(नाग रानी ने गलती से आद्या की सारी नाग शक्ति और यादें मिटा दी और वह अस्पताल पहुंच गयी। अतुल्य आद्या को परिवार से मिलाने सनी के जंगल वाले क्वार्टर ले जाता है, यह भूलकर कि निशा और सनी ने आद्या को वहां लाना मना किया था। वहां पर तांत्रिक हमला कर देता है। अब आगे)
सनी का बलिदान
आद्या सब कुछ भूल चुकी थी। नाग लोक, शक्तियाँ, नागमणि… सब धुंधला था।
लेकिन…एक चीज़ अब भी बाकी थी —
"नारी शक्ति" — वो जन्मजात हिम्मत, जो माँ के लिए प्रलय से लड़ सकती है।
धड़ाम!
आद्या उठी — ज़ोर से। उसकी आँखों में डर नहीं, आग थी। उसने सामने खड़े दो चेलों को एक ही वार में धूल चटा दी।
तांत्रिक गुर्राया — "रुक जा!" और उसने आद्या पर भी गरुड़ की राख डाल दी।
लेकिन कुछ नहीं हुआ।
"क्या...?" तांत्रिक अचंभित था। "ये मुमकिन नहीं…"
आद्या नहीं रुकी। उसने देखा — अतुल्य भैया नाग रूप में दर्द से तड़प रहा था।
वो भागी। बगीचे में रखा पानी उठाया और अतुल्य के ऊपर डाल दिया।
"छर्र्र..." राख पिघलने लगी। अतुल्य की साँसे थोड़ी सामान्य हुईं। और वो… क्रोध से दहाड़ उठा।
"अब बहुत हुआ!" अतुल्य ने झपटकर सनी को जकड़े चेलों को उड़ा दिया।
सनी थोड़ा लड़खड़ाया, लेकिन वापस खड़ा हुआ — उसकी आँखों में आग थी।
इधर — आद्या भागकर निशा के पास पहुँची —लेकिन फिर से टकरा गई…एक अदृश्य दीवार… अब भी खड़ी थी।
वो चीख पड़ी —"क्यों? क्यों मैं अपनी मम्मी तक नहीं पहुँच पा रही?"
एक दो चेले उस पर झपटे, लेकिन सनी ने उन्हें ज़मीन से चिपका दिया।
आद्या की आँखें छलक उठीं —"भैया! पापा! मां के लिए मुझे क्या करना होगा?"
तभी — एक काली, घिनौनी हँसी गूंजी। तांत्रिक — सिंहासन पर बैठा — अपनी छड़ी बजा रहा था।
"अगर अपनी माँ की सलामती चाहती है..." वो साँप की तरह फुफकारा। "तो खुद को मेरे हवाले कर दे।"
सन्नाटा।
सनी चिल्लाया —"हरगिज़ नहीं!"
अतुल्य दहाड़ा —"तू आद्या को छू भी नहीं पाएगा!"
लेकिन आद्या — चुप थी। उसकी आँखें तांत्रिक की आँखों में थी। वो डरी नहीं, डगमगाई नहीं। उसने एक गहरी साँस ली। "अगर मेरी मम्मी की जान मेरी वजह से जा रही है…"उसकी आवाज़ फौलाद जैसी थी। "तो हाँ — मैं तैयार हूँ।"
अतुल्य दर्द से चीखा —"क्या चाहिए तुझे? तूने मुझे क्यों नाग बना दिया?!"
तांत्रिक उसकी ओर झुका —"तू तो खुद ही नाग था, पर तेरी यादों पर परदा डाल दिया गया था।
तू तो सिर्फ़ मोहरा था, जिसके सहारे मैं इसे को यहाँ तक खींच लाया।"
सन्नाटा छा गया।
सनी पीछे हटकर दीवार से टिक गया। उसके चेहरे पर पछतावे की लकीरें साफ़ थीं। "शायद अतुल्य ने कुछ नहीं किया..."वो मन ही मन बुदबुदाया।
उसे याद आया —कैसे अतुल्य ने हमेशा आद्या की रक्षा की, कैसे उसने सबके खिलाफ जाकर उसे होस्टल से निकाला…
सनी की आँखें नम हो गईं। वो चीखा — "माफ़ कर दो मुझे, बेटा… मुझे समझ नहीं आया!"
आद्या स्तब्ध थी। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
उसने देखा — अपने सामने खड़ा भाई, जिसका नाग रूप उसे पराया नहीं, बल्कि अपना सा लगा।
"क्यों नहीं डर लग रहा मुझे? क्यों नहीं हैरानी हो रही?" उसने खुद से पूछा।
और तभी —तांत्रिक ने निशा की ओर इशारा किया। "ये है तेरी माँ, जिसने मुझसे तुझे छिपाया,
तेरे भाग्य को रोका… अब देख, कैसा रो रही है ज़मीन पर!"
उसकी हँसी जंगल को कंपा गई।
"आज तू मरेगी, लडकी!" वो आगे बढ़ा।
लेकिन तभी — "धड़ाम!" अतुल्य की पूँछ ने उसे ज़ोर का धक्का दिया। वो कुछ कदम पीछे लुढ़क गया।
"तू मेरी बहन की ओर नहीं बढ़ सकता जब तक मैं जिंदा हूँ!" तांत्रिक गुस्से से काँप उठा। उसने गरुड़ की राख उठाई और अतुल्य की ओर फेंकने ही वाला था कि—"धप्प!" आद्या ने बिजली जैसी फुर्ती से उसका हाथ झटक दिया। तांत्रिक ने जैसे ही आद्या की ओर हाथ बढ़ाया—"रुक जा!"
सनी दहाड़ा और उस पर झपट पड़ा।"आद्या तक पहुँचने के लिए तुझे मेरी लाश से गुजरना होगा!"
तांत्रिक हँसा —"ठीक है।"उसने एक इशारा किया।
गर्जन करते हुए एक विशाल गरुड़ आकृति वाला पक्षी आकाश से उतरा और पलक झपकते ही सनी को अपने पंजों में पकड़कर ऊपर उड़ गया। उसे एक ऊँचाई से लटका दिया — जैसे फाँसी पर झूलने वाला हो।
अतुल्य लपका उसे बचाने — लेकिन गरुड़ को छुते ही उसकी त्वचा जलने लगी।"आह!"वह दर्द से पीछे हट गया।
आद्या चीख पड़ी —"पापा!"
वह खुद को बेबस पा रही थी… लेकिन उसने खुद को सँभाला।
"तू चाहता क्या है?" उसने आँखों में आँसू लिए पूछा। "मेरे परिवार ने क्या बिगाड़ा है तेरा?"
तांत्रिक ने एक कुटिल हँसी हँसी —"तेरी बलि।"
आद्या चिढ़कर बोली — "मत कहना कि तू अमर हो जाएगा! सच बोल।"
तांत्रिक की आँखों में जुनून उभरा —"तेरी बलि से मैं तुझे नहीं, तेरे नाग भाई को वश में करूँगा। वो है असली रत्न — मेरा भविष्य का सबसे शक्तिशाली गुलाम।"
अतुल्य चौंका — लेकिन तुरंत समझ गया। आद्या अपनी आँखों से उसे इशारे कर रही थी… कुछ ऐसा जो भाई-बहन की अटूट समझ ही जान सकती थी।
अतुल्य ने अपनी पलकें झपकाईं। "मैं समझ गया बहन।"
अगले ही पल —"धड़ाम!" आद्या ने अपनी पूरी शक्ति से एक भारी पत्थर उड़ता हुआ उस गरुड़ पर दे मारा। पक्षी की चीख फिज़ाओं में गूँज गई। उसने संतुलन खोया और जैसे ही सनी को गिराया — अतुल्य ने अपनी नाग-पूँछ से उसे पकड़ लिया।
"थाम लिया पापा को!" उसने राहत की साँस ली।
सनी को धीरे-धीरे ज़मीन पर रखा गया।
अब एक साथ —अतुल्य और सनी — पत्थरों, लकड़ियों और नाग-शक्ति से उस पक्षी पर टूट पड़े।
गरुड़ तड़पता हुआ आकाश में गुम हो गया। साथ ही चेलों में भगदड़ मच गई।
लेकिन तभी — "ॐ क्षिप्रं पच पच..."तांत्रिक ने एक खतरनाक मंत्र पढ़ा और उसकी ऊर्जा अतुल्य की ओर फेंकी।
सनी बीच में कूद पड़ा। "बचो अतुल्य!"और वह मंत्र की चपेट में आ गया।
सनी की देह काँपने लगी। आँखें पलटने लगीं। वह ज़मीन पर गिरा — तड़पते हुए।
"पापा!" आद्या चीख पड़ी।
तांत्रिक, जो अब घायल था, अपनी हार जान चुका था।
सबका ध्यान सनी पर था — और उसी अफरा-तफरी में वो भाग खड़ा हुआ।
जैसे ही तांत्रिक की पकड़ टूटी, निशा मुक्त हो गई। वो दौड़ती हुई सनी के पास पहुँची।
"सनी! मेरी बात सुनो, उठो!" लेकिन सनी की साँसे थम चुकी थीं।
निशा की चीख जंगल को चीर गई। "नहीं!"
अतुल्य वहीं बैठ गया — बेसुध।
ताकतवर नाग मानव, जो अब टूट चुका था।
आद्या की आँखों में आँसू थे ।
"अंक...ल!" अतुल्य की चीख आसमान को चीरती चली गई।
वो वहीं ज़मीन पर बैठ गया…एक नाग मानव… लेकिन अब बस एक टूट चुका बेटा।
"मुझे माफ़ कर दो अंकल… माफ़ कर दो…"
उसकी रुलाई फूट पड़ी। अचानक उसका शरीर काँपने लगा —नाग रूप छूटता चला गया। वो फिर से इंसान बन चुका था।लेकिन आज वह इंसान पहले जैसा नहीं रहा।
वो सनी की निस्संजान देह को अपनी बाँहों में उठाता है। "आपने मुझे अपना बेटा माना था… और मैं आपको खो बैठा…"
उसने जीप का दरवाज़ा खोला —और धीरे से सनी को पीछे की सीट पर लिटाया।
निशा वहीं गिरी थी —जहाँ उसका जीवन बिखर गया था।
"माँ… उठो…" आद्या फूट पड़ी। पर निशा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वो साँसें ले रही थीं… लेकिन सिर्फ़ देह सांसें ले रही थी।आत्मा तो शायद उसी पल सनी के साथ जा चुकी थी।
अतुल्य ने पीछे मुड़कर देखा —"जल्दी चलो! शायद डॉक्टर कुछ कर पाएँ!"
आद्या ने काँपते हाथों से निशा को उठाया, और लड़खड़ाते क़दमों से वह भी जीप में सवार हुई।
जीप की रफ़्तार तेज़ थी — लेकिन मौत की रफ़्तार तेज़तर।
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वन अस्पताल, कुछ देर बाद…
डॉक्टर बाहर आया। चेहरे पर वही भावशून्यता जो कोई मौत का पैग़ाम लाता है।
"आई एम सॉरी…हम उन्हें नहीं बचा सके।"
"नहीं…!" अतुल्य की आँखें सुन्न हो गईं।
"पापा…!" आद्या ने चीख मार दी।
और निशा? जो बस बैठी रही…एकदम शांत… फिर जैसे झटका खाकर ज़मीन पर गिर पड़ी।
"माँ!" आद्या दौड़ी। पर अब कोई होश में नहीं था।
डॉक्टरों ने निशा को उठाया —"सीवियर ट्रॉमा। शायद कोमा में चली गई हैं।"
अस्पताल के उस कोने में मातम था…जहाँ एक परिवार उजड़ गया।
और जंगल? हर पेड़, हर पत्ता —उस विलाप का गवाह बन गया।
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अस्पताल का कोना – एक नई जिम्मेदारी
डॉक्टर ने धीरे से कहा, " निशा जी का इलाज लंबा चलेगा… खर्चा भी…"
अतुल्य ने बेसुध हो कहा,"पैसे की चिंता मत कीजिए। बस… मेरी माँ का ध्यान रखिए।" उसकी आवाज़ में अब वो मासूमियत नहीं थी —अब उसमें ज़िम्मेदारी थी… एक बेटे की।
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श्मशान घाट — सनी की चिता
गोधूलि की रौशनी में लकड़ियाँ सनी के शरीर को धीरे से अपने ऊपर ले रही थीं।
हर चेहरा नम था… लेकिन आद्या की आँखें नफ़रत, दुःख और चट्टान जैसी दृढ़ता से भरी थीं।
वो एक पल को पीछे मुड़ी —"भैया, आप आएंगे न?"
अतुल्य दूर खड़ा था, सिर झुकाए।
"मैं नहीं कर सकता… मैं इस लायक नहीं… मैंने उन्हें खो दिया…"
उसकी आवाज़ काँप रही थी। आद्या मुस्कुरा दी — वो मुस्कान जो आँसुओं से भीगी थी।
"भैया… मम्मी-पापा ने आपको जन्म नहीं दिया, लेकिन आपको अपनाया था। और मैं तो बचपन से जानती हूँ… आप इस घर के सबसे बड़े बेटे हैं। आप नहीं आएंगे तो कौन आएगा?"
अतुल्य ने आँखें उठाईं —आद्या का चेहरा अपने पापा की तरह शांत और मज़बूत था।
वो लड़खड़ाते क़दमों से आया… और आद्या के गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगा।
अतुल्य ने पूछा "दादी और बुआ नहीं आई। "
आद्या ने गहरी सांस लें कहा "उनका नंबर नहीं लग रहा। घर का और पड़ोस का सब जगह कोशिश की। अब और इतंजार करना ठीक नहीं।"
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अंतिम विदाई
फिर उसने आद्या का हाथ थामा —दोनों ने साथ मिलकर सनी के क्रियाकर्म की सारी विधियाँ पूरी कीं।
जब आग की पहली लपट सनी के शरीर को छू रही थी, तो आद्या ने आँखें बंद कर लीं और मन ही मन कहा —"मैं वादा करती हूँ…इस बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दूंगी। मैं पापा की मौत का बदला जरूर लूंगी ।"
1. क्या आद्या बिना नागशक्ति के अपने पिता की मौत का बदला ले पाएगी या उसे अपनी खोई हुई नागरक्षिका की शक्तियाँ फिर से पाना होंगी?
2. अतुल्य का नागरूप और उसका सच—क्या आद्या के लिए वरदान बनेगा या तांत्रिक के हाथों सबसे बड़ा हथियार?
3. निशा का कोमा—क्या वो कभी होश में आकर आद्या को नागधरा और उसकी असली पहचान की सच्चाई बता पाएंगी?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क".