🌘 एपिसोड 22 – “काली रौशनी का वादा”
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1. धुएँ से ढकी सुबह
दिल्ली की उस सुबह में हल्की ठंड थी।
मलिकपुर गाँव के किनारे एक पुराना मकान खड़ा था — जर्जर, दीवारों पर काई और टूटी हुई खिड़कियों से झाँकती अँधेरी परछाइयाँ।
लोग कहते थे, ये वही घर है जहाँ कभी आदित्य वर्मा, वो लेखक, अपनी आख़िरी किताब पूरी करने आया था — “काली रौशनी का वादा”।
पर वो किताब कभी पूरी नहीं हुई।
बस उसका आधा हिस्सा मिला — और उसी के बाद से वहाँ कोई नहीं टिका।
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2. अनाया की तलाश
दरभंगा की हवेली की राख से निकलने के बाद, अनाया अब दिल्ली पहुँच चुकी थी।
उसके हाथ में वही अधूरी किताब थी — जिसके पन्नों से अब भी स्याही की नहीं, खून की गंध आती थी।
रात भर ट्रेन में सफर करते हुए उसने सिर्फ एक चीज़ दोहराई थी —
> “अगर लेखक ज़िंदा है, तो उसे ये किताब लौटानी होगी... ताकि ये रूहें चैन पा सकें।”
वो जानती थी, अब ये कहानी सिर्फ एक किताब नहीं — एक अधूरी आत्मा का वादा थी।
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3. मलिकपुर की हवेली
गाँव में पहुँचते ही, कुछ बच्चे दूर भाग खड़े हुए।
एक बुज़ुर्ग औरत, झुकते हुए बोली —
“बिटिया... इधर कौन आता है? रात होते ही इस मकान से आवाज़ आती है — कोई पढ़ता है... जैसे कोई पन्ना पलटता हो...”
अनाया ने धीरे से मुस्कुराकर कहा,
“उसे पढ़ने दो, मैं बस मिलने आई हूँ।”
बूढ़ी औरत काँप उठी,
“अगर वो सच में ज़िंदा है, तो लौट आना बेटी... क्योंकि वो अब आदमी नहीं रहा...”
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4. स्याही का कमरा
हवेली का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुला।
अंदर घुप्प अंधेरा था, पर एक कमरे से हल्की पीली रौशनी झर रही थी — जैसे कोई दीया अब भी जल रहा हो।
अनाया अंदर बढ़ी।
दीवारों पर अधूरी पेंटिंग्स थीं — चेहरों के बिना इंसान, और इंसानों के बिना परछाइयाँ।
टेबल पर वही पुरानी टाइपराइटर रखी थी, और उसके पास बैठा कोई था — धुएँ के बीच, झुका हुआ, लिखता हुआ।
“आदित्य वर्मा?” अनाया की आवाज़ टूटी।
वो शख़्स धीरे से उठा। उसकी आँखें गहरी, पर जीवित नहीं थीं।
वो बोला —
“किताब मेरे पास थी... लेकिन तुम उसे क्यों लाईं? वह अब मेरी नहीं, तुम्हारी है।”
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5. अनकहे शब्द
अनाया काँप गई। “ये किताब... अधूरी थी। तुमने लिखा, लेकिन तुमने अंत क्यों नहीं दिया?”
आदित्य ने टाइपराइटर पर उँगलियाँ रखीं —
> “क्योंकि अंत किसी इंसान के हाथ में नहीं था...
इस किताब का हर शब्द किसी आत्मा के कहने से लिखा गया था।
और जब आख़िरी आत्मा बोली — मैं डर गया।”
वो हँसा, पर उसकी हँसी में दर्द था।
> “तुमने वो किताब पूरी कर दी, अनाया।
दरभंगा की हवेली में जो आग लगी — वो अंत नहीं था, वो मेरी कहानी का पुनर्जन्म था।”
अनाया की आँखें फैल गईं —
“तो तुम जानते थे कि हवेली में क्या होगा?”
आदित्य ने धीरे से सिर झुका लिया —
“जानता था। लेकिन मैं रुक नहीं सका। क्योंकि ‘काली रौशनी’ को पूरा करने के लिए किसी न किसी को अपनी आत्मा देनी ही थी।”
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6. दीवारों की फुसफुसाहट
अचानक कमरे की दीवारें हिलने लगीं।
टाइपराइटर अपने आप टाइप करने लगी —
“कहानी खत्म नहीं हुई... जब तक रूह लिखेगी, अंधेरा ज़िंदा रहेगा।”
अनाया ने किताब को कसकर पकड़ लिया। पन्ने अपने आप पलटने लगे।
हर पन्ने पर एक चेहरा उभर रहा था — हवेली के वो सारे लोग जो मरे थे।
आदित्य चीखा —
“किताब बंद कर दो! वो अब तुझसे जुड़ चुकी है!”
पर अब बहुत देर हो चुकी थी।
किताब का आख़िरी पन्ना जल उठा, और कमरे में काली रौशनी फैल गई।
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7. वादा
जब धुआँ छँटा, तो कमरे में सिर्फ एक दीया बचा था — वही जो शुरुआत से जल रहा था।
अनाया वहाँ नहीं थी।
बस टाइपराइटर पर एक नया पन्ना रखा था:
> “वादा है, ये कहानी तब तक लिखी जाएगी,
जब तक हर रूह अपनी आख़िरी स्याही से मुक्ति न पा ले।”
दरवाज़े के बाहर गाँव वाले भागे हुए थे —
कहते हैं, उस रात हवेली से किसी औरत की आवाज़ आई थी जो बार-बार बोल रही थी —
> “मैं अधूरी नहीं... मैं वो अंत हूँ जो कोई लिख न सका।”
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8. और अगली सुबह…
अगली सुबह दिल्ली के एक बुकस्टोर में एक नई किताब रखी गई —
“काली रौशनी का वादा – लेखक: अनाया सेन”
पर अजीब बात यह थी —
उस बुकस्टोर के मालिक ने कहा, “ये किताब तो मैंने खरीदी ही नहीं… ये तो रात अपने आप यहाँ आ गई थी।”
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अगले एपिसोड की झलक:
> अब जब किताब दुनिया के सामने है, तो हर पाठक जो इसे पढ़ेगा — वो कहानी का हिस्सा बन जाएगा।
पर सवाल ये है — कौन होगा अगला लेखक?
एपिसोड 23 – “अधूरी लौ, अनाया की नई शुरुआत” 🔥
(जहाँ प्रेम और मृत्यु के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है…)