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🌙 एपिसोड 12 :
“दरभंगा की पुस्तकालय और हवेली का असली राज़”
⏳ यात्रा की तैयारी
सुबह की हल्की किरणों के साथ हवेली में फिर से सरगर्मी लौट आई थी। पिछली रात की वो रहस्यमयी आवाज़ अब भी सबके ज़हन में गूंज रही थी। सावित्री देवी की आत्मा को मुक्त कर देने के बावजूद हवेली की दीवारें किसी अदृश्य डर का संकेत दे रही थीं।
काव्या ने खिड़की के बाहर झाँकते हुए कहा –
“यह हवेली… जितना देती है, उससे कहीं ज्यादा छुपा लेती है।”
रीया ने गहरी साँस छोड़ी।
“अब तो किताब ही हमारी राह है। वही हमें बताएगी कि आगे कहाँ जाना है।”
राहुल ने उस अधूरी किताब को अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया। उसके पन्ने हवा के झोंकों में खुद-ब-खुद हिलने लगे। एक नया पन्ना खुला और स्याही से बने धुंधले शब्द उभर आए –
> “जब हवेली की छाया बिहार के दरभंगा की पुस्तकालय तक फैलेगी, तभी असली राज़ सामने आएगा। पूर्वजों की चीखें वहीं कैद हैं।”
राहुल ने गंभीर स्वर में कहा –
“मतलब हमें अब हवेली छोड़कर दरभंगा की पुरानी पुस्तकालय जाना होगा। वही इस किताब की अगली मंज़िल है।”
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📜 दरभंगा की पुस्तकालय का सफ़र
तीनों ने तय किया कि वे हवेली से निकलकर दरभंगा की ओर चलेंगे। घोड़ागाड़ी से जब वे गाँव की सीमा पार कर रहे थे, तो राहगीरों की बातें उनके कानों तक पहुँचीं।
एक बूढ़ा किसान, अपनी टूटी-फूटी आवाज़ में कह रहा था –
“सुनऽलऽ बा? रात में फेर से पुस्तकालय से रोवन के आवाज़ आवत रहऽ। कहेला, उ किताबन में जिन्न बंधल बा।”
काव्या ने काँपते हुए कहा –
“किताबों में… जिन्न?”
रीया ने धीमे स्वर में उत्तर दिया –
“हो सकता है वही आत्माएँ हों, जिनका ज़िक्र इस किताब में है।”
सफ़र लंबा और बोझिल था। चारों ओर कुहासा, सुनसान रास्ते और कभी-कभी पेड़ों से टकराती अजीब सरसराहट। हवेली का साया मानो उनका पीछा कर रहा था।
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🏛️ पुस्तकालय का पहला दृश्य
दरभंगा की उस पुरानी पुस्तकालय में पहुँचते ही उनके कदम ठिठक गए। इमारत खंडहर जैसी लग रही थी। टूटी हुई खिड़कियाँ, जाले से ढकी दीवारें, और बीचों-बीच लटका एक बड़ा सा घंटा, जो बिना हवा के ही धीरे-धीरे झूल रहा था।
राहुल ने मशाल जलाई।
“सावधान रहना… यहाँ सिर्फ किताबें ही नहीं हैं।”
अंदर कदम रखते ही सैकड़ों किताबें शेल्फ़ से गिर पड़ीं। हवा में धूल और राख भर गई। अचानक कमरे के कोने से एक फुसफुसाहट आई –
“तुम देर से आए…”
रीया ने काँपते हुए पूछा –
“कौन है वहाँ?”
लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला।
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📖 जीवित किताबें
पुस्तकालय के बीचो-बीच एक बड़ा सा लकड़ी का टेबल था। उस पर चार काली किताबें रखी थीं। उन किताबों के पन्ने खुद-ब-खुद पलटने लगे। और हर किताब से एक कराहती आवाज़ गूँजने लगी।
पहली किताब से –
“मुझे इस कैद से निकालो…”
दूसरी से –
“मेरा खून अब भी इन पन्नों में सड़ रहा है…”
तीसरी से –
“अरविंद देव ने हमें यहाँ बाँध दिया…”
और चौथी किताब से –
“अगर तुम असली राज़ जानना चाहते हो… तो हमें मुक्त करना होगा।”
काव्या ने डरते हुए कहा –
“ये… ये किताबें ज़िंदा हैं!”
राहुल ने गहरी आवाज़ में कहा –
“ये आत्माएँ ही हैं, जिनके रहस्य हवेली और अरविंद देव से जुड़े हैं।”
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⚰️ भूतिया परछाइयाँ
अचानक चारों किताबें हवा में उठने लगीं। उनके पन्नों से काले धुएँ की शक्लें बाहर निकल आईं। वे परछाइयाँ एक-एक कर उनके चारों ओर घूमने लगीं।
रीया ने मंत्र पढ़ना शुरू किया, लेकिन इस बार परछाइयाँ उस पर टूट पड़ीं। उसकी आवाज़ दबने लगी।
काव्या ने साहस जुटाकर कहा –
“राहुल! किताब का अगला पन्ना पढ़ो। शायद उसमें इन्हें हराने का तरीका हो।”
राहुल ने काँपते हाथों से किताब खोली। उसमें लिखा था –
> “आत्माओं की मुक्ति तभी होगी, जब उनके दर्द को सुना जाएगा। दिलों की पुकार को अनसुना करोगे, तो मृत्यु पाओगे।”
राहुल ने चीखकर कहा –
“इनकी कहानियाँ सुननी होंगी। तभी हम इन्हें मुक्त कर पाएँगे।”
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🕯️ आत्माओं का दर्द
एक-एक कर परछाइयाँ उनके सामने आईं।
पहली आत्मा बोली –
“मैं उस वक़्त का रखवाला था। अरविंद ने मुझे अपने तांत्रिक प्रयोगों के लिए ज़िंदा जला दिया।”
दूसरी ने कराहते हुए कहा –
“मैं उसकी पत्नी की दासी थी। उसने मेरे शरीर पर मंत्र लिखे और मेरी आत्मा को इन पन्नों में कैद कर दिया।”
तीसरी आत्मा चीखकर बोली –
“मैं एक साधु था। मैंने उसे रोकने की कोशिश की… लेकिन उसने मेरी आँखें नोच डालीं।”
और चौथी आत्मा –
“मैं… अरविंद का ही भाई था। लालच ने उसे अंधा कर दिया। उसने मुझे मारकर इन पन्नों में बाँध दिया।”
रीया की आँखों से आँसू बह निकले।
“हे भगवान… ये कितनी पीड़ित आत्माएँ हैं।”
राहुल ने मंत्र पढ़ा और काव्या ने मशाल की लौ ऊपर उठाई। धीरे-धीरे चारों आत्माएँ सफ़ेद रोशनी में बदलकर पुस्तकालय की टूटी खिड़कियों से बाहर निकल गईं।
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🌑 सबसे बड़ा इशारा
जैसे ही आत्माएँ मुक्त हुईं, पुस्तकालय की दीवारों पर काले अक्षरों से एक नया संदेश उभर आया –
> “हवेली का असली रहस्य तहख़ाने के पहले दरवाज़े में है। वह दरवाज़ा तुम्हें चुनेगा… पर याद रखना, एक बार अंदर गए तो लौटना नामुमकिन होगा।”
काव्या के होंठ काँपने लगे।
“मतलब… ये तो बस शुरुआत थी। असली खौफ़ तो अब हमारा इंतज़ार कर रहा है।”
राहुल ने किताब बंद की। उसकी आँखों में दृढ़ता थी।
“हम यहाँ तक पहुँचे हैं, तो अब पीछे नहीं हटेंगे। चाहे जान जाए… लेकिन सच जानना होगा।”
रीया ने उसके हाथ पर हाथ रखकर कहा –
“हाँ, अब हवेली का सबसे गहरा अंधेरा हमारा इंतज़ार कर रहा है।”
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🔔 एपिसोड 12 समाप्त
👉 अब वे हवेली के तहख़ाने का पहला दरवाज़ा खोलेंगे।
👉 क्या वहाँ अरविंद देव की अमर आत्मा इंतज़ार कर रही है?
👉 या यह सिर्फ़ हवेली का सबसे बड़ा धोखा है?
अधूरी किताब – अब और भी भुतहा, और भी रहस्यमयी…
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