👁️🕯️ एपिसोड 30 — “किताब की वापसी”
(कहानी: अधूरी किताब
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1. दिल्ली से दरभंगा तक
दिल्ली की सर्द रात में एक पुरानी किताब हवा के झोंके के साथ पुरानी बुक शॉप की खिड़की से अंदर आ गिरी।
मालिक — राघव मिश्रा, पुरानी किताबों का शौकीन था, लेकिन आज वो किसी अजीब बेचैनी में था।
किताब का कवर आधा जला हुआ था —
उस पर लिखा था —
> “The Forgotten Author — Final Chapter”
By Anvi Rathore
राघव ने हल्के से मुस्कराया —
“ओह, फिर वही श्रापित किताब…”
उसने किताब को अपने बुक सेल्फ पर रख दिया।
पर उसी रात, दुकान के अंदर टाइपराइटर की आवाज़ गूंज उठी —
> “टिक... टिक... टिक...”
राघव चौका —
“किसने चालू किया ये?”
पर वहाँ कोई नहीं था।
सिर्फ किताब का कवर अब बदल चुका था —
अब उस पर नया नाम उभरा था:
> “The Book Writes Again…”
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2. राघव की रूहानी रात
राघव ने किताब खोली।
पहला पन्ना ख़ाली था।
पर दूसरे पन्ने पर कुछ लिखा जा रहा था — अपने आप।
> “वो जो किताब पढ़ता है… वही अगला लेखक बनता है…”
उसके माथे पर पसीना था।
उसने लाइट बंद करने की कोशिश की, मगर बिजली अपने आप चली गई।
अब सिर्फ मोमबत्ती की रोशनी बची थी,
और उस रोशनी में स्याही हिल रही थी — जैसे ज़िंदा हो।
> “कौन है वहाँ?” राघव ने काँपते हुए पूछा।
दीवार से आवाज़ आई —
> “हम हैं वो किरदार… जिन्हें तुम भूल चुके हो।”
दीवार पर परछाइयाँ बन रही थीं —
अन्वी, रियान, और विक्रम राठौर — तीनों की।
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3. किताब की फुसफुसाहट
राघव पीछे हटा —
उसकी उंगलियाँ नीली स्याही से रंग चुकी थीं।
> “मुझे क्या चाहिए तुम लोगों को?”
“सिर्फ एक चीज़…”
“क्या?”
“अंत।”
स्याही की एक लकीर हवा में उठी और उसकी गर्दन को छू गई।
किताब अपने आप खुली —
अंदर लिखा था —
> “Next Author: Raghav Mishra.”
वो पन्ना चमक उठा,
और राघव की आँखों से खून की बूंदें टपकने लगीं।
हर बूंद से एक शब्द बनता गया —
“Fear. Ink. Death.”
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4. दरभंगा की छाया
अगली सुबह, बुक शॉप बंद पाई गई।
लोगों ने देखा —
दरवाज़े पर स्याही से लिखा था —
> “कहानी यहाँ खत्म नहीं होती…”
किताब अब दरभंगा के एक ट्रेन स्टेशन पर किसी यात्री की बैग में रखी थी।
ट्रेन नंबर — 13225 दरभंगा एक्सप्रेस।
वो यात्री थी — काव्या सेन,
एक पत्रकार, जो “रूहानी केस” की जांच के लिए दरभंगा जा रही थी।
उसे नहीं पता था कि उसकी बैग में वही किताब रखी है, जो अब अपने अगले लेखक को ढूंढ रही थी।
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5. रात की खामोशी
ट्रेन के डिब्बे में सिर्फ तीन लोग बचे थे।
काव्या ने अपनी डायरी निकाली और लिखा —
> “कभी-कभी सच्चाई जानना भी मौत को बुलावा देना होता है।”
अचानक खिड़की के पास कोई बैठा दिखा — धुँधला चेहरा, जैसे स्याही से बना हुआ।
> “तुम देर कर चुकी हो, काव्या…” आवाज़ आई।
“कौन हो तुम?”
“मैं वही हूँ… जिसे तुम पढ़ने वाली हो।”
काव्या ने किताब खोली —
अंदर वही नाम लिखा था —
> “By KAVYA SEN.”
वो हँस पड़ी — “क्या मज़ाक है!”
पर अगले ही पल किताब के पन्नों से स्याही उठकर उसके गले पर लिपट गई।
वो चीख़ नहीं पाई।
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6. स्याही का श्राप
ट्रेन जब दरभंगा पहुँची,
यात्रियों ने देखा —
एक सीट पर किताब रखी थी, और पास में एक टूटी हुई कैमरा लेंस।
किताब पर अब नया नाम लिखा था —
> “The Forgotten Author – Shadow Edition”
By Kavya Sen
उस पन्ने पर आख़िरी लाइन चमक रही थी —
> “अब किताब लिखेगी, जो पढ़ेगा…”
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7. अंतिम दृश्य
दरभंगा की हवेली के अंदर
एक बच्ची दीवार पर कुछ लिख रही थी —
स्याही से, जो ज़मीन से निकल रही थी।
> “माँ, ये शब्द अपने आप चल रहे हैं…”
पीछे दीवार पर धीरे-धीरे उभरने लगा नाम —
“Next Victim — Ruhaani Sen”
और हवा में गूँज उठा वही पुराना टाइपराइटर का संगीत —
> “टिक... टिक... टिक...”
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🕯️ एपिसोड 30 समाप्त
(अब किताब “रूहानी सेन” तक पहुँच चुकी है — एपिसोड 31 में किताब पहली बार रूह से खुद को लिखवाना शुरू करेगी… यानी “किताब अब खुद रूह बन गई है।”)
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