ओम नमः शिवाय इतना ही कहानी नया सफर।
🔥 दो आग का टकराव: एक जुनून भरी दास्तान 🔥
"हमने हमेशा सुना है कि आग और पानी में तकरार होती है… पर इस बार कहानी कुछ अलग है।
क्योंकि इस बार… आग से टकराई है आग।" 💥
यह कहानी है इंद्रजीत खन्ना और माया की। दो ऐसे लोगों की जिनके अंदर जुनून है, ज़िद है, और अपने-अपने उसूलों के लिए लड़ जाने का पागलपन भी।
👑 इंद्रजीत खन्ना: हुकूमत का जुनून
एक नाम, जो हर बिज़नेस मीटिंग में खौफ के साथ लिया जाता है। पावर उसका खेल है, कंट्रोल उसका जुनून। वो वो इंसान है जो किसी को भी अपने रास्ते से हटा सकता है, फिर चाहे वो रिश्ता हो, खून का हो या दिल का। (Emotion: Power, Ruthlessness)
🦅 माया: आज़ादी की ज़िद
दूसरी तरफ़ है माया – एक तेज़, आज़ाद, और निडर लड़की। जो किसी के बनाए रास्तों पर नहीं चलती, बल्कि अपनी मंज़िल खुद तय करती है। (Emotion: Fierceness, Independence)
जब ये दो आग टकराएगी… तो जो पैदा होता है वो प्यार नहीं… जुनून, दर्द, लड़ाई और आग की बरसात होती है।
इंद्रजीत को आदत है हर चीज़ पर हुकूमत करने की, पर माया जैसी लड़की को कोई भी बंदिश मंज़ूर नहीं। वो ना झुकती है, ना डरती है, और ना किसी के आगे रुकती है।
उनकी मुलाकात महज़ इत्तेफाक नहीं, एक ऐसा टकराव है जो दोनों की जिंदगी बदल देता है। ⚡️
वो एक-दूसरे से नफरत भी करते हैं, पर जब पास आते हैं, तो दुनिया रुक जाती है। उनके बीच जो रिश्ता बनता है वो प्यार नहीं… एक जंग है – पावर की, इमोशन्स की, और वजूद की।
🤔 सवाल जो दिल को छूते हैं:
क्या इंद्रजीत माया को बदल पाएगा… या माया इंद्रजीत को खुद में डुबो देगी?
क्या यह मोहब्बत है या सिर्फ़ पागलपन? 💔
क्या दो आग मिलकर रौशनी बनेंगी… या सब कुछ राख कर देंगी? 🌑
अगर आप भी उन कहानियों में यकीन रखते हैं जहां हीरो परफेक्ट नहीं होता, हीरोइन सिर्फ़ सौम्य नहीं होती, और जहां मोहब्बत सिर्फ़ फूलों की सेज नहीं, बल्कि कांटों की आग होती है…
तो ये कहानी आपके लिए है।
"पढ़िए एक खतरनाक मोहब्बत की दास्तान… जहां कोई भी हार नहीं मानता, क्योंकि दोनों ही जलाने आए हैं… बुझाने नहीं।" 😈
चैप्टर 1
घनी, स्याह रात थी। आकाश में न चाँद की कोई किरण थी, न तारों का कोई निशान—बस एक ऐसा गहरा अंधेरा जिसने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रखा था। कहीं दूर, इस खामोशी को चीरते हुए, कुत्तों के भौंकने की एक बेचैन आवाज़ गूंज रही थी और सूनी सड़कों की डामर पर दो घबराए हुए साए दौड़ रहे थे।
मोक्ष—बाईस साल का एक नौजवान—अपनी छोटी बहन, गुड्डी (मराठी में जिसका अर्थ है गुड़िया या छोटी बहन), को अपनी बाहों में कसकर उठाए हुए था। उसके चेहरे पर पसीने और धूल की परत जम चुकी थी।
गुड्डी, जिसकी उम्र बस बारह साल थी, का चेहरा भय और थकावट से सफेद पड़ चुका था। उसके होंठ सूख रहे थे और पैरों से खून रिस रहा था, लेकिन इस वक्त उसे शारीरिक दर्द की परवाह नहीं थी। डर ने उसकी छोटी सी सांसों को जकड़ लिया था।
"दादा (बड़े भाई)… मेरे पैर दुख रहे हैं। अब नहीं भाग सकती," गुड्डी ने हाँफते हुए, अपनी मासूमियत और बेबसी से भरी आवाज़ में फुसफुसाया।
मोक्ष ने अपनी बाजू से पसीना पोंछा। उसकी आँखें अंधेरे में भी खतरे को तलाश रही थीं। "गुड्डी, बस थोड़ी देर और। रुक गए तो वो लोग हमें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे," उसने कड़कती हुई आवाज़ में कहा, जो डर से काँप रही थी।
उसने गुड्डी को और कसकर अपनी छाती से लगा लिया। उसकी अपनी धड़कनों की रफ्तार इतनी तेज़ थी कि उन्हें कदम जमीन पर पड़ने की आवाज़ से ज़्यादा महसूस किया जा सकता था।
आसपास हर तरफ भयानक वीरानी पसरी थी। मोक्ष की नज़रें एक बचाव की जगह की तलाश में इधर-उधर भटक रही थीं। तभी, कुछ दूरी पर, उसकी निगाह एक पुराने खंडहर पर पड़ी। उसकी दीवारें जगह-जगह से टूटी हुई थीं, मुख्य दरवाज़ा जर्जर था और पत्थरों पर काई जम चुकी थी। वह जगह डरावनी थी, पर इस वक्त वही उनकी एकमात्र, अंतिम उम्मीद थी।
मोक्ष, गुड्डी को बाहों में दबाए हुए, फुर्ती से उस जर्जर खंडहर के अंदरूनी अँधेरे में दाखिल हुआ। अंदर का माहौल भयानक था—हवा में सीलन और सड़ी हुई बदबू तैर रही थी, और हर कोने में धूल तथा गंदगी लिपटी थी। यह जगह डरावनी थी, मगर इस वक़्त यह उनके लिए मौत से बेहतर थी। उन्हें किसी भी कीमत पर छुपने की जगह चाहिए थी।
उसने कमरे में अपनी आँखें दौड़ाईं। उसकी नज़र एक पुरानी, टूटी हुई अलमारी पर टिकी। लकड़ी की अलमारी, जो शायद बरसों से किसी ने नहीं खोली थी, धूल और जाले से ढकी थी।
मोक्ष ने गुड्डी को वहीं ज़मीन पर बिठाया और उसके काँपते कंधों को थपथपाया। "गुड्डी, मेरी बात ध्यान से सुन," उसने फुसफुसाते हुए कहा, "तू इस अलमारी में छुप जा। मैं उन लोगों का ध्यान भटका दूँगा। फिर मौका मिलते ही तुझे लेकर यहाँ से निकल जाऊँगा।"
गुड्डी की आँखों में डर का सैलाब साफ दिख रहा था। उसकी साँसें तेज़ और उथली थीं।
"दादा, प्लीज़… मत जाओ। मुझे बहुत डर लग रहा है," उसने अपनी छोटी सी मुट्ठी से मोक्ष की कमीज़ को कसकर पकड़ लिया।
मोक्ष ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा। अपनी आँखों में साहस भरते हुए उसने गुड्डी की काँपती आँखों में देखा और कहा, "तू तो मेरी शेरनी है न? बस थोड़ी देर की बात है। मैं अभी आता हूँ।"
फिर अचानक, न जाने क्या सोचकर, उसने तेज़ी से गुड्डी का दुपट्टा लिया और उसके छोटे हाथ-पैर हल्के से बाँध दिए। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, मोक्ष ने अपना रुमाल निकाला और उसके मुँह में धीरे से ठूँस दिया। गुड्डी की आँखें हैरानी और आँसूओं से भर गईं।
मोक्ष ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया। उसकी आवाज़ में दर्द और मजबूरी थी, "माफ़ कर दे, गुड्डी। मगर मेरी कसम, जब तक मैं वापस न आऊँ, ये रुमाल मत निकालना। चाहे कुछ भी हो जाए। आवाज़ मत करना। अगर तुझे चीखें सुनाई दें, तब भी मत निकलना। समझी?"
गुड्डी के गालों से आँसू लगातार बह रहे थे, और वह सिर हिलाकर 'न' कहना चाहती थी। लेकिन मोक्ष ने उसकी बात नहीं मानी। यह उसकी आखिरी उम्मीद थी।
उसने उसके माथे पर एक गहरा चुम्बन दिया—शायद एक आखिरी विदाई का चुम्बन। फिर उसने अलमारी का दरवाज़ा धीरे से बंद कर दिया। बाहर से, उसने कुछ टूटे हुए डिब्बे और लकड़ियाँ अलमारी के आसपास इस तरह से रख दिए ताकि किसी को यह शक न हो कि अंदर कोई छुपा हुआ है।
मोक्ष को पता था कि अब उसे अंधेरे के इस खेल में अकेले उतरना है।
मोक्ष ने ज़मीन पर पड़ी लकड़ियों और टूटे डिब्बों से पीछे हटकर, खंडहर के प्रवेश द्वार से बाहर कदम रखा। अँधेरे को चीरती हुई सामने की स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में, वह दृश्य स्पष्ट हो गया।
लगभग आठ-दस गुंडों का झुंड, जिनके हाथों में हथियार थे—गन की ठंडी चमक, हॉकी स्टिक की मारक क्षमता, और चाकूओं की धार। उनके चेहरों पर नफ़रत नहीं, बल्कि दरिंदगी थी। आँखों में वहशीपन और बदले की आग धधक रही थी।
उनमें से एक मोटा-तगड़ा गुंडा, जिसका नाम रघु (Ragh) था, आगे बढ़ा। उसके चेहरे पर भयानक मुस्कान थी।
"कहाँ भागेगा रे, मोक्ष? तूने क्या सोचा, गैंग के साथ गद्दारी करेगा और हम छोड़ देंगे?" रघु की आवाज़ अँधेरे में गूँजी।
मोक्ष ने अपनी साँस रोकी। गुस्से में उसकी नसें तन गईं।
"मैंने कुछ नहीं किया," उसने सपाट लहज़े में कहा।
रघु ज़ोर से हँस पड़ा। "ओह! तो तूने 'आर.आर.' (RR) की इनफॉर्मेशन पुलिस को नहीं दी?" उसकी आँखों में एक खतरनाक सवाल था।
"तुम्हें क्या लगता है?" मोक्ष ने अपनी आँखों में अंगारे भरते हुए कहा, "तुम लोग ये सब गंदा धंधा करते रहोगे और कोई आवाज़ नहीं उठाएगा?"
यह सुनते ही गुंडों ने उसे पूरी तरह घेर लिया।
एक गुंडा मुँह बनाते हुए बोला, "अंडरवर्ल्ड में घुसना आसान है, लेकिन निकलने का एक ही तरीका है—मौत।"
मोक्ष के चेहरे पर अब भी डर का कोई निशान नहीं था। यह बात गुंडों को और ज़्यादा गुस्सा दिला रही थी। उसने एक गहरी साँस ली और खुद को आगामी दर्द के लिए तैयार किया। वह अकेला था, निहत्था, जबकि गुंडे पूरी तैयारी में थे।
अचानक, रघु के इशारे पर एक गुंडे ने तेज़ी से उसके पेट में हॉकी मारी। मोक्ष दर्द से थोड़ा झुका, इससे पहले कि वह सीधा हो पाता, दूसरे ने उसकी पीठ पर डंडा मारा।
उनकी मार लगातार पड़ती रही—बरसात की बूँदों की तरह तेज़ और बेरहम। मगर मोक्ष ने न घुटने टेके, न माफ़ी माँगी।
"बोल, 'आर.आर.' की जानकारी किसे दी?" रघु ने चिल्लाते हुए मोक्ष को ज़मीन पर गिरा दिया और उसकी छाती पर चढ़ बैठा।
मोक्ष ने खून थूकते हुए, कमज़ोर आवाज़ में कहा,
"जिसे दी है, वो अब तुम्हारा अंत करेगा। मैं मर जाऊँगा, मगर नाम नहीं बताऊँगा।"
और फिर, उसने अपने मुँह से निकले खून से मिला थूक रघु के चेहरे पर फेंक दिया।
रघु गुस्से से काँप उठा। उसकी आँखों से खून उतर आया। उसने अपनी पूरी ताक़त से, हॉकी से मोक्ष की छाती पर ज़ोरदार वार किया। मोक्ष के मुँह से और खून बह निकला, लेकिन उसकी आँखों में अब भी वही मज़ाकिया मुस्कान थी। वह जैसे कह रहा हो—'जितना मारना है, मार लो। मैं नहीं टूटने वाला।'
खंडहर के भीतर, गुड्डी अलमारी के दरवाज़े पर मौजूद एक छोटे से छेद से यह सब देख रही थी। मोक्ष पर हो रहे हर वार ने उसके छोटे से दिल को छलनी कर दिया था।
उसकी आँखों से आँसू लगातार बिना आवाज़ किए गिर रहे थे। उसका नन्हा शरीर बुरी तरह काँप रहा था। भाई की यह बेबस हालत देखकर उसका दिल फट रहा था; वह चीखना चाहती थी, भागकर मोक्ष को बचाने जाना चाहती थी।
मगर मोक्ष की कसम—कि चाहे कुछ भी हो जाए, आवाज़ नहीं करनी है—उसे मौन रहने पर मजबूर कर रही थी।
ठीक उसी पल, जब बाहर मोक्ष ने अपने मुँह से खून की आखिरी फुहार बाहर निकाली और उसका शरीर ज़मीन पर ढीला पड़ गया, भीतर अलमारी के अँधेरे में गुड्डी की चेतना ने हार मान ली।
वह दर्द, सदमा और बेबसी का यह भयानक दृश्य और सहन नहीं कर पाई। उसकी आँखें खुली थीं, मगर दृष्टि शून्य हो गई थी। मोक्ष की कसम और खूनी मंज़र के बीच फँसकर, अंत में, गुड्डी गहरे सदमे में बेहोश हो गई। उसका शरीर अलमारी के कोने में एक निर्जीव गुड़िया की तरह लुढ़क गया।
रात के भयानक अंधेरे को चीरते हुए, अचानक एक तीखी, दर्द भरी चीख गूँजी।
"मोक्ष दादा!"
माया बिस्तर पर हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसका पूरा शरीर पसीने से तर था, जैसे वह सचमुच आग की लपटों से गुज़री हो। उसकी साँसें तेज़ी से चल रही थीं, और उसकी आँखें लाल थीं, जिनमें अभी भी उस भयानक दृश्य का खौफ बाकी था।
बगल में सोई उसकी रूममेट, अंजलि, घबराकर जाग गई। उसने माथे पर शिकन डालते हुए पूछा, "क्या हुआ माया? सब ठीक है? तुम इतनी डरी हुई क्यों लग रही हो?"
माया ने काँपते हाथों से मेज पर रखा पानी का गिलास उठाया और एक ही घूँट में पी लिया। उसने खुद को संभालने की कोशिश की और लड़खड़ाती आवाज़ में कहा, "कुछ नहीं… बस एक बुरा सपना।"
अंजलि ने इत्मीनान से उसे देखा और करवट बदलकर फिर से सोने की कोशिश करने लगी।
जैसे ही अंजलि की साँसों की लय से लगा कि वह फिर से सो गई है, माया धीरे से बिस्तर से उतरी। सपने की भयानक गूँज अभी भी उसके कानों में थी—वह चीख, वह नाम।
उसने कपबोर्ड खोला। बिना रोशनी जलाए, उसने तेज़ी से एक ब्राउन कलर की हूडी पहनी, अपने लंबे बाल उसमें छिपाए, और अपनी गर्दन तक चेहरा ढँक लिया। फिर, दबे पाँव वह कमरे से बाहर निकली, अपनी पुरानी साइकिल उठाई और आधी रात के सन्नाटे में घर से निकल पड़ी।
उसे नहीं पता था कि कोई अज्ञात साया उसे छुपकर जाते हुए देख रहा था, जो अंधेरे में एकटक उसकी सवारी की दिशा को घूर रहा था।
माया तेज़ी से अपनी साइकिल को मोड़कर एक पुरानी, सुनसान इमारत के सामने रुकी। बाहर नाम पट्टिका पर मोटे अक्षरों में लिखा था: "देशमुख अखाड़ा"। यह उसकी गुप्त जगह थी।
खंडहर जैसी दिखने वाली उस इमारत के भीतर, दंगल के औजार, भारी ज़ंजीरें और बीच हवा में लटकता एक भारी पंचिंग बैग मौजूद था। माया ने अपने दस्ताने पहने और बिना एक पल रुके, पूरी ताक़त से उस पंचिंग बैग पर घूँसों की बौछार शुरू कर दी।
हर मुक्के के साथ, उसकी आँखों के सामने अपने भाई, मोक्ष की लाश, बार-बार घूम रही थी—वह दर्दनाक चीख, वह भयानक मंज़र।
"आर.आर. (RR)... तुझे मैं बर्बाद कर दूँगी। एक-एक का हिसाब लूँगी," उसके होंठों से फुसफुसाहट नहीं, बल्कि एक दहाड़ निकली।
तभी, पीछे से किसी ने उसकी कलाई को कसकर पकड़ लिया।
"माया! बस कर!"
वो कोई और नहीं, मोहना थी—माया की सबसे करीबी दोस्त, जिसने उसे आधी रात को जाते हुए देखा था और उसका पीछा करते हुए अखाड़े तक पहुँच गई थी।
"क्या कर रही है? अपनी जान खुद ही ले लेगी क्या?" मोहना की आवाज़ में चिंता थी।
माया फिर भी नहीं रुकी। उसकी आँखें खून की तरह लाल थीं। उनमें गुस्सा, दर्द और पागलपन सब एक साथ उबल रहा था।
विवश होकर, मोहना ने पास रखी बोतल से खींचकर पानी उसके चेहरे पर फेंका। ठंडे पानी के छींटों से माया की उग्रता थोड़ी कम हुई। उसकी साँसें अभी भी तेज़ थीं, मगर अब उसकी तीखी नज़रें मोहना पर टिक गईं।
"मोहना, मैं क्या करूँ? दस साल हो गए हैं कोशिश करते हुए। न कोई सबूत मिला, न कोई गुनहगार। हर रात वही सपना देखती हूँ," माया की आवाज़ दर्द से टूट गई।
मोहना ने बिना कुछ कहे, उसे कसकर गले लगा लिया।
फिर वह सर सीसकते हुए मोहन से आगे कहती है तुझे पता है जब मैं बेहोश होने के 10 -15 दिन बाद आंखें खोली तो मैं खुद को अस्पताल की चार दिवारीयों में पाया।
माया ने अपनी आँखों में भरे आँसूओं को दबाते हुए, दर्द भरे अतीत की परतों को खोलना शुरू किया। उसकी आवाज़ में बेपनाह अकेलापन था, जो उस भयानक रात के बाद से उसके साथ रह रहा था।
"जब मैं होश में आई," उसने भारी साँस खींचते हुए कहा, "मेरे आजू-बाजू सब थे—आई (माँ), बाबा (पिता), आजी (दादी), अजूबा (दादा जी), दीयू (बड़ी बहन)। पूरा परिवार था, पर मेरे दादा (बड़ा भाई मोक्ष) नहीं थे।"
उसकी धुंधली आँखें चारों तरफ उन्हें ढूंढ रही थीं, एक परिचित साया, एक सहारा। "पर वह कहीं नहीं दिखे।"
उसने एक गहरी, बेचैन कर देने वाली साँस छोड़ी। उसके चेहरे पर एक अजीब, मज़ाकिया मुस्कान आई, पर उसकी आँखों में हल्की नफ़रत और नाराज़गी साफ झलक रही थी। वह पल उसके लिए सबसे क्रूर था।
"तुम्हें पता है? जब मैंने आई और बाबा से सवाल किया कि दादा कहाँ हैं… तो तुम्हें पता है उन्होंने मुझे क्या जवाब दिया?"
माया ने अपनी साँसों को दर्द भरे बोझ के तरीके से छोड़ा।
"उन्होंने कहा कि… मेरे दादा एक गुंडे हैं। एक ऐसा आदमी, जिसने लाखों लोगों की ज़िंदगी बर्बाद की। जिसकी वजह से… उनके ही साथी गुंडों ने उन्हें मौत के घाट…"
वह इससे आगे बोल नहीं पाई। शब्द उसके गले में अटक गए। वह दर्द इतना तीव्र था कि उसने अपनी आँखों को कसकर बंद कर लिया, मानो वह उस दृश्य को, उस अपमान को हमेशा के लिए मिटा देना चाहती हो।
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मोहना ने उसे ढाँढस बंधाया। "तेरा दर्द मैं समझती हूँ, माया। लेकिन खुद को ऐसे तकलीफ देने से क्या होगा?"
माया की आँखों से अब दर्द के गरम आँसू बह रहे थे। "दुनिया ने मेरे दादा (मोक्ष) को गुनहगार कहा। ड्रग डीलर, कातिल! पुलिस ने भी। लेकिन सच ये है कि वो बेगुनाह था। वो बस बुराई के खिलाफ खड़ा हुआ था।"
माया काँपते हुए, ज़ुबान पर ज़ोर देते हुए बोली, "सबसे ज़्यादा तकलीफ तब हुई जब बाबा और आई ने भी दादा को गुनहगार मान लिया। क्या इतना आसान था अपने बेटे को दोषी मान लेना?"
उसकी आँखों में आँसूओं के बावजूद बदले की आग धधक उठी।
"मैं एक दिन सबको साबित करके दिखाऊँगी कि मोक्ष राने निर्दोष था। और आर.आर. की सल्तनत को जड़ से जला दूँगी। ये माया राने का वादा है अपने दादा से।"
मोहना ने एक रहस्यमय मुस्कान दी और माया की आँखों में देखते हुए कहा, "तू भूल रही है कि तू किसकी पोती है।"
माया ने भी एक हल्की, मगर खतरनाक मुस्कान दी। उस मुस्कान में अडिग रहस्य था, बदले की गहरी आग थी, और एक लम्बी, खतरनाक लड़ाई की तैयारी।

माया राने उम्र 21 कॉलेज गोइंग स्टूडेंट और हमारी कहानी की हीरोइन।
बोलो कुछ और देर अखाड़े में गुजरते हैं उसके बाद मोहन माया को वहां से ले जाती है।
अब क्या होगा कहानी में
यह आर,आर कौन है।
कैसे लगी माया अपना बदला।
जाने के लिए पढ़िए यह कहानी ऑन प्रतिलिपि।
और प्लीज मुझे रिव्यू देना मत भूलना। कमेंट में जरूर बताना कि आपको यह कहानी कैसी लगी