Nagmani - 13 in Hindi Horror Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | नागमणि - भाग 13

Featured Books
Categories
Share

नागमणि - भाग 13

– भाग 13✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी, अजनाला अमृतसररात गहरी हो चुकी थी। किले के अंधेरे गलियारों में दीपक की लौ काँप रही थी। राघव, जो अब तक नागमणि की खोज में अपना जीवन दाँव पर लगा चुका था, चौखट पर बैठा हुआ सोच रहा था कि यह संघर्ष आखिर कहाँ तक जाएगा। उसकी आँखों के सामने बार-बार वही दृश्य घूम जाता – जब उसकी आँखों के सामने उसके गुरु ने अंतिम साँस लेते हुए कहा था –“राघव… नागमणि को सही हाथों में पहुँचाना… यही तेरा धर्म है…”शापित वन की सीमाअगले दिन प्रातः, राघव अपने साथियों – आर्या और भीम – के साथ उस ‘शापित वन’ की ओर बढ़ा जहाँ अंतिम रहस्य छिपा था। कहा जाता था कि उस वन की सीमा पर कदम रखते ही आदमी अपने भीतर का सबसे गहरा डर देख लेता है।जैसे ही वे तीनों सीमा पार करते हैं, भीम की आँखों में भयावह दृश्य तैरने लगे – उसे लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसकी आत्मा को खींच रही हो। आर्या, जो कि विदुषी थी, मंत्रोच्चार करती रही और भीम को सँभालती रही। राघव ने दृढ़ स्वर में कहा –“डरने का समय नहीं है। नागमणि के रहस्य का अंत अब होना चाहिए।”नागों का प्रकट होनावन के मध्य एक विशाल नागफणी वृक्ष खड़ा था। उसकी जड़ों के पास भूमिगत गुफा का द्वार दिखाई देता था। अचानक धरती काँपने लगी और सैकड़ों विषधर नाग उनके चारों ओर लिपट गए। उनके फुँफकार से आकाश गूंज उठा।तभी एक विशालकाय काला नाग प्रकट हुआ। उसकी आँखों से लाल अग्नि की लपटें निकल रही थीं। वह नाग बोला –“मर्त्य मानव! तुम उस वस्तु की खोज में हो जो केवल देवताओं और नागवंश का अधिकार है। लौट जाओ… अन्यथा नष्ट हो जाओगे।”राघव ने अपने गुरु की दी हुई तलवार उठाई। पर उसी क्षण आर्या ने उसे रोका और बोली –“युद्ध से नहीं… सत्य से रास्ता खुलेगा।”गुफा का रहस्यआर्या ने अपनी वीणा उठाई और प्राचीन मंत्रों का उच्चारण करने लगी। उसकी ध्वनि सुनते ही नाग शांत होने लगे। वह काला नाग भी धीरे-धीरे पीछे हट गया। गुफा का द्वार स्वयं खुलने लगा।गुफा के भीतर प्रवेश करते ही तीनों ने देखा – मध्य में एक स्वर्णासन पर चमकती हुई नागमणि विराजमान थी। उसकी आभा से पूरा गुफामंडप आलोकित हो रहा था।जैसे ही राघव आगे बढ़ा, एक प्रेतात्मा का स्वर गूँजा –“सावधान! नागमणि को पाने वाला या तो अमरत्व पाएगा… या शापित मृत्यु। तुम्हें बलिदान देना होगा।”बलिदान की घड़ीराघव स्तब्ध था। तभी भीम बोला –“भाई, तू ही इस यात्रा का सच्चा अधिकारी है। मैं तेरे लिए अपने प्राण न्यौछावर करता हूँ।”कहकर वह प्रेतात्मा की अग्नि में कूदने लगा।पर राघव ने उसका हाथ पकड़ लिया –“नहीं भीम! यह मेरा कर्म है। पर मैं अपने साथी को खोकर विजय नहीं चाहता।”आर्या आगे आई। उसकी आँखों में आँसू थे।“राघव… यह नियति है। नागमणि तभी सुरक्षित रहेगी जब कोई निष्काम भाव से बलिदान दे।”राघव की आत्मा भीतर से काँप उठी। तभी उसके गुरु की आवाज़ गूँजी –“सच्चा बलिदान वह है जिसमें जीवन की नहीं, स्वार्थ की आहुति हो।”नागमणि की शक्तिराघव ने अपनी तलवार तोड़ दी और कहा –“मैं नागमणि को अपने लिए नहीं चाहता। यह समस्त प्राणियों की धरोहर है। यदि यह मेरे स्वार्थ से कलुषित हो जाए तो मैं इसे स्पर्श भी नहीं करूँगा।”यह कहते ही गुफा में दिव्य प्रकाश फैल गया। प्रेतात्मा का स्वर शांत हो गया। नागमणि स्वयं हवा में उठकर राघव के हाथों में आ गई।उसकी आभा से तीनों के शरीर आलोकित हो उठे। नागमणि ने कहा –“अब मेरा अंतिम रहस्य शेष है। उसे जानने के लिए तुम्हें अंतिम परीक्षा देनी होगी। वह परीक्षा तुम्हारी आत्मा को उजागर करेगी…”गुफा धीरे-धीरे काँपने लगी और चारों ओर अंधकार छा गया।(क्रमशः… भाग 14 में अंतिम परीक्षा और नागमणि का निष्कर्ष)।