Kabhi Yadoon Mein Aaon - 9 in Hindi Crime Stories by Vartikareena books and stories PDF | कभी यादो मे आओ - 9

Featured Books
  • মহাভারতের কাহিনি – পর্ব 131

    মহাভারতের কাহিনি – পর্ব-১৩১ অর্জুনের স্বপ্ন দর্শনের কাহিনি  ...

  • LOVE UNLOCKED - 6

    Love Unlocked :6Pritha :মোটামুটি সবকিছু গুছিয়ে নিয়ে মেঘার...

  • ঝরাপাতা - 13

    ঝরাপাতাপর্ব - ১৩- "আমি যেটা আশঙ্কা করেছিলাম, আপনাদের জানিয়ে...

  • অসম্পূর্ণ চিঠি - 1

    কলকাতার লোকাল ট্রেন সবসময়ই ভিড়ভাট্টায় ভর্তি। দুপুরের ট্রে...

  • Mission Indiana - 1

    মিশন ইন্ডিয়ানা****************পর্ব - 1********Come Back To E...

Categories
Share

कभी यादो मे आओ - 9

कभी यादों में आओ  ❤️ ( मुक्ति ) 




*********
अभिक लगातार एसिपि को कॉल कर रहा था पर हर बार उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था । अब अभिक को चिंता होने लगी थी क्योंकि उसे अपने लोगों से पत चला था कि आग्नेय का कोई पता नहीं है । अभिक पुलिस स्टेशन भी गया लेकिन वहां भी उसे ये ही पता चला कि तीन दिन से एसिपि आया ही नहीं है ..! 

वो एसिपि के घर भी गया पर वहा पर भी यही जवाब मिला कि एसिपि तीन दिन से आया ही नहीं ...! 

अभिक परेशानी से इधर उधर चक्कर काटने लगा तभी उसका फोन बजने लगा । उसने बिना देरी किए फोन उठाया अभिक कुछ बोलता कि सामने से कुछ कहा गया जिसके बाद उसके बोल उसके मुंह में ही रह गए और फोन हाथ से छुट जमीन पर गिर पड़ा ....! 



*********
मुम्बई का एक हाईवे जिस पर एक कार उल्टी पड़ी हुई थी उस कार से धुआं निकल रहा था । कार का एक हिस्सा टुट कर दुसरी तरफ पड़ा था तो दुसरे हिस्से को भी बहुत शती पहुंची थी ! 

उस हिस्से के चारों तरफ पुलिस ने बैरियर लगा दिए थे पुरा एरिया सील कर दिया था । जगह लोगों कि भीड़ से भरी पड़ी थी जिस कारण कुछ भी देख पाना मुश्किल था । इसी भीड़ में एक शख्स खड़ा था जिसकी आंखों में एक चमक नजर आ रही थी । वो धीरे धीरे आगे बड़ने लगा और जैसे ही बैरियर क्रोस कर अंदर जाने को हुआ कि एक पुलिस ऑफिसर ने उसे रोक दिया । 

उसने पुलिस ऑफिसर को देखा और आंखों कि पुतलीयो को गोल घुमा लिया ‌। वो ऑफिसर काम में व्यस्त था इसलिए उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर काश उसने ध्यान दिया होता...! 


वो शख्स अपनी नजरें कार कि तरफ कर लेता है धीरे-धीरे  उसका हाथ उसकी पेंट कि जेब में जा रहा था । उसने एक पिन निकाल ली और ऑफिसर के करीब चला गया । ऑफिसर ने मुड़कर उस शख्स को देखा तो उसने अपनी आंखे छोटी छोटी कर ली । शख्स ने ना में गर्दन हिलाई और उसे छुते हुए निकल गया । 

थोड़ी देर बाद वो ऑफिसर नीचे गिर पड़ा और उसके मुंह से खून निकल आया ,आंखें दर्द से फटी जा रही थी ..! उसके हाथ पैर कांप रहे थे उसे अपने सीने में तेज दर्द महसूस हो रहा था ‌‌।वो  झटपटा रहा था तड़प रहा था। 

उसके आसपास भीड़ जमा हो गई थी सब सन्न रह गए थे । किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था लोग यही समझने में लगे थे कि अभी तो ये आदमी खड़ा था काम कर रहा था ये अचानक से इसे क्या हो गया । हर कोई कुछ ना कुछ बोल रहा था पर किसी ने भी ऑफिसर को हॉस्पिटल ले जाने कि नहीं सोचा ! 
सब उस ऑफिसर को तड़पते देख बस हाए... हाए कर रहे थे !  

तभी एक साथ सारी भीड़  चुप हो गई हर ओर सन्नाटा छा गया ।


सामने पड़ा वो ऑफिसर अब शांत हो चुका था उसमें कोई हलचल नहीं हो रही थी ‌। बस एक आखरी बार उसे खून कि उल्टी हुई और एक भयावह चीख के साथ वो शांत हो गया ....! 



*****
एप्सन हॉस्पिटल
( काल्पनिक ) 

एक काली कार हॉस्पिटल के सामने आकर रूकी । उसमें से अभिक जल्दबाजी में बाहर निकला और भागते हुए अंदर चला गया । वो एक डॉक्टर के केबिन के बाहर जाकर ही रूका उसने गहरी सांस ली और अंदर चला गया । 

डॉ ," आराम से मिस्टर कश्यप ये हॉस्पिटल है आपका घर नहीं जो आप ऐसे दौड़ रहे थे । "

अभिक ने डॉ को देखा लेकिन कुछ कहा नहीं । डॉ उसके कुछ ना बोलने पर अपना सर हिला देते हैं और उसे अपने पीछे आने का बोल बाहर निकल जाते हैं । 
अभिक उनके पिछे जाता है । 

डॉ एक कमरे के सामने आकर रुक जाते हैं । 
डॉ,," हम नहीं जानते वो आग्नेय ही है पर जो शख्स मिला है वो पुलिस ऑफिसर जरूर है ..! आप पहेचान करले कि कौन है क्योंकि हमें समझ नहीं आ रहा बॉडी को देख कुछ भी ...! "

बॉडी सुन अभिक के हाथ पैर ठंडे पड़ गए थे । उसका अंदर जाने का मन ही नहीं हो रहा था । वो ये सोचना भी नहीं चाहता था कि वो बॉडी आग्नेय ( एसिपि ) कि होगी । 
अभिक ने खुद को नियंत्रित किया और मुर्दाघर का दरवाजा खोल दिया । दरवाजा खुलते ही कई गंद उसकी नाक से टकराई अभिक ने अपना रूमाल अपनी नाक पर रख लिया था । अब तो उसका ओर मन नहीं कर रहा था अंदर जाने का ..! 
अभिक को अंदर ना जाते देख डॉक्टर ने आगे बढ़कर उसे हल्का सा हिल दिया क्योंकि अभिक बिल्कुल स्थिर खड़ा था ना वो अंदर जा रहा था ना ही बाहर आ रहा था । डॉ के हिलाने से अभिक अपने चेतना में वापस लोटा और मुंह पर रूमाल रखें हुए आगे बढ़ गया । 

उसने चारों तरफ देखा वहां कई सारे बेड थे जिनपर मानव शव रखें हुए थे वो हर एक शव को देख रहा था । सबके सब इस मुर्दाघर में लावारिस पड़े थे । इन शवों को ले जाने वाला कोई नहीं था । कितना दुखद है ये देखना और सोचना कि  कभी इन शवों में भी जान थी जो आज यूं इस तरह निशप्राण पड़े हैं ! 
जब तक ये शरीर जीवित था तब तक इसके अपने भी थे जो इसका ख्याल रखते होंगे या शायद कोई नहीं था जिस कारण ये इस प्रकार यहां लावारिस पड़े हैं ...! 

इन सब ख्यालों में डुबा अभिक हर एक मुर्दे को देख रहा था कि तभी उसकी नज़र एक शरीर पर पड़ी ! उसने चादर हटाई और उस शरीर का चेहरा देखा । 
ये चेहरा देख कर अभिक लहरा कर गिरने को हुआ कि पिछे से किसी ने उसे पकड़ लिया । 
अभिक ने पिछले देखा तो पाया कि उसे थामने वाला और कोई नहीं बल्कि सक्षम था और उसकी बगल में खड़ी थी सानवी जिसकी आंखों में इस समय हैरानी और दर्द दोनों थे ...! वो बिल्कुल स्थिर खड़ी थी । 

अभिक सही से खड़ा हुआ । उसने शव कि तरफ देखा ..!

वो मुर्दा हार्दिक का था ...! 


क्रमशः

इस भाग कर जब तक 10 कमेंट नहीं आते तब तक नेक्सट पार्ट नहीं आएगा...! 

धन्यवाद।