VISHAILA ISHQ - 22 in Hindi Mythological Stories by NEELOMA books and stories PDF | विषैला इश्क - 22

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विषैला इश्क - 22

(आद्या रात को रूचिका के कमरे में पहुँचती है, जहाँ उसकी परछाई की जगह आइने में नागरानी प्रकट होती है और उसे सम्मोहन में डालकर सब भुला देती है। सुबह आद्या अजीब-सी खाली मुस्कान के साथ उठती है, फिर बाथरूम में टूटे आइने और नागलिपि मिलने पर सब दहशत में आ जाते हैं। अस्पताल में रिपोर्ट सामान्य रहती है, पर आद्या बेहोश होकर सिर्फ “आईना” शब्द बड़बड़ाती है। नागलोक में खुलासा होता है कि नागरानी ने ऐसा मंत्र किया है जिससे आद्या अपनी नाग शक्तियाँ, नागधरा और वनधरा लोक से जुड़ी सारी यादें खो चुकी है। अब आगे) 

अतुल्य का सच

अस्पताल की खिड़की पर बैठी आद्या शून्य में ताक रही थी। उसकी आँखों में कोई चमक नहीं थी, बस एक खालीपन। तभी दरवाज़ा खुला और अतुल्य भागता हुआ आया।

“यह क्या हुआ मेरी प्यारी बहन!” वह घबराकर बोला।

आद्या ने होंठों पर हल्की मुस्कान लाई—“मैं ठीक हूँ, भैया।”

“नहीं,” अतुल्य की आवाज़ में बेचैनी थी, “अब तू होस्टल में नहीं रहेगी। आज ही हम अंकल-आंटी के घर चलेंगे।”

आद्या की मुस्कान कुछ पल को ठहर गई। उसकी आँखें नमी से भर उठीं- “सच, भैया?”

अतुल्य ने हामी भरी और तुरंत डिस्चार्ज पेपर भर दिए।

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होस्टल से विदाई

जब वह आद्या को लेकर होस्टल लौटा, तो सब उसे घेरकर पूछने लगे। अतुल्य ने गंभीर स्वर में कहा—

“आद्या की तबीयत ठीक नहीं है, मैं उसे कुछ दिनों के लिए घर ले जा रहा हूँ।”

वार्डन और प्रिंसिपल ने कोई आपत्ति नहीं की, लेकिन सबके दिलों में डर बैठा था।

“बाथरूम में बेहोश होना… और वो टूटा आइना,” सब एक-दूसरे को देख रहे थे।

आद्या कुछ भी न बोल सकी। बस चुपचाप अतुल्य के साथ बाहर निकल गई।

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कार का सन्नाटा

कार की खिड़की से बाहर धुंधले पेड़ पीछे भाग रहे थे। अंदर सन्नाटा पसरा था।

अतुल्य ने अपनी बहन की ओर देखा।

वो बाहर ताक रही थी—बिना किसी प्रतिक्रिया के। न कोई सवाल, न कोई शरारती हंसी, न वो खिलखिलाहट… जिसने कभी पूरे घर को रोशन किया था।

“ये वो आद्या नहीं है,” अतुल्य का दिल डूब गया।

उसे याद आया—कुछ दिन पहले सड़क पर अचानक एक साँप आया था। कैसे आद्या ने मुस्कुराकर उसे हटाया था।

उसकी आँखों में न डर था, न घबराहट।

और आज?

एक बाथरूम में साँप का भ्रम, और वो बेसुध?

“नहीं, ये मेरी बहन नहीं… किसी ने इससे सब छीन लिया है।”

अतुल्य का गला भर आया।

“गलती मेरी है… मैंने इसे अकेला छोड़ दिया। अब नहीं। अब यह मेरे पास ही रहेगी।”

उसने स्टेयरिंग कसकर पकड़ा।

“अब आद्या जंगल लौटेगी। अंकल-आंटी और आद्या—सब मेरे साथ रहेंगे। इसे अब सिर्फ़ प्यार चाहिए, और मैं उसे वो दूँगा।”

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नागलोक की हलचल

उसी वक़्त नागलोक में हलचल मच गई। एक सेवक भागता हुआ रानी के पास पहुँचा।

“महारानी, अनर्थ हो गया! नाग रक्षिका के प्राण संकट में हैं।”

नाग रानी ने ठंडी हंसी भरी।

“वो अब नाग रक्षिका नहीं।”

एक वृद्ध नाग साधु ने तर्क किया—

“नहीं महारानी। उसकी स्मरण शक्ति लौटानी होगी। विभूति अब बूढ़ी हो चुकी है। समय आने पर आद्या को ही नाग रक्षिका बनना होगा।”

रानी मुस्कुराई—

“अगर वो योग्य है, तो बिना शक्तियों के भी साबित करेगी। कोई सहायता मत करना। जो होना है, उसे अकेले झेलना होगा।”

सभा सन्नाटे में डूब गई। सब सहमत नहीं थे, मगर कोई विरोध करने का साहस न कर सका।

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जंगल का घर

कार जब पुराने क्वार्टर के पास रुकी, तो आद्या की आँखों में चमक लौट आई।

“ये मेरा घर है, भैया!”

वो कार से बाहर निकली और दौड़ती हुई घर की ओर गई। आँसुओं और मुस्कान का संगम उसके चेहरे पर था।

सनी दरवाज़े पर खड़ा था। उसकी आँखों में हैरानी थी।

“पापा!” आद्या दौड़कर उससे लिपटने लगी।

लेकिन तभी उसकी नज़र बाईं ओर गई।

निशा ज़मीन पर पड़ी थी। उसका शरीर कांप रहा था, जैसे अदृश्य ज़ंजीरों में जकड़ा हो।

उसकी चमकती त्वचा पर गरुड़ राख गिर रही थी, जो उसे जला रही थी।

“मम्मी!” आद्या चीखते हुए उसकी ओर दौड़ी।

लेकिन अचानक—धड़ाम!

वो अदृश्य दीवार से टकराकर ज़मीन पर गिर गई। माथे से खून बह निकला।

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तांत्रिक का आगमन

जंगल की छाँव से तांत्रिक साधु निकला—भयानक हंसी के साथ।

“फिर आ गया तू!” सनी गरजा। “छोड़ मेरी निशा को, वरना…”

पर तांत्रिक के चेलों ने उसे घेर लिया।

अतुल्य की आँखों में क्रोध भड़क उठा।

“छोड़ मेरे परिवार को! वरना एक भी जिंदा नहीं बचेगा!”

उसने दहाड़ते हुए चेलों पर धावा बोला। कुछ ही क्षणों में तीन-चार चेले धराशायी हो गए।

लेकिन तभी तांत्रिक ने गरुड़ राख का लोटा उसकी ओर फेंक दिया।

धुआँ उठा… चीख गूंजी… और सबकी आँखों के सामने—

अतुल्य का शरीर कांपने लगा।

उसकी त्वचा पर नीली चित्तियाँ उभर आईं।

आँखें सांप जैसी चमकने लगीं।

और देखते ही देखते—वो नाग मानव बन गया।

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सच का तूफ़ान

सन्नाटा।

सनी पीछे हट गया। उसकी आँखें फटी रह गईं।

“इतना बड़ा धोखा? तू… तू नाग मानव है?”

अतुल्य घुटनों पर गिर पड़ा।

“नहीं अंकल… मुझे पता ही नहीं था… मैं नहीं जानता था कि मैं नाग मानव हूँ…”

सनी की आँखें क्रोध से लाल थीं।

“तूने आद्या को जानबूझकर यहाँ लाया। तूने हम सबके साथ विश्वासघात किया!”

“नहीं!” अतुल्य की आवाज़ टूटी हुई थी।

“मैं तो बस उसे घर लाना चाहता था… यही उसका सपना था। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं…”

निशा की आँखों में आग थी। उसकी साँसें भारी हो रही थीं। उसकी नाग शक्ति राख से भड़क रही थी।

उसने काँपती आवाज़ में कहा—

“अगर आद्या को कुछ हुआ… तो न एक साँप बचेगा, न कोई तांत्रिक, न कोई गद्दार।”

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अनसुलझे सवाल

आद्या सब भूल चुकी थी।

नागलोक, शक्तियाँ, नागमणि… सब धुंधला।

लेकिन अब रहस्य और गहरा हो गया था—

1. अतुल्य कौन है? क्या सच में उसे अपने नाग मानव होने का ज्ञान नहीं था?

2. क्या तांत्रिक आद्या को मार पाएगा?

3. क्या आद्या बिना शक्तियों के लड़ पाएगी या हार मान लेगी?

जानिए आगे — “विषैला इश्क”