Barsho Baad Tum - 16 in Hindi Love Stories by Neetu Suthar books and stories PDF | बरसों बाद तुम - 16

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बरसों बाद तुम - 16



🖋️ एपिसोड 16: “जब सपने छपने लगते हैं…”


> “कुछ सपने आँखों में पलते हैं,
और जब वो कागज़ पर उतरते हैं —
तो सिर्फ किताब नहीं, ज़िंदगी की गवाही बन जाते हैं।”




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स्थान: दिल्ली — रेहाना और आरव का घर

सुबह की पहली किरण खिड़की से आई और डायरी के उस पन्ने पर गिरी —
जहाँ लिखा था:

> “माँ बनना, सिर्फ एक एहसास नहीं…
एक यात्रा है — खुद से खुद तक।”




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Scene — रेहाना को पब्लिशिंग हाउस से कॉल

> “मैम, हमने आपकी डायरी पढ़ी।
हम इसे किताब की शक्ल देना चाहते हैं।”

“किताब? मेरी?”

“जी हाँ, ‘Maa Ki Diary’ — एक माँ की नज़र से,
जो हर किसी को छू जाए।”



फोन कटते ही, रेहाना कुछ देर चुप रही।

आरव ने पूछा —

> “क्या हुआ?”

“मेरा लिखा, अब सिर्फ मेरा नहीं रहेगा…”




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Scene — रात को आरव और रेहाना की बातचीत

> “डर लग रहा है…”

“क्यों?”

“कभी जो सिर्फ अपनी डायरी थी, अब दुनिया पढ़ेगी।
क्या वो मेरी भावनाओं को उतना ही समझ पाएंगे?”



आरव ने उसका हाथ थामा —

> “अगर तुम सच्ची हो,
तो तुम्हारी भावनाएँ भी सच्ची समझी जाएंगी।”




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किताब की तैयारी शुरू

• पब्लिशिंग हाउस से वर्चुअल मीटिंग
• चैप्टर सेलेक्शन
• टाइटल डिजाइन
• रेहाना की तस्वीर के साथ "Author’s Note"

रेहाना का टाइटल:
“बरसों बाद तुम — माँ की डायरी से”


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📸 Book Cover Photo Shoot Day

रेहाना ने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना,
पीछे किताबें और पास में आरियान।

फोटोग्राफर ने कहा —

> “मैम, कैमरे में देखिए…”

“नहीं… मैं वहाँ देख रही हूँ जहाँ मेरी ज़िंदगी ने सबसे खूबसूरत मोड़ लिया — अपने बेटे की आँखों में।”




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पुस्तक विमोचन की तारीख तय होती है — अगले महीने

आरव हर दिन कैलेंडर पर टिक करता।

> “अब मैं एक लेखक की पति कहलाऊँगा… कैसा लगेगा?”

“और मैं एक ऐसे इंसान की पत्नी कहलाऊँगी…
जिसने मुझे खुद से फिर मिलवाया।”




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Scene — एक दिन माँ का फ़ोन आता है

> “रेहाना! तू किताब छपवा रही है?”

“हाँ माँ… आप नाराज़ तो नहीं?”

“नाराज़? मुझे गर्व है।
तेरा हर पन्ना पढ़कर मैं तुझे फिर से जान रही हूँ।”

“माँ, आपकी बेटी अब सिर्फ बहू या माँ नहीं रही…
वो खुद भी कुछ है।”




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Book Printing Press में पहला कॉपी तैयार होती है

रेहाना के हाथ में उसकी पहली छपी किताब आती है।
उसने किताब खोली —
पहला पन्ना आरियान को समर्पित था:

> “मेरे बेटे के नाम —
जिसने मुझे सिर्फ माँ नहीं, लेखक भी बना दिया।”




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📖 डायरी की एक और इंट्री

> _“शब्दों में दर्द था,
पर हर लाइन में उम्मीद थी।

ये सिर्फ डायरी नहीं थी —
ये मेरा आइना था।”_




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Book Launch Day — छोटा-सा हॉल, सीमित मेहमान

रेहाना ने मंच पर कदम रखा।

सामने बैठे थे आरव, आरियान, उसके माता-पिता, और कुछ लेखकगण।

माइक पकड़ा… हाथ कांप रहा था।

> “मैं लेखक नहीं थी, बस एक माँ थी…
जिसे वक़्त ने कागज़ थमा दिया।

मैंने बस वही लिखा जो जिया —
और जिया वही जो महसूस किया।”



तालियाँ गूंज उठीं।


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ऑटोग्राफ देने वाला पहला दिन

एक लड़की किताब लेकर आई:

> “मैम, मेरी माँ अब इस दुनिया में नहीं है…
लेकिन आपकी किताब पढ़कर, ऐसा लगा वो मेरे पास बैठी है।”



रेहाना की आँखें भर आईं।

> “शब्दों की ताक़त समझ में तब आती है…
जब वो किसी और के ज़ख्म पर मलहम बन जाए।”




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रात को घर लौटने के बाद — आरव ने पूछा

> “अब आगे क्या?”

“अब… मैं फिर से लिखूँगी।
क्योंकि अब मेरी कहानी सिर्फ मेरी नहीं रही।”




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✨ एपिसोड की आख़िरी लाइन:

> “जब सपने छपने लगते हैं…
तब शब्दों की स्याही नहीं,
ज़िंदगी के आँसू और मुस्कानें पन्नों पर उतरती हैं।”




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🔔 Episode 17 Preview: “जब अपने ही पराए लगने लगें…”

> जब सफलता मिलती है, तो तालियाँ तो मिलती हैं…
पर क्या सब दिल से खुश होते हैं?




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