म की तरफ़ से आई थी। उसने देखा — उस दीवार पर बनी पेंटिंग में वही मुस्कान थी, जो कभी उसके साथ बारिश में खड़ी थी।अनु: "शिवा...?"शिवा: "हाँ, लेकिन अब ये सिर्फ नाम नहीं… पहचान है।"🎵 “फिर भी तुमको चाहूँगा, फिर भी तुमको चाहूँगा…” (फिल्म: हाफ गर्लफ्रेंड)भाग 5: दूसरा मोड़ – मिलन या विछोड़?अनु अब सशक्त थी, सफल वकील थी, मगर दिल तो वहीं था – शिवा के साथ।अनु: "क्या हम फिर से शुरुआत कर सकते हैं?"शिवा (थोड़ा चुप): "शायद अब डर नहीं रहा, क्योंकि अब तुम्हारे बराबर खड़ा हूँ।"अनु ने उसका हाथ थाम लिया।🎵 “रातें लंबी सी लगने लगी हैं, बातों में तेरी मैं खोने लगी हूँ…” (फिल्म: रांझणा)भाग 6: ज़िंदगी के और रंगअब दोनों ने मिलकर एक NGO खोली – रंग–ए–ज़िंदगी। जहां गरीब बच्चों को कला और कानून की शिक्षा दी जाती थी।शादी की तारीख तय हुई। पूरी दिल्ली की मीडिया उनके प्रेम को ‘कलम और कूची की क्रांति’ कहने लगी।शादी के दिन अनु के पिता ने आकर कहा:पापा: "शिवा, मैंने ग़लती की। कला भी कानून जितनी महान होती है। आज मुझे तुम पर गर्व है।"🎵 “माही वे, माही वे… प्यार है, तो कहना क्या…” (फिल्म: कल हो न हो)अंतिम रंग: बुढ़ापे की गुलाबी यादेंसमय बीत गया। शिवा और अनु अब बुज़ुर्ग हो चुके हैं, लेकिन हर शाम वो छत पर बैठकर स्केचिंग और किताबों की बातें करते हैं।शिवा (अनु का हाथ थामकर): "तुम्हारे बिना मेरी ज़िंदगी एक अधूरी पेंटिंग होती…"अनु (मुस्कुरा कर): "और तुम्हारे बिना मेरा कानून सूना होता…"🎵 “ऐ ज़िंदगी गले लगा ले, हमने भी तेरे हर एक ग़म को गले से लगाया है…” (फिल्म: सदमा)प्रमाण पत्र:नाम: विजय शर्मा एरीपता: अमृतसर ,पंजाबलेखक का वक्तव्य: यह कहानी उनके लिए है जिन्होंने जीवन में प्यार को हर रंग में जिया है – आँसू, मुस्कान, संघर्ष और सफलता के साथ।