"वो जो मेरा था..."
📖 Episode 5 – जहाँ रिया ने आख़िरी बार लिखा था… वहीं से शुरुआत
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कभी-कभी कोई जगह सिर्फ ज़मीन का टुकड़ा नहीं होती…
वो किसी की याद, किसी की आवाज़, और किसी की अधूरी कहानी की आख़िरी सांस होती है।
आरव ने रात को जो मैसेज भेजा था —
“कल सुबह 7 बजे तैयार रहना, तुम्हें एक जगह ले जाना है…”
वो काव्या के दिल और दिमाग़ में घूमता रहा।
कहाँ? क्यों? और किसलिए?
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🌅 अगली सुबह – मुंबई की हल्की सुबह
काव्या जब आरव की कार में बैठी, तो वो चुप था — हमेशा की तरह।
लेकिन उसकी आँखों में एक अलग चमक थी।
जैसे वो किसी डर का सामना करने जा रहा हो… या किसी उम्मीद से मिलने।
“हम कहाँ जा रहे हैं?”
काव्या ने पूछ ही लिया।
आरव: “वहीं, जहाँ रिया ने आख़िरी बार कुछ लिखा था… और शायद आख़िरी बार मुस्कराई थी।”
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🌊 रास्ता – शहर से दूर एक शांत समंदर किनारा
गाड़ी एक पुरानी, सुनसान-सी जगह पर रुकी — जहाँ समंदर की लहरें चट्टानों से टकरा रही थीं।
पास ही एक लकड़ी की बेंच थी, जिस पर बारिश की बूंदें अब भी गिर रही थीं।
उसके पीछे एक पुराना पेड़, और उस पर एक छोटा-सा नाम लिखा था — “R”
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🌳 रिया का आखिरी दिन
आरव ने बताया:
**“यहाँ हम अक्सर बैठा करते थे।
रिया इस जगह को ‘Words Point’ कहती थी।
उसका कहना था, ‘जब कुछ कह न सको, तो यहाँ आ जाना… ये हवाएँ तुम्हारे लिए बोलेंगी।’”
“उसने यहाँ आख़िरी बार कुछ लिखा था — अपनी डायरी का आख़िरी पन्ना…”
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📖 डायरी का आखिरी पन्ना
आरव ने जेब से एक कागज़ निकाला —
वही पन्ना, जो सालों से उसके पास था।
> “अगर कोई मुझसे पूछे कि मेरी सबसे बड़ी खुशी क्या थी,
तो मैं कहूँगी — वो लम्हा, जब उसने बिना कुछ कहे मेरा हाथ थाम लिया था।”
> “और अगर कोई पूछे मेरी सबसे बड़ी गलती…
तो मैं कहूँगी — उससे छुपाना, कि मैं जा रही हूँ।”
> “शायद एक दिन कोई मेरी कहानी को पूरा करेगा…
कोई ऐसा जो खुद अधूरा है।”
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⏳ काव्या – आरव को सुनती रही
उसके भीतर एक सिहरन-सी दौड़ गई।
क्या रिया ने सच में महसूस किया था कि कोई और आएगा, जो उसकी अधूरी कहानी लिखेगा?
क्या वो "कोई और" काव्या है?
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☕ पास ही एक टपरी – और दो कप चाय
आरव और काव्या एक सादी सी दुकान पर बैठे — चाय की गर्मी और हवा की ठंडक में खोए हुए।
काव्या ने पूछा:
“क्या आपने कभी रिया से पूछा था, कि वो इतनी जल्दी क्यों जा रही थी?”
आरव ने गहरी साँस ली:
“मैंने उससे कभी कुछ नहीं पूछा… क्योंकि मुझे लगा, अगर मैंने पूछा, तो जवाब खो दूँगा।”
काव्या:
“और अब…?”
आरव:
“अब लगता है कि सवाल ही रह गए हैं… और जवाब कहीं नहीं।”
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📩 वापसी पर – एक नया इमेल
ऑफिस पहुँचे ही थे कि काव्या को एक मेल मिला:
Subject: RIA MEHTA – Pending Manuscript
From: [anonymoustruths@writewithheart.com]
मेल में एक वर्ड फाइल थी — "Unnamed.docx"
काव्या ने जैसे ही फाइल खोली — उसमें 30 पन्ने थे।
और पहला वाक्य:
> “अगर आप ये पढ़ रहे हैं… तो शायद मेरी कहानी अब आपके हाथ में है।”
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🕯️ हकीकत या कोई खेल?
काव्या हक्की-बक्की थी।
“क्या रिया ने सच में कुछ और लिखा था?”
आरव ने धीरे से कहा:
“ये उसकी स्टाइल है… वो हर चीज़ को अधूरा छोड़ती थी, ताकि किसी और को जोड़ने की वजह मिल जाए।”
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📖 उस पांडुलिपि के कुछ हिस्से
> “जब मैं गई, मैं चाहती थी कि कोई मेरी गैर-मौजूदगी को भी जिये…”
> “अगर आरव कभी फिर से किसी को देखे,
और उसके शब्दों में मुझे पाए…
तो जान लेना, मैं उसे भेज रही हूँ।”
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🌌 काव्या की डायरी की रात
उस रात, काव्या ने पहली बार खुद को किसी और की कहानी में नहीं,
बल्कि अपनी ही कहानी में पाया।
उसने लिखा:
> “क्या कोई दूसरे की मोहब्बत से भी खुद को जोड़ सकता है?
> या फिर कुछ एहसास ऐसे होते हैं जो समय से परे होते हैं…
> शायद मैं रिया नहीं हूँ।
पर शायद मैं उसकी तरह महसूस करती हूँ।
> और शायद… आरव अब सिर्फ रिया का नहीं रहा।”
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🌠 अंतिम दृश्य – बेंच पर दो नाम
काव्या अगली सुबह अकेले "Words Point" गई।
उसने पेड़ के नीचे बैठ कर धीरे से एक चाकू निकाला…
और रिया के "R" के पास "K" लिखा।
फिर मुस्कराकर बोली:
“कुछ कहानियाँ दो बार लिखी जाती हैं… एक बार प्यार में, और दूसरी बार उम्मीद में।”
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🧩 To Be Continued...
अगला एपिसोड (Episode 6):
"जब काव्या ने अपनी कहानी शुरू की..."
(कल एक नए मोड़ के साथ, एक नए इम्तिहान की शुरुआत)
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