वनदेवी कौन है....?..
अब आगे.........
देविका जी कहती हैं ....." आदित्य , ये तो अमोघनाथ जी ही बताएंगे...."
देविका जी के कहने पर अमोघनाथ जी आदित्य को उसके सवाल का जबाव देते हैं...." आदित्य , गामाक्ष के कैद होने के बाद चेताक्क्षी को हमने उसके नाना के पास भेज दिया था , क्योंकि वो वहां के जानेमाने तांत्रिक है , उन्हें हर तरह की विद्या का ज्ञान है , क्योंकि चेताक्ष्की की ऊर्जा से वो उस पिंजरे में कैद हुआ था इसलिए मैंने चेताक्क्षी को इससे दूर कर दिया था , अब वो समय है जब चेताक्क्षी ही मेरे हर काम को बराबरी से कर सकती हैं ....."
आदित्य उनकी बात सुनकर एक और सवाल पूछ लेता है...." क्या आप हमें बताएंगे उस बेताल की आत्मा का क्या हुआ...?..."
आदित्य की बात सुनकर अमोघनाथ जी चिंता में पड़ जाते हैं और दबी हुई आवाज से कहते हैं....." अफसोस है मुझे , मैं अभी तक उसके बारे में पता नहीं कर पाया क्योंकि एक गूढ़ शक्ति ही आदिराज जी के पास थी , जिसे इतनी आसानी से नहीं हासिल किया जा सकता....अब तो चेताक्क्षी की ही विद्या को जानना होगा क्या पता वो हमें बता सके..."
इतना कहकर अमोघनाथ जी एक लाल से कपड़े में लिपटी हुई कुछ किताबों को बाहर निकालते हैं , , उसमें एक एक करके आदित्य को बताते हुए कहते हैं....." आदित्य , ये तुम्हें दिखने में साधारण सी किताबें लग रही होंगी लेकिन ये एक सात्विक शक्तियों का अपरा भंडार है , जिसे प्राप्त करने के लिए आदिराज जी अपनी कितनी ही रातों को साधना में बिताया है , तब जाकर उन्हें ये दिव्य शक्तियों की किताबे मिली है , , इनमें से बहुत ही सिद्धियां आदिराज जी को मिली थी , , जिन्हें उन्होंने गांव के हित के लिए उपयोग की , मैं अब भी आदिराज जी जैसा निपुण तो नहीं हूं लेकिन जितनी भी साधना की है वो सब समाज की भलाई के लिए ही उपयोग करूंगा ,..."
आदित्य उन किताबों को देखकर कहता है...." अमोघनाथ जी , , इसमें तो काफी कुछ होगा न ..."
" हम्म , है तो बहुत कुछ लेकिन उन्हें पाना सहज नहीं है , "
" आपने इन्हें इस तरह क्यूं दबा रखा था..?..."
अमोघनाथ जी किताबों में किसी खास किताब को ढूंढते हुए कहते हैं..." जैसा कि मैंने तुम्हें बताया था , इसमें काफी सात्विक शक्तियां हैं , तो ये किताबें हर किसी के हाथ न लगे इसलिए इन सबको इस अभिमंत्रित कपड़े में लपेटकर इस गड्ढे में छुपाना पड़ता है , मैं आदिराज जी की ये मेहनत ऐसे ही किसी के हाथ नहीं लगने दे सकता , और वो भी ऐसी परिस्थिति में जब कोई तांत्रिक पिशाच हर कोशिश कर रहा है दुनिया की सारी शक्तियों को अपने कब्जे में करने की..."
बातें करते करते अमोघनाथ जी को वो किताब मिल जाती है..." आखिर मुझे मिल गई ये किताब , ..."
देविका जी उस किताब को देखते हुए पूछती है...." कैसी किताब है ये ...?..."
अमोघनाथ जी मुस्कुराते हुए कहते हैं..." इसका नाम है प्रेतदेहनिवर्तंते ...."
" इससे क्या होगा...?..."
" आदित्य इससे ही हमें उस गामाक्ष को खत्म करने का तरीका पता चलेगा , ...."
आदित्य उस किताब को देखते हुए परेशानी भरी आवाज में पूछता है..." इस किताब में से पता करेंगे , कही बहुत टाइम न हो जाए , एक एक पल अदिति के लिए कितना मुश्किल हो रहा होगा...."
अमोघनाथ जी उसकी चिंता समझते हुए कहते हैं....." मुझे पता तुम अपनी बहन के लिए कितने परेशान हो लेकिन चिंता मत करो सुबह तक उपाय मिल जाएगा बस मैं चेताक्क्षी को बुलाने के लिए संकेत भेजता हूं , जबतक तुम सब आराम कर सकते हो , देविका कल सुबह मैं तुम्हें उपाय बताता हूं अभी तुम सब जाओ...."
अमोघनाथ जी की बात सुनकर देविका जी बेमन से वहां से जाने के लिए सबको कहती हैं , लेकिन आदित्य एक और सवाल कर देता है....." अमोघनाथ जी..! मुझे एक और बात जाननी है , ये वनदेवी क्या होती है...."
आदित्य की बात सुनकर अमोघनाथ जी मुस्कुराते हुए कहते हैं...." वनदेवी वो ऊर्जा शक्ति है जिसे प्रकृति के जरिए जीवन दान मिलता है , ये बरसों में केवल एक ही बार जन्म लेती है , वनदेवी किसी इंसान से नहीं बल्कि एक विलोचन कमल के फूल के बीज से उत्पन्न होती है और वो शक्ति है जो किसी भी मृत व्यक्ति को जीवन दे सकती है , लेकिन ये किसी इंसान को नहीं बल्कि दूसरे जीवों को प्राण दान दें सकती है , लेकिन अगर एक बार इनका शरीर नष्ट हो जाए तो वो दोबारा जन्म नहीं ले सकती लेकिन आदिराज जी ने उस पवित्र आत्मा को एक नवीन इंसानी शरीर दिलवाया है इसलिए गामाक्ष ने अदिति को कैद किया है और हमारे पास ज्यादा समय नहीं है क्योंकि वो परसों अपनी क्रिया से उसे देहविहीन कर देगा , फिर हम कुछ नहीं कर सकते..."
अमोघनाथ जी बात सुनकर सबके चेहरे पर डर और चिंता छा जाती है लेकिन अभी इंतजार के अलावा कुछ कर भी नहीं सकते थे इसलिए सब वहां से जाने लगे ....
तभी अमोघनाथ जी विवेक को रोकते हुए कहते हैं..." तुम यहीं रुको , मुझे तुमसे कुछ बात करनी है और कुछ तुम्हें बताना भी है...."
अमोघनाथ जी के कहने पर विवेक वहीं रूक जाता है और बाकी सब चले जाते हैं.....
" तुम बैठो यहां..."
" आपको मुझसे क्या काम है...?..."
अमोचनाथ जी अपने आसन पर से उठकर विवेक के माथे पर हाथ रखते हुए आंखें बंद करके कुछ देर बाद उससे दूर होकर वापस अपने आसन पर बैठते हुए कहते हैं.." जैसा मैंने सोचा था तुम बिल्कुल वैसे ही हो ...."
विवेक उन्हें सवालिया नज़रों से देखते हुए कहता है..." आप कहना क्या चाहते हैं...?...."
विवेक की बात सुनकर अमोघनाथ जी कहते हैं...." तुम्हारे अंदर हो रही उथलपुथल को मैं समझ चुका हूं , , तुम अदिति से प्यार करते हो इसलिए उसे बचाने के लिए बिना डरे उस पिशाच से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गए.... तुम्हारा प्रेम ही उसकी शक्ति है , इसलिए ही उसे बचा सकते हो , ..."
" मैं कैसे बचा सकता हूं अदिति को....?...."
अमोघनाथ जी उसे याद कराते हुए कहते हैं...."याद करो , तुम्हारे उसके बार चूमने से उसकी याददाश्त पर फर्क पड़ता था ..."
" हां , मुझे याद है लेकिन आपको ये सब भी पता है..."
अमोघनाथ जी उसके चेहरे की हैरानी देखकर हंसते हुए कहते हैं...." देविका ने तुम्हें बताया था , आदिराज जी के कहने पर मुझे ये शक्तियां मिली है जिससे मैं किसी के भी चेहरे पर से उसके बीते हुए पलों के बारे में जान सकता हूं लेकिन भविष्य की सटीक गढ़ना में नहीं कर सकता हूं..."
" तो फिर आप जल्दी से आगे बताइए , क्यूं अदिति की याद्दाश्त आती जाती थी....?..."
..................to be continued..............