🌘 एपिसोड 26 : “स्याही का श्राप”
1. वापसी की फुसफुसाहट
अदिति राठौर के गायब होने के तीन महीने बीत चुके थे।
दिल्ली अपनी रफ़्तार में लौट चुकी थी, पर हवेलियों की दीवारों पर कहानियाँ अब भी साँस ले रही थीं।
शहर के कोने में एक पुराना बुक-कैफ़े था — “इंक एंड सोल।”
वहीं काम करता था रियान कपूर, एक युवा संपादक, जो पुराने पांडुलिपियों को संभालने का काम करता था।
उस दिन उसे एक जला हुआ लिफाफा मिला।
लिफ़ाफ़े पर बस दो अक्षर लिखे थे — “A.R.”
रियान ने जिज्ञासावश उसे खोला।
अंदर आधा जला पन्ना था, जिस पर मुश्किल से कुछ शब्द पढ़े जा सकते थे —
> “अगर तुम ये पढ़ रहे हो… तो कहानी फिर से शुरू हो चुकी है।”
जैसे ही उसने ये पंक्ति पूरी पढ़ी,
कैफ़े की लाइट झपकने लगी।
छत से काली स्याही की एक बूँद गिरी — फिर दूसरी —
और कुछ ही सेकंड में हवा में जली हुई स्याही की गंध फैल गई।
रियान घबरा गया।
“यह… क्या हो रहा है?”
पीछे से एक धीमी आवाज़ आई —
> “वापसी पर स्वागत है, पाठक।”
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2. आईने में आवाज़
रियान ने पलटकर देखा।
कैफ़े के शीशे में उसका चेहरा नहीं,
एक महिला का चेहरा झिलमिला रहा था —
काले बाल, स्याही से सने उँगलियाँ, और नीली आँखें।
“तुम कौन हो?” रियान ने पूछा।
> “अदिति राठौर,”
वो फुसफुसाई,
“या शायद… जो अब मेरे बचे हुए हिस्से हैं।”
“तुम तो मर चुकी थी,” रियान बोला।
> “कहानी में कोई नहीं मरता,”
उसने कहा,
“बस किसी और रूप में लिख दिया जाता है।
तुमने मेरा आख़िरी पन्ना खोला है…
अब अगला लेखक तुम हो।”
रियान का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
“नहीं… यह कोई सपना है।”
लाइट्स बुझ गईं।
कमरे में बस एक आवाज़ गूँज रही थी —
टक… टक… टक…
(टाइपराइटर की आहट)
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3. स्याही का निशान
सुबह जब रियान जागा, तो उसके हाथों पर काले धब्बे थे।
उसने साबुन से धोने की कोशिश की, पर वो धब्बे और फैलने लगे —
जैसे स्याही उसकी नसों में उतर रही हो।
लैपटॉप स्क्रीन अपने आप ऑन हो गई।
शब्द खुद-ब-खुद टाइप होने लगे —
> “संपादक अब लेखक बन चुका है।
लेखक अब स्याही बन जाएगा।
और स्याही… कभी नहीं मरेगी।”
रियान ने कंप्यूटर बंद किया, लेकिन आवाज़ अब भी गूँज रही थी।
तभी फ़ोन बजा —
अनजान नंबर।
वो झिझकते हुए बोला, “हेलो?”
फोन के उस पार बस एक वाक्य सुनाई दिया —
> “राठौर हवेली। आधी रात।”
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4. राठौर हवेली की वापसी
रियान को वहाँ नहीं जाना चाहिए था।
पर जैसे कोई अदृश्य ताकत उसे खींच रही थी।
रात के बारह बजे, वह हवेली के जंग लगे गेट के सामने खड़ा था।
गेट पर उगी बेलें हवा में कांप रही थीं।
उसने गेट को छुआ —
और वो अपने आप खुल गया।
अंदर वही पुराना माहौल —
नीली रोशनी, पुरानी किताबों की गंध, और अजीब-सी नमी।
टेबल पर नई टाइपराइटर रखी थी — चमकती हुई, जैसे अभी-अभी किसी ने उसे छुआ हो।
सामने एक चिट्ठी रखी थी —
> “अगले लेखक के लिए।”
और तभी टाइपराइटर अपने आप चलने लगी —
> “रियान कपूर,
अब कहानी तुम्हारी उँगलियों से आगे बढ़ेगी।
स्याही कभी नहीं मरती।”
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5. श्राप की सच्चाई
अचानक हवा ठंडी हो गई।
मोमबत्तियों की लौ नीली हो उठी।
हवेली की दीवारों से तीन परछाइयाँ निकलीं —
मीरा दास, अनामिका सेन, और अदिति राठौर।
तीनों की आँखें स्याही से भरी थीं।
मीरा बोली,
> “हम सबने इसे खत्म करने की कोशिश की…
पर ये हर लेखक के साथ फिर से जन्म लेती है।”
अनामिका ने कहा,
> “हर पीढ़ी इसकी कीमत देती है — अपनी रूह से।”
अदिति ने रियान की ओर देखा,
> “अब तू चुना गया है। अगला अध्याय तुझे लिखना होगा।”
“लेकिन इसे खत्म कैसे करूँ?”
रियान ने काँपती आवाज़ में पूछा।
> “सिर्फ़ वही इसे खत्म कर सकता है,”
अदिति बोली,
“जो स्याही से नहीं, सच से लिखे।”
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6. अंतिम लेखन
टाइपराइटर फिर अपने आप चलने लगा।
हर कीबोर्ड की आहट कमरे में गूंज रही थी।
रियान उसके सामने बैठ गया,
जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसकी उँगलियों को चला रही हो।
वो लिखने लगा —
> “विक्रम राठौर ने अमरता के लिए स्याही से समझौता किया।
पर स्याही हर पीढ़ी से एक आत्मा लेती है।
हर लेखक मरता है, पर कहानी जिंदा रहती है।”
हवेली काँपने लगी।
दीवारों पर लटकती तस्वीरें चीखने लगीं।
किताबों की अलमारियों से काली स्याही उड़कर हवा में घूमने लगी।
अदिति चिल्लाई,
> “अंत लिखो, रियान! नहीं तो हम सब फिर से स्याही बन जाएँगे!”
रियान ने काँपते हाथों से लिखा —
> “अब कोई नाम इस स्याही का मालिक नहीं होगा।
अब से मौन ही लेखक होगा।”
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7. हवेली का अंत
जैसे ही उसने आख़िरी शब्द लिखा,
टाइपराइटर नीली आग में जल उठी।
तीनों रूहें चीख उठीं —
फिर धीरे-धीरे मुस्कुराईं,
और धुएँ में बदलकर गायब हो गईं।
रियान ज़मीन पर गिर पड़ा।
जब आँखें खुलीं, सुबह हो चुकी थी।
हवेली गायब थी —
उसकी जगह बस सूखी मिट्टी और राख पड़ी थी।
रियान ने देखा, उसके बगल में एक पन्ना पड़ा था —
> “कहानी वहीं खत्म होती है,
जहाँ स्याही सो जाती है।”
वो मुस्कुराया,
पर उसकी कलाई पर एक काली बूँद चमक उठी —
और धीरे-धीरे उसकी त्वचा में समा गई।
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8. दो हफ़्ते बाद
दिल्ली की सभी बुकस्टोर्स में अचानक एक नई किताब आई —
लेखक का नाम नहीं, प्रकाशक का नाम नहीं।
कवर पर बस लिखा था —
> “अधूरी किताब – स्याही का श्राप”
लोगों ने कहा कि किताब अजीब है —
हर बार खोलने पर उसके शब्द बदल जाते हैं,
कुछ पन्नों पर उनका अपना नाम उभर आता है।
और आख़िरी पन्ने पर, हल्के अक्षरों में लिखा था —
> “जिसने ये पढ़ा…
वही अगला लेखक है।”
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🌑 एपिसोड 26 का अंत
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🔮 अगला हुक – एपिसोड 27 की झलक
> “अगर मौन अब लेखक बन चुका है,
तो आधी रात को कौन लिख रहा है वो नए पन्ने…?”