Adakaar - 26 in Hindi Crime Stories by Amir Ali Daredia books and stories PDF | अदाकारा - 26

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अदाकारा - 26

*अदाकारा 26*

             "मैं तो दीवानी हो गई 
              प्यार मे तेरे खो गई।" 
शर्मिला के मोबाइल की रिंग बजने लगी।
उसने स्क्रीन पर नज़र डाली तो वह अनलोन नंबर था।फिरभी फोन कलेक्ट कर के कान से लगाया।
हेलो।हु आर यू?” 
“मैडम।में कॉस्टेबल जयसूर्या।”
कुछ सेकेंड लगी शर्मिला को जयसूर्या को पहचान ने मे थोडा सा दिमाग पर जोर देने के बाद उसे वर्सोवा सर्कल के पास बृजेश के साथ आए हुवे अधेड़ उम्र का कांस्टेबल याद आ गया।वो मीठी आवाज में बोली।
“हा।हा याद आया।जयसूर्याजी बोलिए।”
“हैप्पी बर्थ डे" 
जयसूर्या एक ही श्वास मे बोल पड़ा।
" थैंक्यू।सो मच जयसूर्याजी।" 
“मुझे आपको एक छोटीसी गिफ्ट भी देनी है।" 
"ओह!रियली?तो आजाओ मैं घर पर ही हु।"

"मैं.में अभी-पहुँचा।"

और आधे घंटे के अंदर,जयसूर्या हाथ में एक बड़ा नीले रंग का टेडीबेर लिए शर्मिला के घर पहुँचा।नीले रंग का टेडीबेर को जयसूर्या के हाथों में देखकर शर्मिला लगभग उछल पड़ी।

"वाह!क्या सरप्राइज़ है?यह तो मेरी पसंदीदा चीज़ है।"

"मैडम मैं पूरी रात गूगल पर आपकी पसंद नापसंद को रिसर्च करता रहा।"

चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान के साथ, शर्मिला ने जयसूर्या की आँखों की गहराई तक यू देखा की जयसूर्या उसकी नज़रों से ही घायल हो गया।

"क्या तुम मुझे इतना पसंद करते हो?"

शर्मिला के सवाल से जयसूर्या शर्मिंदा हो गया। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। उसने कहा।

"बहुत ज्यादा।"

"हम्म।तो मुझे तुम्हारे तोहफ़े की जगह कोई रिटर्न गिफ्ट भी देना होगा है ना?"

"नहीं।नहीं मैडम।इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।"

जयसूर्या ने जल्दी से कहा।लेकिन शर्मिला जयसूर्या को रिटर्न गिफ्ट देने के लिए बेताब थी।वह आगे आईं।

"ज़रूरत क्यों नहीं है?"

यह कहते हुए उन्होंने जयसूर्या के गाल पर एक हल्का सा चुंबन दिया और फिर बोले।

"मेरा रिटर्न गिफ्ट कैसा लगा?"

जयसूर्या ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी पसंदीदा अदाकारा उसे इस तरह से चूम लेगी।शर्मिला के इस चुंबन से उनके सारे शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी।उसके शरीर में एक अजीब सी हलचल फैल गई। उसकी तीव्र इच्छा हुई कि वह आगे बढ़कर शर्मिला को अपनी बाहों में कस लें।लेकिन वह कुछ भी करने से डर भी रहा था।कि कहीं मैडम नाराज़ न हो जाएँ।और अगर मैडमने उनके बारे में शिकायत करदी तो न सिर्फ़ उसकी नौकरी चली जाएगी बल्कि उसका घर छोड़ कर उसकी पत्नी भी चली जाएगी।

"आप क्या सोचने लगे जयसूर्याजी?"

शर्मिला की आवाज़ चाँदी की घंटी की तरह, उसके कानों में पड़ी और जयसूर्या विचारों के भंवर से बाहर आ गया।

"क.क.कुछ भी नहीं।"

आश्चर्य में डूबे जयसूर्या को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे।और इस बीच शर्मिला भी एक के बाद एक ऐसे सवाल पूछती रही जिनका जवाब बेचारे जयसूर्या के पास नहीं थे।

शर्मिला ने उससे फिर पूछा।

"तुमने यह नहीं बताया कि तुम्हें मेरा रिटर्न गिफ्ट पसंद आया या नहीं?"

शर्मिला के बार-बार उकसाने वाले सवालों से जयसूर्या की भी हिम्मत अब बढ़ने लगी थी। उसने अपने डर और झिझक को दूर फेंकते हुए और बेशर्मी से मुस्कुराते हुए अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए कह ही दिया।

"शर्मिला जी।मुझे ओर ज़्यादा अच्छा लगता अगर आपने यह रिटर्न गिफ्ट मेरे गालों पर देने के बजाय मेरे होठों पर दिया होता।"

"उउउउउ।तो लगता है भाई साहब की ख्वाहिशें बहुत ज्यादा ऊँची हैं?"

शर्मिला ने आँखें नचाते हुए कहा।

"और ये ख्वाहिशें किसने जगाईं?"

जयसूर्या ने धड़कते दिल से पूछा।

"साहब,आप पहली ही मुलाक़ात में सब कुछ पा लेना चाहते हैं?"

शर्मिला के शब्दों से नशा टपक रहा था।और जयसूर्या उस नशे में चूर होता जा रहा था।

"अच्छा तो मैडम, आपसे वो सब पाने के लिए कितनी मुलाक़ातें ओर करनी पड़ेंगी?"

"बस यूंही आते रहो।मिलते रहो। कभी-कभार फ़ोन करते रहो।जन्मदिन हो या न हो इसी तरह छोटे-मोटे तोहफ़े देते रहो।कभी-कभी हमें किसी चीज़ की ज़रूरत हो,तो आकर हमारी मदद कर दिया करो।तो आज जिस तरह, "जैसे तुम्हारे गाल पर रिटर्न गिफ्ट मिला, वैसे ही कभी अगर आपकी किस्मत अच्छी रही तो होंठों पर भी मिल जायेगा।"

"ठीक है।जैसा तुमने कहा,मैं तुम्हें ज़रूर फ़ोन करूँगा।मैं आऊँगा और जाऊँगा।और अगर मुझे तुम्हारे होंठों का चुंबन मिलता हो तो तुम कहोगी तो मैं तुम्हारे पैर भी धोऊँगा और वो पानी भी पी जाऊँगा।"

जयसूर्या अब पूरी तरह से मदहोश हो था।

"ओह!इतना?तो फिर आपको ज़रूर आज़माना होगा सर।"

(शर्मिला जयसूर्या को अपने मायाजाल में क्यों फँसा रही थीं?पढ़ते रहिए अदाकारा)