Adakaar - 30 in Hindi Crime Stories by Amir Ali Daredia books and stories PDF | अदाकारा - 30

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अदाकारा - 30

*अदाकारा 30*

"बताओ तो क्या हुआ है?उदास क्यों हो? तुम्हारी आंखों मे ये आंसू आखि़र किसलिए?"
बृजेश ने फिर पूछा।तभी शर्मिला की आँखें फिरसे भर आईं।बृजेशने उसके गालों से बहते आँसुओं को पोंछते हुए प्यार से कहा।
"अगर तुम ऐसे ही रोती रहोगी तो मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम्हें क्या हुआ है?मुझे कुछ तो बताओ तो सही।"
शर्मिला को संभलने में थोड़ा वक़्त लगा।फिर रुमाल से आँखें पोंछते हुए वह अपने ओर अपनी बहन उर्मिला के साथ जो भूतकाल मे घटित हुआ था उस कहानी को बदल कर बृजेश को सुनाने लगी।
"मेरी एक जुड़वाँ बहन है उर्मिला।वह यहाँ बीमानगर में रहती है।उसकी शादी तीन साल पहले हुई थी।उस समय उसकी शादी में साली होने के नाते मैंने हमारे रिवाज़ के अनुसार अपने जीजाजी के जूते छिपा दिए थे।"
"हमारे यहाँ भी ऐसा ही रिवाज़ है।"
बृजेशने अपनी तरफ से भी उस रिवाज़ की पूर्ति की।
"है ना?और लगभग सभी जातियों में ऐसे ही रिवाज़ होते हैं।मैंने इतनी वहां पर ये गलती की कि मैंने जीजू से उनकी हैसियत से ज़्यादा पैसो की डिमांड करली।अगर जीजू को उतने पैसे नहीं देने थे तो वो चाहते तो बार्गेनिंग कर सकते थे।लेकिन उनकी एक रुपया भी देने की शायद ईच्छा नहीं थी।इसलिए उन्होंने मुझसे झगड़ा शुरू कर दिया।"
शर्मिला साँस लेने के लिए रुकी।कॉफ़ी का एक घूँट गले से नीचे उतार कर वह आगे बढी।
बृजेश उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था।
"तू चोर है।लुटेरि है।ये सब पैसा कमाने का तेरा खेल है।वगैरह-वगैरह।वो अपने मन मे जो आया बोलने लगा।फिर तो मेरा भी दिमाग घूम गया।और गुस्से में मुझसे एक गलती हो गई। मैंने उनके जूते जहाँ छुपाए थे वहाँ से उठाकर गुस्से में उनके उपर फेंक दिए।बस फिर क्या था?उर्मिला को ये बात अच्छी नहीं लगी।उसने वो नही सुना कि उसके पतिने मुझसे क्या क्या कहा।लेकिन मैंने उन जूते फेंके वो उसे साफ़ दिखाई दिया कि मैंने उन पर जूते फेंके हैं। पहले तो उसने मेरे गाल पर ज़ोर से थप्पड़ मारा।और फिर मुझे ही भला बुरा कहने लगी। "तुज मे बिल्कुल भी अक्ल नहीं है किस के साथ कैसे पेश आना चाहिए उसकी तमीज़ नही हे।आज के बाद तुम्हारा हमसे कोई रिश्ता नहीं होना चाहिए।"ओर फिर ये कहकर कि तुम अपने रास्ते जाओ और मैं अपने रास्ते ये कहकर वो मरोल के अपने घर चली गई जो माँ ने उसके लिए ले लिया था।" 
ये कहकर शर्मिला ने फिर एक सिसकी ली। "इतनी छोटी सी बात पर इतना बड़ा बवाल?"
बृजेश ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा।
फिर उसने पूछा।
"इस बात को तीन साल हो गए हैं ना।तो आज तुम गमगीन क्यों हो?"
शर्मिलाने मानो बृजेश का सवाल ही न सुन पाई हो, 
वैसे वो बोली जैसे खुद से ही बात कर रही हो।
"हमारे फ्लैट का एक कमरा उर्मि और जीजू के हनीमून के लिए सजाया गया था।वो कमरा वैसे ही पड़ा रहा और वो दोनों वहां से चले गए। 
मम्मी-पापा ने भी उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की,पर सब बेकार।हाँ लेकिन मैंने उन्हें कभी समझाने की कोशिश नहीं की। पिछले साल मम्मी-पापा कलकत्ता गए थे तब रेल हादसा हुआ था उस हादसे में वे दोनों..."
कहते कहते शर्मिला का दिल भर आया और वो फिर से रोने लगी।
"ओह!सॉरी!"
बृजेश ने कहा और शर्मिला की पीठ पर हाथ फेरने लगा।और हाथ फेरते हुए उसने कहा।
"कंचनजंघा एक्सप्रेस।इसमें तो कई यात्री मारे गए थे।"
बृजेश की आवाज़ भी उदास हो गई जब उसने यह जाना के शर्मिला के माता पिता भी उस हादसे मे शिकार हुवे थे।
शर्मिला ने एक आह भरी और आगे कहा।
"पहले जब मम्मी-पापा मेरे साथ होते थे तो मैं खुश रहती थी।उनके जाने के बाद अब मुझे अहसास हुआ कि उर्मिला के अलावा मेरा इस दुनिया में और कौन है?मैंने परसो उर्मिला को उसके जन्मदिन पर फ़ोन किया और उसे शुभकामनाएँ दीं।हालाँकि मैंने कोई ग़लती नहीं की थी फिरभी मैने उर्मी से माफ़ी भी माँगी। और हाँ उसने मुझे माफ़ भी कर दिया।"
शर्मिलाने इतनी बातें कीं,लेकिन बृजेश को अभी भी समझ नहीं आ रहा था कि शर्मिला उदास क्यों थी?
"उर्मिला ने तुम्हें माफ़ कर दिया है तो फिर तुम उदास क्यों हो?"
"उर्मिलाने मुझे मिलने के लिए उसके घर आने को कहा था।तो आज मैं उनसे मिलने उसके घर गई,लेकिन जीजू घर पर नहीं थे।मैं उर्मिला के साथ एक घंटा बैठी।सालों बाद अपनी बहन से मिलने का आनंद ही कुछ ओर था। लेकिन उर्मिलासे मिलने के बाद मैं जब अपार्टमेंट से बाहर निकली तो पार्किंग में जीजू मिल गए....."
ओर इतना कहते ही फिर से उसकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी।अब बृजेश को समझ मे आया कि शर्मिला के साथ जो भी हुवा वो सुनील की वजह से हुवा होगा।उसने उत्सुकता से पूछा।
"क्या हुआ शर्मिला?बताओ पार्किंग में तुम्हारे साथ क्या हुआ?"

(शर्मिला यहाँ बृजेश को कौनसी कहानी सुनाएगी?जानने के लिए अगले एपिसोड में पढ़ें)