"क्या कहूं मां?????"
"क्या एक ही मुलाकात यह निर्णय लेने के लिए काफी है क्या कि उसके साथ में रह पाऊंगी या नहीं??? "
"क्या बताऊं मां मैं, यहीं कि अभी तक मैं उसकी आदतों को नहीं जान पाई हूं। हां कुछ भाया तो है वो मन को पर क्या उतना काफी है इतना बड़ा फैसला लेने के लिए यह नहीं जानती।"
"क्या यह बताऊं मां........." त्रिशा के मन और दिमाग में यह बात गूंजने लगी। उसका अंतर्मन शायद और भी कुछ कहता पर तभी उसकी मां ने उसे टोक दिया और मां की आवाज सुन वो अंतर्मन की आवाज भी चुप हो कहीं खो गई।
"अरे बता ना बेटा।।।।।।।" उसकी मां ने उससे फिर से पूछा।
त्रिशा कुछ कह पाती इस से पहले ही मां अपना हाथ सिर पर रखते हुए बोली," अरे अच्छा मैं अब समझी।।।।।। तू क्यों चुप है।।।।। तू अपने पापा से शरमा रही है ना?????? "
" मैं भी ना बुद्धु हूं ध्यान ही नहीं दिया कि तेरे पापा यहां खड़े है।।।।।"
त्रिशा को मां की यह बात समझ ना आई की आखिर क्यों उसे अपने ही पापा के आगे यह सब बात करने में शरम आनी चाहिए। पर कल्पेश को कल्पना की क्ष। बात समझ आ गई। वह जानते है कि अक्सर लड़किया अपने पिता के आगे ऐसी बातों में संकोच करती है और इसी कारण वह बोले," अच्छा कल्पना तुम इससे तस्सली से पूछ लो। मैं तब तक बाहर देखता हूं। वो लोग अभी बाहर ही है।।।"
इतना कहकर कल्पेश बाहर जाने लगे। वह जाने से पहले त्रिशा की ओर मुड़े और उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोले,
" बेटा, माना हम थोड़े पुराने विचारों के है, लेकिन हम इतने भी दकियानुसी नहीं है जो तुम्हें तुम्हारी मर्जी के खिलाफ शादी करने को मजबूर करें। "
" तू नहीं जानती पर उस समय हम दोनों की शादी हमारे घरवालों के दबाव में हुई थी जबर्दस्ती और हम दोनों जानते है कि उस जबर्दस्ती की शादी को आज यहां तक लाने में क्या क्या जतन किए है हमने। पर तू हमारी एकलौती बेटी है और हम तुझे वो संघर्ष नहीं देना चाहते। इसलिए बिना डरे, बिना झिझके जो तेरे मन में हो कह दे। मुझसे ना सही तो अपनी मां से सही पर जो भी हो कह दें।।।" इतना कहकर वो बाहर की ओर जाने को मुड़ दिए।
त्रिशा ने जब अपने पिता की बात सुनी तो वह भावुक हो गई और उसकी आंखें नम हो गई। वह जानती है की उसके माता पिता कितने पुराने ख्यालों के है और ऐसे में उनका यह सब कहना और स्वतंत्र होकर निर्णय लेने का कहना ही बहुत बड़ी बात थी। उसे तो लग रहा था कि बस घरवाले आकर उसे फरमान दे देगें कि हमें लड़का पसंद है तू शादी कर लें। और वो मना भी करेगी तो भी लाख बाते समझा कर शादी करा देगें पर नहीं उसके पिता ने उसे खुद स्वतंत्र निर्णय लेने को कहा।
उसकी भावुकता का एक कारण यह भी था कि आज उसे आपने जीवन में पहली बार अपने लिए कोई फैसला लेने का अधिकार मिला है।यह सच में उसके लिए बहुत बड़ी बात है। वह खुश तो है ही पर डर भी रही है क्योंकि अब फैसला उसका है कि उसे राजन को चुनना है या नहीं।।।।।
कल्पेश ने बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला ही था कि त्रिशा पीछे से बोली,
"पापा।।।।।।।।"
त्रिशा की आवाज सुनते ही कल्पेश रुका और फिर पीछे उसकी ओर मुड़ा। उसके चेहरे को देख वह समझ गया कि त्रिशा उससे कुछ कहना चाहती है। उसने फिर से दरवाजा बंद किया और त्रिशा की ओर बढ़ते हुए बोला," क्या हुआ बेटा????? कुछ कहना है क्या?????"
त्रिशा ने एक लंबी सांस ली और फिर बोली," पापा।।।।। मुझे नहीं समझ आ रहा कि मैं क्या फैसला हूं।।।।। मतलब मैं मिली उससे, मुझे अच्छा लगा मिलकर, इंसान भी ठीक लगा मुझे पर मैं उसके साथ रह पाऊंगी या नहीं, यह मैं नहीं जानती।।।।।।।।। "
आज अपने जीवन में वह पहली बार अपने पापा से कुछ कह पा रही थी पर फिर भी वह अंदर से डरी पड़ी थी, उसके हाथ पैर कांप रहे थे और शब्द भी सही से मुंह से बाहर नहीं आ रहे थे, गला रुंध जा रहा था बेचारी का बार बार। एक बार तो वह सच में रुआंसी हो आई।
उसे यूं देख कल्पेश ने अपने गले लगा लिया और उसकी पीठ थपथपाने लगे। त्रिशा को उनका खामोशी से भरा स्नेह पा कर लगा कि मानो उसके पापा उस से कह रहे हो कि बेटा डर मत बोल, क्या चाहती है तू। हम है ना तेरे साथ। तू जो बोलेगी वैसा ही फैसला लेगे हम।
अपने पिता का स्नेह भरा आश्वासन पाकर वह फिर से बोली," मुझे नहीं समझ आ रहा कुछ भी पापा।।।। मतलब वह मुझे अच्छा भी लगा, पर पता नहीं क्यों भविष्य को लेकर मुझे बहुत डर भी है कि कहीं राजन के साथ मेरा आने वाला कल जैसे मैनें चाहा है वैसा ना हुआ तो??????"