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नागमणि – भाग 3
लेखक: विजय शर्मा एरी
रात के अँधेरे में जंगल का सन्नाटा एक बार फिर टूटा। आकाश में बादल गरज रहे थे और कभी-कभी बिजली की चमक उस सुनसान जगह को पल भर के लिए उजाले से भर देती। रोहित, दिव्या और पंडित रघुनाथ मंदिर के टूटे-फूटे आँगन में खड़े थे। पंडित जी के हाथ में वह प्राचीन ग्रंथ था, जिसमें नागमणि के रहस्य और उसकी रक्षा के उपाय लिखे थे।
"दिव्या बेटा," पंडित जी ने धीमी आवाज़ में कहा, "अब समय आ गया है कि तुम सच्चाई जानो। नागमणि सिर्फ़ एक रत्न नहीं, यह नागवंश की आत्मा है। जो इसे पा लेता है, वह अमरत्व और असीम शक्ति पा सकता है। लेकिन... अगर यह गलत हाथों में पड़ जाए, तो पूरी धरती पर विनाश हो सकता है।"
दिव्या ने डर और जिज्ञासा से भरी आँखों से पूछा, "तो इसे छीनने के पीछे वही लोग हैं जिन्होंने मेरे पिता की हत्या की?"
पंडित जी ने सिर हिलाया, "हाँ, और उनमें से एक तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है – तांत्रिक भैरवनाथ।"
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भैरवनाथ का षड्यंत्र
उधर, जंगल के दूसरी ओर एक गहरी गुफा में भैरवनाथ अपने शिष्यों के साथ बैठा था। उसकी आँखों में लालसा और क्रूरता की चमक थी। गुफा के बीच में एक बड़ा काला शिवलिंग था, जिस पर खून जैसी लाल रोशनी पड़ रही थी।
"गुरुदेव," एक शिष्य ने कहा, "आपने कहा था कि अमावस्या की रात नागमणि अपने आप चमकने लगेगी।"
भैरवनाथ हँसा, "हाँ, और उसी रात मैं इसे हासिल करूँगा। दिव्या और रोहित जैसे बच्चे मेरी राह में क्या अड़चन डालेंगे? पंडित रघुनाथ को भी देख लूँगा।"
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जंगल की ओर सफर
अगले दिन सुबह, रोहित, दिव्या और पंडित जी नागदेवता के प्राचीन मंदिर की ओर बढ़ने लगे। रास्ता खतरनाक था—कहीं दलदल, कहीं खाई, तो कहीं घना अंधेरा जिसमें सूरज की किरणें भी मुश्किल से पहुँच पातीं।
चलते-चलते दिव्या ने पूछा, "पंडित जी, नागमणि आखिर दिखती कैसी है?"
पंडित जी बोले, "वह एक नीले-सुनहरे रंग का रत्न है, जिसकी चमक चाँदनी से भी तेज होती है। कहते हैं, जब नागदेव प्रसन्न होते हैं तो उसकी रोशनी से अँधेरा भी मिट जाता है।"
रोहित ने दृढ़ता से कहा, "तो हमें इसे भैरवनाथ से पहले पाना ही होगा।"
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नागों की गुफा
तीनों लोग दोपहर तक जंगल के बीचों-बीच पहुँचे, जहाँ एक विशाल चट्टान के नीचे नागों की गुफा का द्वार था। उसके सामने पत्थर पर नागदेव की मूर्ति बनी थी, और चारों ओर सर्प लिपटे थे।
अचानक, एक फुफकारती आवाज़ आई, "कौन है जो नागलोक के द्वार पर आया है?"
दिव्या और रोहित डर के मारे पीछे हट गए, लेकिन पंडित जी आगे बढ़े और हाथ जोड़कर बोले, "हम आपके रक्षक हैं, नागदेव। नागमणि खतरे में है।"
चट्टान हिलने लगी, और एक विशाल स्वर्ण-नाग प्रकट हुआ। उसकी आँखों में तेज चमक थी। उसने दिव्या को ध्यान से देखा और कहा, "तुम... नागवंश की वंशज हो।"
दिव्या आश्चर्यचकित रह गई, "मैं?!"
नागदेव ने समझाया, "तुम्हारे पूर्वजों ने नागमणि की रक्षा की थी। अब यह कर्तव्य तुम्हारा है।"
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भैरवनाथ का हमला
लेकिन तभी, एक जोरदार धमाका हुआ। भैरवनाथ अपने काले मंत्रों के साथ वहाँ पहुँच चुका था। उसके हाथ में त्रिशूल था, और उसके चारों ओर काले धुएँ का चक्र घूम रहा था।
"हा हा हा... नागदेव! आज तुम भी हारोगे और नागमणि भी मेरी होगी!"
भैरवनाथ ने एक मंत्र पढ़ा, और अचानक आसमान से काले बादल उतर आए। बिजली गिरी, और नागदेव दर्द से फुफकार उठे।
रोहित और दिव्या ने एक-दूसरे की ओर देखा—उन्हें समझ आ गया कि अब लड़ाई उन्हें ही लड़नी होगी।
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आखिरी जंग
दिव्या ने पंडित जी से ग्रंथ लिया और उसमें लिखे मंत्र पढ़ने लगी। रोहित ने अपनी जेब से एक छोटा चाँदी का ताबीज़ निकाला, जिसे उसके पिता ने दिया था। जैसे ही मंत्र और ताबीज़ की शक्ति मिली, चारों ओर उजाला फैल गया।
भैरवनाथ की आँखें चकाचौंध से बंद हो गईं। नागदेव ने मौका पाकर अपनी पूँछ से भैरवनाथ को पटक दिया। लेकिन भैरवनाथ हार मानने वाला नहीं था—उसने नागमणि की ओर छलाँग लगाई।
दिव्या ने चीखते हुए कहा, "नहीं!" और अपने हाथों से नागमणि को उठा लिया। जैसे ही वह उसके स्पर्श में आई, एक सुनहरी आभा ने उसे घेर लिया।
नागदेव की आवाज़ गूँजी, "तुमने अपना धर्म निभाया है, पुत्री।"
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भैरवनाथ का अंत
नागमणि की रोशनी इतनी तेज हो गई कि भैरवनाथ की काली शक्तियाँ जलने लगीं। वह चीखता हुआ जमीन पर गिर पड़ा, और देखते-देखते राख बनकर उड़ गया।
सन्नाटे में सिर्फ़ दिव्या की साँसें सुनाई दे रही थीं। नागदेव ने आशीर्वाद देते हुए कहा, "अब नागमणि हमेशा तुम्हारी रक्षा करेगी, लेकिन याद रखना—यह शक्ति सिर्फ़ भलाई के लिए है।"
दिव्या ने सिर झुकाकर वचन दिया, "मैं इसे हमेशा सुरक्षित रखूँगी।"
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वापसी
तीनों मंदिर लौटे। गाँव वालों ने उनका स्वागत किया। रोहित ने हँसते हुए कहा, "दिव्या, अब तुम सिर्फ़ मेरी दोस्त नहीं, बल्कि नागमणि की संरक्षिका हो।"
दिव्या मुस्कुराई, "और तुम मेरे सबसे बड़े साथी।"
पंडित जी ने आसमान की ओर देखकर कहा, "आज बुराई खत्म हुई है, लेकिन याद रखना, अच्छाई की रक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहना पड़ता है।"
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💎 इस तरह नागमणि सुरक्षित रही और उसके साथ वह प्राचीन विश्वास भी, कि सत्य और साहस से बड़ी कोई शक्ति नहीं।
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