ठीक है। मैं आपके लिए "नागमणि भाग 11" विस्तार से (लगभग 2000+ शब्द) लिख देता हूँ, बिना “"” आदि चिह्नों के।नागमणि – भाग 11✍️ लेखक – विजय शर्मा ए़री1. कहानी का आरंभरात गहरी थी। गाँव के बाहर बने पुराने खंडहर में वह रहस्यमयी आभा एक बार फिर दिखाई दी। हल्की-हल्की नीली रोशनी और फुफकारती हुई हवाओं के बीच नागमणि की चमक किसी को भी सम्मोहित कर सकती थी।गुरुदेव भैरवनाथ, जिनकी आँखों में हमेशा लालिमा तैरती रहती थी, अपने तीन शिष्यों के साथ वहाँ पहुँचे। वे बोले –“याद रखो, नागमणि का रक्षक कोई साधारण शक्ति नहीं है। जिसने भी लालच में आकर इसे छूने की कोशिश की, उसका अंत भयानक हुआ।”शिष्य डरे हुए स्वर में पूछ बैठा –“गुरुदेव, तो फिर हम यहाँ क्यों आए हैं?”भैरवनाथ ने हँसते हुए कहा –“क्योंकि नागमणि केवल बलवान को नहीं, बल्कि सच्चे साधक को मिलती है। और मैं जानता हूँ, इस बार किस्मत मेरे साथ है।”2. गाँव का माहौलइधर गाँव में एक अलग ही हलचल थी। पिछले भाग में आपने पढ़ा कि अर्जुन और राधा, नागमणि के रहस्य से जुड़े थे। अर्जुन अब गाँव के नौजवानों के साथ मिलकर लोगों को चेतावनी दे रहा था –“देखो भाइयों, बाहर से आए ये साधु और तांत्रिक हमारे लिए खतरा हैं। नागमणि हमारी धरती की धरोहर है। अगर ये इसे छीन ले गए तो गाँव की आत्मा सूख जाएगी।”गाँव के बुज़ुर्ग ने सहमति जताई –“सही कहता है अर्जुन, लेकिन इनसे बचना आसान नहीं। ये लोग तंत्र-मंत्र जानते हैं।”राधा बोली –“अगर दिल में सच्चाई हो, तो किसी मंत्र का असर नहीं होता।”3. नागराज का प्रकट होनारात के ठीक बारह बजे खंडहर के पास हलचल बढ़ी। आसमान में काले बादल घिर आए। अचानक धरती हिली और ज़मीन के अंदर से एक विशाल नाग प्रकट हुआ। उसकी आँखों में आग जैसी लाली थी।भैरवनाथ ने मंत्र पढ़ना शुरू किया –“ॐ फट् स्वाहा…”लेकिन नागराज की फुफकार ने पूरा वातावरण हिला दिया।“हे लालची मनुष्य! नागमणि तुम्हारे लिए नहीं है। यह केवल उस हृदय को मिलती है जिसमें लोभ न हो।”गुरुदेव भैरवनाथ ने चुनौती दी –“नागराज! शक्ति मेरी है, मनमोहिनी विद्या मेरी है। यह मणि भी मेरी होगी।”नागराज ने गुस्से से अपनी पूंछ पटकी, और ज़मीन से चिंगारियाँ उठीं।4. राधा का साहसगाँव के नौजवान डरकर पीछे हटने लगे, लेकिन राधा आगे बढ़ी। उसने folded hands करके नागराज से प्रार्थना की –“हे नागराज, हम न तो लालच से आए हैं, न आपके ख़ज़ाने पर अधिकार जताने। हम तो सिर्फ़ गाँव की रक्षा चाहते हैं। कृपा करके निर्दोषों को बचाइए।”नागराज की आँखों में क्षणभर के लिए करुणा झलकी।“कन्या, तेरे मन में लोभ नहीं है। तेरा हृदय पवित्र है। लेकिन ध्यान रहे, यह युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है।”5. तांत्रिक की चालभैरवनाथ ने चाल चली। उसने रेत में एक त्रिकोण बनाया और उसमें बलि के लिए एक काला मुर्गा निकाल लिया। उसके मंत्रोच्चार से भयावह ध्वनि गूँज उठी।“नागराज! चाहे तू कितना भी शक्तिशाली हो, मंत्र बल से तुझे वश में कर लूँगा।”इतना कहते ही उसने मंत्र की अग्नि हवा में फेंकी। चिंगारी नागराज के पास पहुँची, लेकिन अचानक अर्जुन ने बीच में छलाँग लगा दी। उसका हाथ जल गया पर उसने आग को रोक लिया।अर्जुन चिल्लाया –“गुरुदेव! अगर शक्ति ही चाहिए तो सेवा करो, छल नहीं। गाँव का लालच तुम्हें मणि नहीं देगा।”6. नागमणि की परीक्षातभी अचानक आकाश से बिजली गिरी और नागमणि तेज़ी से चमकने लगी। उसकी किरणें चारों ओर फैल गईं। हर किसी की आँखें बंद हो गईं।एक आवाज़ गूँजी –“जो भी इस मणि के सामने खड़ा होगा, उसका हृदय परखा जाएगा। जिसके मन में पवित्रता होगी वही इसे पा सकेगा।”भैरवनाथ आगे बढ़ा। उसके मन में केवल लालच था। रोशनी छूते ही उसका शरीर काँपने लगा और वह वहीं गिर पड़ा।राधा ने धीरे से कदम बढ़ाए। उसकी आँखों में गाँव के बच्चों का भविष्य, खेतों की हरियाली और अपने लोगों के लिए प्रेम झलक रहा था। नागमणि की रोशनी ने उसे ढक लिया।7. गाँव में उत्सवसुबह जब सब लोग लौटे तो गाँव में खुशी की लहर थी। राधा नागमणि को लेकर आई थी, लेकिन उसने इसे मंदिर में स्थापित कर दिया।राधा बोली –“यह मणि मेरी नहीं, पूरे गाँव की है। यह तभी चमकेगी जब हम सब एकजुट होकर लोभ त्याग देंगे।”गाँव के बुज़ुर्ग भावुक होकर बोले –“आज हमने सीखा कि असली शक्ति हथियारों या मंत्रों में नहीं, बल्कि सच्चाई और प्रेम में है।”8. भैरवनाथ का अंतभैरवनाथ अपनी हार सह न सका। उसकी शक्ति धीरे-धीरे समाप्त होती गई। अंततः वह वहीं खंडहर में गुमनाम मौत मर गया।लोगों ने कहा –“जो दूसरों का अनिष्ट सोचता है, उसका यही अंजाम होता है।”9. नागराज का आशीर्वादनागराज एक बार फिर प्रकट हुआ और गाँववालों से कहा –“तुम्हारे बीच अब एक सच्ची संरक्षिका है। जब तक तुम सब मिलकर लोभ से दूर रहोगे, यह मणि तुम्हारी रक्षा करती रहेगी।”फिर धीरे-धीरे वह धरती में समा गया।10. अंत लेकिन अधूरा रहस्यगाँव में शांति लौट आई। अर्जुन और राधा ने मिलकर गाँव की उन्नति का संकल्प लिया। लेकिन कहानी यहीं समाप्त नहीं होती…क्योंकि दूर पहाड़ों में एक और तांत्रिक इस घटना की खबर सुन चुका था। उसकी आँखों में फिर वही लालच चमक उठा।प्रमाणपत्रमैं, विजय शर्मा ए़री, अजनाला, अमृतसर, पंजाब – 143102, यह घोषणा करता हूँ कि “नागमणि भाग 11” मेरी मौलिक रचना है। इसमें कोई भी अंश कहीं से नकल नहीं किया गया है। पाठक इसे स्वतंत्र रूप से पढ़, गा या मंचित कर सकते हैं।✍️ लेखक – विजय शर्मा ए़री