🌫️ कहानी: “अधूरी किताब” – भाग 4: अधूरी यादें और नए खतरे
🌙 रहस्यमयी रात का अलाम
रीया शर्मा, राहुल वर्मा और काव्या मिश्रा ने किताब को सुरक्षित बक्से में बंद करके लाइब्रेरी के सबसे गहरे कोने में रख दिया था। लेकिन उस रात, रीया की नींद चैन से नहीं थी। उसका मन बार-बार उसी प्राचीन दृश्य में उलझता जा रहा था। उसकी आँखें खुलीं और वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर झाँकने लगी। हवेली की अंधेरी परछाईयाँ धीरे-धीरे उसकी सोच में समा रही थीं।
“क्या सच में यह खत्म हो गया?” उसने खुद से पूछा।
पर जवाब था… एक अनजानी चुप्पी।
उसके पास ऐसा महसूस हो रहा था मानो कोई अदृश्य निगाहें उसे देख रही हों। उसका दिल धड़कता गया। वह अचानक उठी, और उस बक्से की तरफ बढ़ी जहाँ किताब सुरक्षित थी।
📚 अधूरी यादें ताज़ा होतीं हैं
रीया ने बक्से की सतह पर हल्की से छुअन की। उसके हाथ कांप रहे थे। उसकी आँखों में वह चमक थी, जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। अचानक, उसके अंदर से एक गूंजती आवाज आई – एक अतीत की पुकार।
"रीया… याद करो…"
उसने चौंक कर पीछे मुड़कर देखा। कोई नहीं था।
फिर भी, वह आवाज हर पल और तेज़ होती गई।
रीया ने खुद से कहा –
“मुझे सच का सामना करना होगा। जो छुपा है, उसे उजागर करना होगा।”
वह उठी और पुराने डायरी के पन्नों को पलटने लगी, जो अरविंद देव की हवेली से मिली थी। डायरी के पन्नों पर कुछ अधूरी बातें लिखी थीं, जैसे –
"मैंने एक गलती की… एक ऐसा मंत्र पढ़ा जिससे अनगिनत आत्माएँ कैद हो गईं… अब मैं इसका बोझ नहीं उठा सकता…"
रीया का मन विचलित हो गया। उसकी सांसें तेज़ हो गईं।
“काव्या जी ने क्या सही कहा था?” वह सोचने लगी।
"क्या मैं वास्तव में अपने अतीत को जान पाऊँगी?"
📖 राहुल की चिंता और काव्या की गंभीरता
अगले दिन सुबह, रीया ने राहुल को अपनी चिंता बताई।
“राहुल, मुझे डर लग रहा है… मुझे लगता है कि यह किताब खत्म नहीं हुई। अभी भी उसमें कुछ अधूरा है।”
राहुल ने उसकी आँखों में देख कर सहानुभूति जताई।
“रीया, हम तुम्हारे साथ हैं। चाहे जो भी हो, हम इसका सामना करेंगे।”
काव्या ने गंभीर स्वर में कहा –
“जो भी रहस्य अभी भी अधूरा है, वह तुम्हारी यादों में छुपा हुआ है। तुम्हें खुद से मिलना होगा, रीया। अपनी गहराई में जाकर उन भूलें को ढूँढना होगा। तभी हम किताब का पूरा सच जान पाएंगे।”
रीया ने खुद से वादा किया –
“मैं अपना भूतकाल जानने से नहीं डरूंगी।”
🌫️ भूलभुलैया की ओर यात्रा
तीनों ने तय किया कि वे उस स्थान पर जाएँ जहाँ रीया का अतीत छुपा हो सकता था – वह पुरानी भूलभुलैया, जो हवेली के पास जंगल में स्थित थी। काव्या ने कहा –
“यह जगह अरविंद देव के प्रयोगों का केंद्र रही है। यहाँ अजीब परछाइयाँ और भ्रमित करने वाले रास्ते हैं।”
जंगल की गहराई में भूलभुलैया पहुँचना एक साहसिक कार्य था। हर कदम पर अजीब आवाजें सुनाई दे रही थीं – जैसे कोई पीछे से उन्हें देख रहा हो।
रीया के कदम डगमगाए, पर राहुल ने उसके हाथ थामे।
“डरो मत, रीया। हम साथ हैं।”
भूलभुलैया के अंदर प्रवेश करते ही वातावरण और भी रहस्यमयी हो गया। अंधेरे रास्ते एक-दूसरे से मिलते जुलते, पर हर बार नए स्थान पर पहुँचाते। हर मोड़ पर अजीब चित्र बने थे – कुछ अधूरे, कुछ अस्पष्ट। रीया को लगा जैसे हर चित्र उसके अतीत के टुकड़े हैं।
🌌 अदृश्य परछाईयाँ
एक क्षण ऐसा आया, जब अचानक रीया के सामने एक परछाई उभरी।
वह परछाई किसी की थी, पर उसका चेहरा अस्पष्ट था। वह धीरे-धीरे रीया की ओर बढ़ी। रीया के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
“कौन… कौन हो तुम?” रीया ने डरी हुई आवाज में पूछा।
परछाई ने एक धीमी फुसफुसाहट की –
“सच… याद करो… अधूरी ख्वाहिश… अधूरी पहचान…”
रीया की आँखें भर आईं। वह झुक गई। उसका मन उन शब्दों में उलझता गया।
काव्या ने कदम बढ़ाकर परछाई की दिशा में मंत्र पढ़ा –
“सत्य की ज्योति, राह दिखा दे। अधूरी यादों को पूरी कर दे।”
परछाई धीरे-धीरे गायब हो गई, पर उसके शब्द रीया के मन में गूंजते रहे।
"अधूरी ख्वाहिश… अधूरी पहचान…"
🌟 रहस्य की परतें खुलतीं हैं
रीया ने खुद से पूछा –
“मेरे जीवन में कौन सी अधूरी ख्वाहिश छुपी हुई है?”
वह अचानक उन घटनाओं को याद करने लगी, जो वर्षों पहले हुई थीं।
– एक दिन बचपन में जब उसके माता-पिता अचानक गायब हो गए थे।
– एक किताब जिसे उसने गुप्त रूप से पढ़ा था।
– अरविंद देव की हवेली में एक छुपा हुआ कमरा…
रीया का मन एक कहानी के रूप में सामने आने लगा –
“मुझे याद आ रहा है… उस दिन जब मैं पहली बार किताब से मिली थी… मैंने अनजाने में अरविंद देव की आत्मा से जुड़ने की कोशिश की थी… पर उस समय मुझे इसका खामियाजा समझ में नहीं आया।”
काव्या ने उसकी आँखों में गंभीरता से देखा।
“तो यही तुम्हारा गुप्त बंधन है, रीया। वह क्षण जब तुमने अरविंद देव की शक्ति से छेड़छाड़ की थी।”
रीया ने धीरे से कहा –
“हां… और तभी से मेरी आत्मा अधूरी यादों में उलझी हुई है।”
🚪 अतीत का सामना
रीया ने गहरी साँस ली। उसने खुद को यादों के उस क्षण में समर्पित किया। उसकी आँखें बंद हो गईं, और उसके मन में धीरे-धीरे अतीत का दृश्य सामने आया।
वह छोटी रीया थी, किताब के सामने बैठी, और अरविंद देव की आत्मा धीरे-धीरे सामने प्रकट हो रही थी।
“तुमने मेरी मदद की थी… पर मैं अधूरी रह गई।”
अरविंद देव की आत्मा की आवाज में गहरा दर्द था।
रीया की आँखों में आँसू थे।
“मुझे माफ कर दो… मैं नहीं समझ पाई थी।”
आधी रात का समय था, पर हर चीज़ धीरे-धीरे रोशनी से भरने लगी। अरविंद देव की आत्मा ने कहा –
“अब मैं शांति से जा सकता हूँ… तुम्हारी सच्चाई ने मुझे मुक्त किया।”
एक चमक के साथ वह गायब हो गई।
✨ नई उम्मीद की किरण
रीया, राहुल और काव्या तीनों धीरे-धीरे भूलभुलैया से बाहर निकले।
रीया की आँखों में अब न डर था, न अधूरी यादों की गहराई। बस एक नई रोशनी थी – सच का सामना करने की शक्ति।
काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा –
“तुमने खुद को मुक्त किया, रीया। अब तुम्हें डर से नहीं, सच्चाई से जीना होगा।”
राहुल ने गर्व से कहा –
“हम सभी ने मिलकर अधूरी किताब की साजिश को रोका है।”
रीया ने खुद से वादा किया –
“मैं अब अपने अतीत से भागूंगी नहीं। उसे अपनी ताकत बना लूंगी।”
🌅 भविष्य का संकेत
तीनों ने मिलकर किताब को फिर से लोहे के बक्से में सुरक्षित रखा। पर रीया जानती थी –
“यह केवल एक अध्याय का अंत है। नए अध्याय कहीं न कहीं, अधूरी किताब के अगले पन्ने में लिखे जा रहे हैं।”
काव्या ने एक अंतिम चेतावनी दी –
“सच हमेशा एक नई शुरुआत की ओर ले जाता है। सतर्क रहो।”
रीया, राहुल और काव्या ने हाथ मिलाया।
एक नई उम्मीद का संकल्प लिया –
सच की खोज, भय का परास्त करना, और अंधेरे में उजाले की किरण बनना।
📖 अधूरी किताब का सच अभी भी एक रहस्य है…
👉 क्या सचमुच कोई नई आत्मा इसे फिर से खोजेगी?
👉 क्या यह किताब एक बार फिर नए खतरों को जन्म देगी?
🔔 भाग 5 जल्द ही आएगा…