अदाकारा 20*
"मुन।मैं क्या कहता हूँ।अगर हम उस लड़के से एक बार मिल लेते है तो क्या ठीक नही होगा?"
रात में अपने बेडरूम के एकांत में उत्तम ने अपनी पत्नी मुनमुन से पूछा।
लेकिन मुनमुन ने तुरंत उसकी बात अनसुनी कर दी और कहा।
"हम उस जगह का पता क्यों पूछें जहाँ हम जाना ही नहीं चाहते?"
"लेकिन क्या तुमने उर्मिला की आँखों में देखा मुनमुन?वो उस लड़के से दिलोजान से प्यार करती है।"
"ये उसका पागलपन है।मैं उसे किसी विधर्मी से शादी कभी नहीं करने दूँगी।"
मुनमुन अपनी बात पर अड़ग थी।लेकिन उत्तम उतने संकुचित स्वभाव का नहीं था।वो नहीं चाहता था कि उर्मिला ज़िंदगी भर प्यार की आग में जलती रहे।और उत्तम ये भी समझता था कि उसकी बेटी किसी दूसरे से शादी करके कभी खुश नहीं रहेगी।और वो जिससे शादी करेगी उसे भी खुश नहीं रख पाएगी।
उसे अपनी पत्नी मुनमुन के इस तरह के विचार हैरान करने वाले लग रहे थे।उसने कहा।
"मुन।तुम्हारे विचार इतने संकुचित क्यों हैं?"
"क्यों,इसमें मेरे विचारों को क्या हो गया?मुझे अपनी बेटी का भला सोचना है।और मेरे इस तरह सोचने में क्या बुराई है?मैं तो बस यही चाहती हूँ कि उर्मी की शादी हमारी ही जाति में हो।"
"तुम उर्मी के प्यार को सिर्फ़ जाति के तराजू में तौल रही हो।तुम उर्मी की खुशी भी क्यों नहीं देखती?तुम उसे अपनी जाति में शादी करके ज़िंदगी भर दुखी करने के बजाय,उससे शादी करने के बारे में क्यों नहीं सोचते जिससे वह प्यार करती है?"
उत्तम ने उदास स्वर में कहा।लेकिन मुनमुन को अपने फ़ैसले में ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं हुई।उसने दृढ़ निश्चय के साथ कहा।
"तुम उर्मी की चिंता मुझ पर छोड़ दो।और चैन से सो जाओ।"
यह कहकर मुनमुन ने बेडरूम की लाइट बंद कर दी।
उत्तम तो,लाइट बंद होते ही पंद्रह-बीस मिनट में सो गया।लेकिन असल में,मुनमुन ही थी जो देर रात तक उर्मिला की चिंता में करवटें बदलती रही।
देर रात जब शर्मिला शूटिंग से आईं,तो उसने देखा कि उर्मिला दोनों घुटनों पर सिर रखकर बैठी थीं।उर्मिला को इस तरह बैठे देखकर वह चिंतित हुवी।उसने उर्मिला की पीठ पर हाथ रखते हुए पूछा।
"क्या हुआ,उर्मिला?"
"क.क. कुछ नहीं।"
शर्मिला के अचानक आकर खुद से इस तरह सवाल करने पर उर्मिला चौंक गईं।वह नहीं चाहती थीं कि उसके दुःख की वजह से शर्मिला भी दुखी हों।
"तुम मुझसे कुछ नहीं छिपाओगी उर्मी।कुछतो ज़रूर हुआ है।अब बताओ मुझे तुम्हें क्या हुआ है?"
उर्मिला शर्मिला की आदत जानती थीं कि अब वह बिना जाने पीछा नहीं छोड़ ने वाली हे। इसलिए उससे छुटकारा पाने के लिए उर्मिलाने झूठ का सहारा लिया।
"शाम से मेरा सिर दर्द कर रहा है।एनासीन ली पर आराम नहीं मिला।"
उसने अपना सिर दबाते हुए कहा।
"बस इतनी ही बात?मेरे हाथ कि आधी कप गरम चाय पी कर देख।तुम्हारा सिर दर्द कर रहा है,है ना?वह बिलकुल से ठीक हो जाएगा।"
यह कहकर शर्मिला रसोई में चली गईं।और पाँच मिनट में वह एक कप चाय ले आईं। उसके हाथ से चाय का कप लेते हुए उर्मिला ने पूछा।
"तुम्हारा कप कहाँ है?"
"जानती हो ना उर्मि,मैं तुम्हारी तरह चाय नहीं पीती,पर कॉफ़ी पीती हूँ।और मैंने शूटिंग से निकलते समय सेट पर ही कॉफ़ी पी थी।जब तक तुम चाय पी लेती हो मैं कपड़े बदल लेती हूं।"
शर्मिला कपड़े बदलने चली गईं और उर्मिला ने कप होंठों से लगाया और धीरे-धीरे चाय की चुस्कियाँ लेने लगीं।
जैसे ही शर्मिला कपड़े बदलकर आईं,
उर्मिला ने पूछा।
"आज का तुम्हारा दिन कैसा रहा?कैसी रही शूटिंग?"
"अरे,आज तो फराह मैडम ने मुझे खूब नचाया,खूब नचाया नचा नचा कर हवा निकाल दी।पर गाने के बोल इतने अच्छे हैं कि मुझे नाचने में भी मज़ा आ गया।"
"अच्छा?क्या बोल हे?"
"मैं तो दीवानी हो गई।
प्यार तेरे खो गई।
आया मिलने तू मुझे
तो ख्वाबों मे तेरे
में खो गई ।"
शर्मिला ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों को अपने सिर के ऊपर धीरे से लहराते हुए कहा।
और ऐसे ही बातें करते-करते दोनों बहनें सो गईं।
लेकिन सुबह होते ही मुनमुन ने नाश्ते की मेज पर उर्मिला से पूछा।
"उर्मि।तुमने उस लड़के का क्या नाम बताया था?"
उर्मि दो घड़ी तक अपनी माँ के चेहरे को मूर्खो की तरह घूरती रही।फिर धीमी सी आवाज़ में बुदबुदाई।
"सुनील।"
"उसे फोन करके यहां बुलालो।मैं उसका इम्तिहान लेना चाहती हूँ।"
(क्या सुनील मुंबई आएगा?और अगर आएगा, तो क्या वह मुनमुन की परीक्षा पास कर पाएगा?)