🌑 एपिसोड 17 : “राख के नीचे लिखा नाम”
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🌫️ 1. हवेली की राख से उठती हवा
रात और सुबह के बीच का वो समय था — जब हवा एकदम ठहरी हुई लगती है।
दरभंगा की पुरानी हवेली अब बाहर से शांत थी, लेकिन उसके भीतर अब भी कुछ चल रहा था।
रमाकांत ने जब आखिरी बार तख़्त के पास झाँका था, वहाँ बस राख थी।
लेकिन अब, उस राख में हल्की-सी धुआँ सी लकीर उठ रही थी — जैसे कोई साँस ले रहा हो।
> “राउर ध्यान देनी? ई राख हिल रहल बा…”
एक बूढ़े ने काँपती आवाज़ में कहा।
रमाकांत ने माथे पर पसीना पोंछा।
“ई तो खतम हो गइल कहानी रहे… अब फेर से का?”
लेकिन हवा में एक अनकही सरसराहट थी — जैसे कोई धीरे-धीरे फुसफुसा रहा हो…
“किताब… फिर खुलनी है…”
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🕯️ 2. राख के नीचे कुछ चमका
रमाकांत ने हिम्मत जुटाई और एक लंबी लकड़ी से राख को धीरे-धीरे हटाने लगा।
पहले तो बस राख उड़ी, फिर भीतर से कुछ ठंडा और धातु जैसा महसूस हुआ।
वह झुककर देखने लगा —
राख के बीच एक सुनहरा ताबीज़ दबा था।
उस ताबीज़ पर दो नाम खुदे थे — “तनिषा – राहुल”, और उसके नीचे किसी ने बहुत महीन अक्षरों में लिखा था —
> “जिसका नाम इस राख में लिखा जाएगा, वही अगली कहानी बनेगा…”
रमाकांत का हाथ काँप गया।
“हे भगवान! ई तो शाप के नई किस्त जइसन बा…”
वह पीछे हट गया, लेकिन तभी हवा फिर चली —
ताबीज़ अपने आप चमका और राख बिखरकर एक बवंडर बन गई।
उस राख से एक और नाम उभरा — “अनामिका”।
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🌑 3. अनामिका की वापसी
दरभंगा शहर के दूसरी ओर, उस वक्त अनामिका रात्रि यात्रा से लौट रही थी।
वो दिल्ली से आई थी, किसी पुराने शोध कार्य के सिलसिले में।
लेकिन जैसे ही उसने दरभंगा की धरती पर कदम रखा, उसके माथे पर हल्की-सी चुभन हुई।
“क्या अजीब-सी ठंड है यहाँ…” उसने बुदबुदाया।
अचानक, उसकी कलाई में पहनी घड़ी रुक गई।
फोन में कोई नेटवर्क नहीं।
और फिर, हवा में किसी ने उसका नाम लिया —
> “अनामिका…”
वो चौंकी, चारों ओर देखा — कोई नहीं।
लेकिन दूर उसे वही हवेली नज़र आई — जिसके बारे में बचपन में उसने दादी से किस्से सुने थे।
> “हवेली… जहाँ किताब खुद कहानियाँ लिखती है।”
उसका दिल तेज़ धड़कने लगा।
क्योंकि वो खुद एक हिस्ट्री रिसर्चर थी — और ये कहानी, उसका थीसिस विषय रही थी।
> “अगर वो सच है… तो मुझे वहाँ जाना होगा।”
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🌘 4. हवेली की दहलीज़ पर
अनामिका के कदम जैसे-जैसे हवेली की तरफ बढ़े, वातावरण बदलने लगा।
पेड़ों की शाखाएँ झुक गईं, हवा भारी हो गई, और दरवाज़े पर उगी बेलें अपने आप हट गईं।
> “स्वागत है… अनामिका…”
कहीं गहराई से आवाज़ आई।
वो डरकर रुकी, लेकिन कदम अपने आप भीतर बढ़ते गए।
दीवारें, टूटी खिड़कियाँ, और वह पुराना तख़्त — सब कुछ जैसे अब भी ज़िंदा था।
तख़्त के पास उसने राख देखी — और उसी के बीच चमकता हुआ ताबीज़।
उसने झुककर उसे उठाया —
और जैसे ही ताबीज़ उसकी हथेली में आया, हवा में वही नीली चमक फैल गई जो कभी राहुल के साथ थी।
उसके कानों में एक मद्धम आवाज़ आई —
> “कहानी अधूरी नहीं मरती, बस नया लेखक ढूँढ लेती है…”
अनामिका ने काँपते हुए फुसफुसाया —
“कौन है वहाँ?”
दीवार पर धुंधली परछाईं उभरी — तनिषा।
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🌫️ 5. राख की रूह
तनिषा अब इंसान नहीं थी —
उसका चेहरा राख की लकीरों से बना था, और आँखें स्याही की तरह गहरी।
“तुम अनामिका हो…” उसने कहा, “मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी।”
“मेरा?” अनामिका ने हैरानी से पूछा।
“हाँ,” तनिषा ने धीमी आवाज़ में कहा, “किताब ने तुम्हारा नाम लिखा है।
अब तुम ही वो हो जो अगला अध्याय पूरा करेगी।”
अनामिका ने पीछे हटना चाहा, लेकिन ताबीज़ उसकी हथेली में चिपक गया।
उस पर एक और नाम खुदने लगा — “अनामिका सेन”।
> “नहीं! ये क्या हो रहा है!”
वो चिल्लाई, लेकिन हवा ने उसकी आवाज़ निगल ली।
तनिषा मुस्कुराई — “अब तुम इससे अलग नहीं हो सकती।
कहानी तुम्हें चुने, तो उससे भागना असंभव है।”
हवेली के अंदर दीपक अपने आप जल उठे, और दीवारों पर चेहरे उभरने लगे।
वो रूहें थीं — वही जो तनिषा और राहुल ने मुक्त की थीं।
> “अब उनकी कहानी नहीं… तुम्हारी कहानी शुरू होगी।”
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🕸️ 6. किताब का पुनर्जन्म
ताबीज़ से नीली रोशनी फैलते ही राख के बीच से वही किताब फिर उभरी —
लेकिन अब उसका कवर सुनहरा नहीं, काला था।
उस पर लिखा था —
> “अधूरी किताब – भाग दो : राख का लेखक”
किताब अपने आप खुली।
पहला पन्ना खाली था, लेकिन उस पर स्याही अपने आप गिरने लगी।
> “अनामिका सेन — नई लेखिका, नई रूह।”
अनामिका काँप उठी।
“नहीं… मैं कोई आत्मा नहीं हूँ! मैं रिसर्चर हूँ!”
“अब नहीं,” तनिषा की आवाज़ आई, “अब तू हवेली की नई कलम है।”
किताब का दूसरा पन्ना अपने आप खुला —
और उस पर अनामिका की ज़िंदगी की झलकें उभरने लगीं —
उसका कॉलेज, उसका बचपन, उसकी अधूरी मोहब्बत “आर्यन”।
अनामिका की आँखें फैल गईं — “तुम्हें… ये सब कैसे पता?”
“किताब सब जानती है,” तनिषा ने कहा, “और अब वही तय करेगी कि तेरा अंत कैसा होगा…”
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🔥 7. आर्यन की परछाई
अगली रात — जब हवेली के बाहर तूफ़ान आया,
अनामिका हवेली के पुस्तकालय में बैठी किताब के पन्ने पलट रही थी।
अचानक उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी।
“कौन?” उसने पुकारा।
दरवाज़े से कोई अंदर आया —
एक छाया, जो इंसान जैसी लगती थी लेकिन चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था।
> “अनामिका…”
वो आवाज़ — वो आर्यन था!
उसका पहला प्यार, जो पाँच साल पहले दरभंगा से रहस्यमय तरीके से ग़ायब हो गया था।
“आर्यन… तुम?”
वो दौड़ी, लेकिन जैसे ही उसे छूना चाहा, उसका हाथ धुएँ में जा धँसा।
“मैं यहाँ नहीं हूँ, अनामिका,”
वो बोला, “किताब ने मुझे पहले ही कैद कर लिया था।”
अनामिका की आँखें नम हो गईं।
“तो तुम्हें छुड़ाऊँगी! हर हाल में!”
“हर रूह को छुड़ाने की कीमत होती है…”
आर्यन की आवाज़ गूँजी, “क्या तू तैयार है अपनी रूह दाँव पर लगाने के लिए?”
वो कुछ पल चुप रही —
फिर बोली, “अगर तेरे लिए, तो हाँ।”
किताब की स्याही चमक उठी।
अगला पन्ना खुला —
और लिखा गया —
> “राख का सौदा… शुरू हुआ।”
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🌒 8. हवेली का नया शाप
दीवारें फिर काँपने लगीं, दीयों की लौ काली पड़ गई।
तनिषा की परछाई पीछे हट गई —
अब हवेली में दो रूहें थीं: आर्यन और अनामिका।
और किताब… अब खुद लिख नहीं रही थी —
बल्कि अनामिका से लिखवा रही थी।
> “लिखो,” हवा ने कहा, “अपने ही अंत को…”
अनामिका काँपते हाथों से कलम उठाती है।
स्याही काली नहीं, लाल थी — खून जैसी।
वो पहला शब्द लिखती है — “राख…”
और तभी हवेली की छत से राख झरने लगती है।
रमाकांत हवेली के बाहर से देख रहा था —
“हे भगवान, फेर से शुरू हो गइल! किताब फिर से जाग गई!”
हवा में अब वही डर था — जो सदियों से सोया हुआ था।
हवेली की आँखें फिर खुल चुकी थीं।
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🌕 एपिसोड 17 समाप्त
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🔔 अगले भाग में पढ़िए –
एपिसोड 18 : “राख का सौदा – जब प्यार और श्राप एक हो गए”
> क्या अनामिका सच में आर्यन को छुड़ा पाएगी या वही अगली अधूरी रूह बन जाएगी?
क्या किताब अब सिर्फ़ श्राप है… या किसी की मोहब्बत का अंजाम?