Khamosh jindagi ke bolate jajba - 15 in Hindi Love Stories by Babul haq ansari books and stories PDF | खामोश ज़िंदगी के बोलते जज़्बात - 15

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खामोश ज़िंदगी के बोलते जज़्बात - 15

                      भग:15

                 रचना:बाबुल हक़ अंसारी

       "साज़िश की आग और टूटते सब्र की आहट"


    पिछले खंड से…


    "अब खेल और ख़तरनाक होगा…"


    नकाबपोशों की चाल


   रात के अंधेरे में वही नकाबपोश फिर लौटे।

इस बार उनके हाथों में केवल डंडे या बोतलें नहीं थीं, बल्कि बंदूकें थीं।

गली के सन्नाटे में उनकी परछाइयाँ और डरावनी लग रही थीं।


    एक ने फोन पर किसी से कहा —

"कल सुबह का अख़बार इन बच्चों के खून की ख़बर छापेगा।

    पांडुलिपि हमें हर हाल में चाहिए।"


दीवारों के पीछे से कोई उनकी बातें सुन रहा था — गुरु शंकरनंद!

उसके माथे पर पसीना छलक आया।

"क्या मैंने अनया को इस मौत के रास्ते पर धकेल दिया…?"


   हादसे की आहट


अगली सुबह कॉलेज की लाइब्रेरी में हलचल मची।

    छात्र पांडुलिपि की कॉपियाँ बनाने में जुटे थे।

   अनया की आँखों में उम्मीद थी, पर दिल में डर भी।


   अचानक एक धमाका हुआ —

लाइब्रेरी की खिड़की का शीशा टूटकर बिखर गया।

   एक पत्थर के साथ धमकी भरा काग़ज़ आया —


  "आज रुक जाओ, वरना कल किसी की लाश                 गिरेगी।"


    छात्रों के बीच अफरा-तफरी मच गई।

   कई लोग भाग खड़े हुए, लेकिन अनया वहीं खड़ी         रही।

   उसकी आँखों में आँसू थे, मगर आवाज़ में आग —

    "जो डर के भागेंगे, उन्हें हमेशा पछताना पड़ेगा।

   जो डटकर रहेंगे, वही कल की उम्मीद होंगे।"


    गुरु शंकरनंद की दुविधा


   शाम को गुरुजी मंदिर के अहाते में अकेले बैठे थे।

  उनके सामने रघुवीर त्रिपाठी की पुरानी तस्वीर रखी   थी।

      वे बुदबुदा रहे थे —

    "मैंने तेरी आवाज़ दबाई थी, रघुवीर… अब तेरी बेटी       को     मौत के मुँह में धकेल रहा हूँ।

   क्या करूँ? सच कहूँ तो सत्ता मुझे निगल जाएगी,          और    चुप रहूँ तो ये बच्ची जल जाएगी।"


    उनके आँसू बह निकले।

आसमान की ओर देखते हुए उन्होंने हाथ जोड़ दिए —

"हे ईश्वर, अब मेरी कायरता और मतलबीपन मुझे जीने नहीं देगा।

या तो बलिदान दूँगा, या फिर ज़िंदगी भर अपराधी बनकर मरूँगा।"


नीरव का टूटता सब्र


उधर नीरव ने अनया और आर्या को कमरे में बुलाया।

उसका चेहरा लाल था, आँखों में गुस्सा भरा हुआ।


"अब बहुत हो गया!"

उसने मेज़ पर मुक्का मारते हुए कहा।

"ये नकाबपोश हमें रोज़ धमकाएँगे, और हम बस सुनते रहेंगे?

नहीं! मैं चुप नहीं रह सकता।

अगर क़ानून चुप है, तो मैं ही इनसे भिड़ूँगा।"


आर्या घबरा गई —

"नीरव! ये लड़ाई तलवार या बंदूक की नहीं, कलम की है।

   तुम्हारा ग़ुस्सा हमें और मुश्किल में डाल देगा।"


   नीरव की आवाज़ काँप रही थी —

   "तो क्या हम हर दिन मौत का इंतज़ार करें?

  आर्या, तुम्हें समझ क्यों नहीं आता — अगर हमने   पलटकर वार नहीं किया, तो हम खत्म हो जाएँगे।"


   अनया ने उसका हाथ पकड़ा —

   "नीरव, हमें लड़ना है… लेकिन सच के साथ, न कि उसी   हथियार से जो ये लोग इस्तेमाल करते हैं।

  तुम्हारा सब्र अगर टूट गया, तो इनकी जीत होगी।"


  नीरव कुछ नहीं बोला।

  उसकी आँखों में आँसू चमक रहे थे।

  उसने बस धीमे से कहा —

  "कभी-कभी लगता है, आर्या… मैं तुम्हें खो दूँगा।"


   आर्या ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।


   (जारी रहेगा… खंड 16 में


   अगले खंड में आएगा:


   गुरु शंकरनंद का बड़ा क़दम—कायरता छोड़ या

   बलिदान?


   नकाबपोशों का हमला, जो किसी को हमेशा के लिए     छीन सकता है।


   और नीरव-आर्या के रिश्ते की सबसे कठिन परीक्षा।