*अदाकारा 43*
बृजेशने कॉफ़ी का कप मेज़ पर रखा और जयसूर्या से कहा।
"चलो भाई।आज की ड्यूटी भी खत्म हो गई। कल फिर मिलते हैं।"
"ठीक है सर।"
"गुड नाइट”
कहकर बृजेशने जयसूर्या से विदा ली।
बृजेश अभी पोलिस थाने से बाहर आया था और अपनी मोटरसाइकिल पर बैठने जा ही रहा था की उसका फ़ोन बज उठा।उसने फ़ोन की स्क्रीन पर देखा तो पाटिल का फ़ोन था जिसे शर्मिला पर जासूसी करने के लिए उसने नियुक्त किया था।
उसने मोबाइल कान से लगाया।
"क्या नई खबर है पाटिल?"
"साहब।जब शर्मिला मैडम आठ बजे घर आईं, तो उनके साथ एक बुर्का पहने हुए एक महिला भी थी।"
बृजेश को यह बात कुछ खास नहीं लगी। इसलिए उसने थोड़ा गुस्से से कहा,
"इसमें क्या खास बात है पाटिल?वो उसकी कोई फ्रेंड होगी?या कोई नौकरानी होगी?"
"सर।मैंने पहली बार किसी को शर्मिला के घर आते देखा है इसलिए सोचा कि शायद यह ज़रूरी होगा।इसलिए आपको बता दिया।"
"ठीक है।अच्छी जानकारी है।इसी तरह शर्मिला पर अपनी नज़र गढ़ाए रखना ठीक है?"
बृजेश को तो यह जानकारी बेकार ही लगी थी फिरभी उसने पाटिल हौंसला अफजाई कराने के लिए इसकी तारीफ़ की।
बृजेश के मुंह से तारीफ सुनकर पाटिल को भी अच्छा लगा।उसने सीना फुलाते हुए जवाब दिया।
"ठीक हे सर।"
बृजेश के जाते ही जयसूर्याने शर्मिला को फ़ोन मिलाया।
मेतो दीवानी हो गई
प्यार में तेरे खो गई।
जैसे ही जयसूर्या का नाम स्क्रीन पर दिखाई दीया शर्मिला के चेहरे पर एक चंचल मुस्कान आ गई।
"कहिए जयसूर्याजी याद क्यों किया?"
जयसूर्या भी मस्ती के मूड में था।
"यादों का सहारा ना होता
तो हम छोड़ के दुनिया चल जाते।
तलत महमूद के दर्दीले गाने के बोल जयसूर्या ने गुनगुनाए।
शर्मिलाने उसका मजा लेते हुए मजाकिया अंदाज में कहा।
"क्या बात है तुम तो बहुत उदास लग रहे हो?"
"हाँ बिल्कुल।मैं बहुत ज्यादा दुखी हूँ।"
जयसूर्या की आवाज़ में कंपन था।
शर्मिला जयसूर्या से बात करके ओर आनंद ले रही थी।
"क्यों?"
उसने पूछा।
फिर जयसूर्या ने एक और गाना गाया।
"मन मेरा तुझको मांगे
और दूर-दूर तू भागे।"
इस बार शर्मिला से अपनी हँसी रोकी न गई। उसने हंसते हंसते कहा।
"पागल।पागल।लगता है तुम पागल हो गए हो।"
"अभी तक तो नहीं।लेकिन अगर तु मुज़े जल्द नहीं मिली तो तो ज़रूर पागल हो जाऊंगा।"
शर्मिलाने अपने मोबाइल पर रिकॉर्डिंग शुरू करते हुए कामुक स्वर में कहा।
"लगता है कांस्टेबल साहब की वर्दी अब उतारवानी ही पड़ेगी।"
"हाँ शर्मिला।मैं भी तो यही इंतज़ार कर रहा हूँ कि तु कब अपनी नाज़ुक उंगलियों से मेरी वर्दी के बटन खोले और मैं तुम्हारी ब्रा....."
"छट.बहुत बेशर्म हो।"
शर्मिलाने बनावटी गुस्सा दिखाया।
तभी जयसूर्याने ठंडी आह भरते हुए कहा।
"कब तक इंतज़ार करवाओगी?अब तो हरी झंडी दे दो।"
जयसूर्याकी बेताबी देखकर शर्मिला फिर हँसने लगी।और बेहद कामुक लहजे में बोली।
"जयसूर्या जी।आपकी बातें सुनकर मेरे भी तन-बदन में आग लग जाती है।"
"तो..तो किस लिए इंतज़ार कर रही हो ओर करवा रही हो?क्या मैं अभी आ जाऊँ?"
"नहीं।अभी नहीं जयसूर्या।अभी नहीं लेकिन अब वो दिन भी दूर नहीं जब तुम और मैं एक-दूसरे की बाहों में होंगे।"
यह शर्मिला के अभिनय की चरमसीमा थी। और जयसूर्या इसे सच समझकर बहक रहा था।उसने इस बात पर गौर किया कि शर्मिलाने जयसूर्याजी से जी हटा दिया था और उसे इस बार सिर्फ़ जयसूर्या कहकर संबोधित किया था।
"तुने मुझे अब सिर्फ़ जयसूर्या कहा तो मुझे ऐसा लगा शर्मिला।जैसे मैं तेरे बहुत करीब पहुँच गया हूँ।अब अगर तु मुझे जल्द से जल्द अपने गले लगा लेती है तो मेरी सारी ख्वाहिशें पूरी हो जाएँगी।"
"और जयसूर्या तुम्हारी ख्वाहिशें पूरी करने के बीच अगर तुम्हारे इंस्पेक्टर को पता चल गया कि हमारे बीच कुछ चल रहा है तो फिर क्या होगा?"
"तो मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।लेकिन उसे कौन बताएगा?मैं तो उसे नहीं बताऊँगा। और मुझे लगता है तु भी उसे क्यू बताएगी?"
"उस जासूस का क्या जो उसने मेरे पीछे लगाया है?"
"हाँ।ये है।उसका ध्यान रखना होगा।"
जयसूर्या को अब याद आया कि बृजेशने शर्मिला पर नज़र रखने के लिए पाटिल को लगा रखा है।अब उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी कि कहीं शर्मिला का फ़ोन टैप तो नहीं हो रहा है?
लेकिन उसके उस डर के बीच शर्मिलाने उसे खुशी का एक झटका दिया।
"क्या तुम कल रात आ सकते हो?"
शर्मिला के निमंत्रण पर जयसूर्या खुशी से उछल पड़ा।
"क्या?क्या कहा तुने?"
"हाँ या ना?"
"जिस घड़ी का मैं बेसबरी से इंतज़ार कर रहा हूँ वो वो घडी मेरे सामने आकर खड़ी हो तो में इन्कार कैसे कर सकता हूं?"
जयसूर्या का दिल खुशी से उछलने लगा था।
(क्या शर्मिला जयसूर्या की इच्छा पूरी करेंगी या ये शर्मिला की कोई चाल होगी)