The Risky Love - 25 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 25

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The Risky Love - 25

... विवेक , मुझे बचाओ...."आखिर में इतना कहकर अदिति की आंखें बंद हो चुकी थी....
अब आगे...........
इधर अदिति अपनी आंखें बंद कर चुकी थी उधर विवेक को मानो जैसे लम्बे समय के बाद होश आया हो , अचानक चौंकते हुए चिल्लाता है....." अदिति , , मैं तुम्हें बचाऊंगा..."
विवेक हैरानी से चारों तरफ देखते हुए अपने सामने खड़ी सुहानी को देखकर गुस्से में कहता है...." तुम मुझे यहां क्यूं लाई हो....?...." विवेक जल्दी से अपने सप्त शीर्ष तारा को निकालकर देखता है जिसमें अब केवल दो ही शीर्ष चमक रहे थे , , 
विवेक उसे घूरते हुए कहता है....." तुम्हारी वजह से मेरा टाइम वेस्ट हो गया...." विवेक वहां से जाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ता है तुरंत उसके सामने सुहानी आकर खड़ी हो जाती है और उसे छूने की कोशिश करती है लेकिन विवेक उससे पीछे हट जाता है , जिससे सुहानी गुस्से में कहती हैं...." तुम यहां से कहीं नहीं जा‌ सकते , , ..और तुम यहां से जाना क्यूं चाहते हो , देखो ये जगह जैसे सिर्फ तुम्हारे और मेरे लिए बनी हो , ..." सुहानी धीरे धीरे विवेक के पास जाती हुई कहती हैं...." तुम हमेशा लिए मेरे हो जाओ तो यहां राज करोगे , , हमारे मायालोक के राजा कहलाओगे ...."
सुहानी जैसे ही विवेक के करीब पहुंचती है तो विवेक उसे धक्का देते हुए कहता है....." तुम किसी को जबरदस्ती अपने कोशिश कर रही हो , , मैं सिर्फ और अपनी अदिति से प्यार करता हूं , , उसके अलावा मुझे कोई चाहिए....."
सुहानी के विवेक के धक्का देने से काफी गुस्सा आ रहा था , और वो चिल्लाती हुई कहती हैं......" तुम हमारी तुलना एक मानवी कन्या से कर रहे हो , , देखो मुझे इस  पूरी दुनिया में मेरे जैसा कोई सुंदर नहीं है....."
विवेक मुंह फेरते हुए कहता है...." मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तुम सुंदर हो न न हो , , लेकिन मेरी अदिति मेरे लिए सबसे बढ़कर है , उसकी तुलना में कोई नहीं है....अब मेरे रास्ते से हटो और मुझे जाने दो , मुझे वैसे ही तुमने काफी देर कर दी है...." 
सुहानी को विवेक की इस बात से काफी गुस्सा आ गया था , उसने दोबारा विवेक पर उस वशीकरण फूल तो वार किया , जिसके लगने से  विवेक को थोड़ा धक्का महसूस होता है लेकिन खुद को संभालते हुए वापस उसे देखते हुए कहता है...." तुम क्यूं जबरदस्ती मुझे अपनाने की कोशिश कर रही हो...."
सुहानी हैरानी से उसे देखते हुए कहती हैं...." इस फूल का असर तुम पर क्यूं नहीं हुआ...?...."
विवेक मुस्कुराते हुए कहता है...." क्योंकि मैं धोखेबाज नहीं हूं , , मुझे मेरी अदिति के अलावा कोई नहीं पसंद , , उस समय तुमने अचानक मुझे अपने जाल में फंसा लिया लेकिन अब नहीं..."
विवेक इतना कहकर उस कमरे से बाहर की तरफ जाने लगता है , जिससे सुहानी जल्दी से उसके पीछे आती है....और अपने सिपाहियों को आदेश देती हुई कहती हैं...." समस्त छलावी कन्या , रोको इस युवक को , इसने मेरा अपमान किया है , , ..."
सुहानी के इतना कहते ही , विवेक के चारों तरफ उन लड़कियों ने घेरा बना लिया था , जिसे देखकर विवेक अपनी मुट्ठी भींचते हुए कहता है....." तुम मेरा रास्ता नहीं रोक सकती है , , ..." विवेक जैसे ही आगे बढ़ता है तभी उसके सामने आकर एक चंद्रमा सी चमकती हुई लड़की जिसकी बड़ी बड़ी नीली आंखें उसपर से उसके गालों को छूते हुए लटे किसी को भी मदहोश करने के लिए काफी थी लेकिन विवेक इग्नोर करते हुए कहता है.... " तुम मुझे नहीं रोक सकती , अपनी ये सुंदरता किसी और को दिखाना...."
विवेक वहां से जाने लगता है , तभी उसपर पीछे से उसकी कमर पर एक तीखा वार होता है जिससे विवेक दर्द से कराह उठता है , , विवेक पीछे मुड़ता है तो सुहानी  हाथ में खंजर लिए उसे ही गुस्से में घूर रही थी , इस बार विवेक को उसकी इस हरकत पर काफी गुस्सा आ गया था , जिससे उसने सुहानी के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया, , जिसकी आवाज सब तरफ गूंज गई...."
अपनी रानी पर ऐसा वार देखकर सब गुस्से में उसकी तरफ बढ़ती है लेकिन सुहानी अपने हाथ के इशारे से उन्हें रोक देती है , , और फिर वापस विवेक के पास आकर कहती हैं..." आज पहली बार किसी ने हमारे ऊपर हाथ उठाया है , इसकी सजा मैं तुम्हें दिलवा सकती हूं लेकिन तुम्हारे पास से पहली बार अनुभूति हुई है  , तुम बहकने वालों में से नहीं हो , तुम्हारे प्रेम सच्चा है , तुम्हारा निश्चय सच्चा है जो हमारी सुंदरता से भी नहीं डगमगाया , इसलिए मैं तुम्हें जाने की अनुमति देती हूं , तुम अपने लक्ष्य को प्राप्त करो...."
विवेक उलझन भरी नजरों से उसे देखता रहता है लेकिन सुहानी अपने हाथ के खंजर को वापस रखते हुए कहती हैं...." मंदिनि लेप लेकर आओ....."
सुहानी जैसे ही विवेक को देखती उसकी उलझन भरी नजरों को समझते हुए कहती हैं....." तुम्हें इतना उलझनें की आवश्यकता नहीं है , , ये मेरा कर्तव्य था , जोभी महाकाल के मंदिर तक जाएगा उसकी पूरी तरह से परख करनी की जिम्मेदारी हमारी है, , इसलिए हम तुम्हें लुभाने के लिए आए थे...." 
विवेक हैरानी भरी आवाज में कहता है....." लेकिन तुम्हें कैसे पता मैं महाकाल के मंदिर जा रहा हूं...."
सुहानी हंसते हुए कहती हैं...." मुझे ये भी पता है तुम्हारा प्रेम इस समय किसी पिशाच की कैद में है , और वो कन्या कोई साधारण नहीं , हमारी प्राणदात्री है , वनदेवी  , .... हमारे महाराज की आज्ञा से हमने तुम्हें इस प्रेमजाल में फंसाने की कोशिश की लेकिन तुम्हारे स्वच्छ प्रेम ने हमारा वशीकरण तोड़ दिया , ..."
मंदिनि लेप लाकर सुहानी को देती है और सुहानी वो लेप विवेक को देती हुई कहती हैं....." इसे अपने घांव पर लगा वो..."
 विवेक उस लेप को लेकर कहता है...." लेकिन तुम इतनी सारी बातें कैसे पता है...."
" हम तुम्हारी तरह साधारण इंसान नहीं है , हमारे पास कुछ विशेष शक्तियां हैं जिससे हम अपना रुप बदल सकती है और किसी के भी मन की बातों को सुन सकती है....."
विवेक उसे सवालिया नज़रों से उसे देखते हुए कहता है....." अगर तुम इंसान नहीं हो तो कौन हो....?...."
 
.................to be continued...............