🌌 एपिसोड 45 — “जब कलम ने वक़्त को लिखना शुरू किया”
(सीरीज़: अधूरी किताब)
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1. समय की दहलीज़ पर
रात के बारह बज चुके थे।
दिल्ली के आसमान में हल्की धुंध थी — लेकिन उस धुंध में भी एक नीली चमक छिपी थी।
नेहा शर्मा की टेबल पर वही पुरानी “रूह की कलम” रखी थी।
वो अब शांत नहीं थी।
उससे निकलती रोशनी अब किसी दूसरी दिशा में बह रही थी —
जैसे वक़्त की रेखाओं को चीरती जा रही हो।
नेहा की उँगलियाँ थरथरा रही थीं।
कलम जैसे बोल रही थी —
> “अब मैं बीते वक्त को नहीं, आने वाले वक्त को लिखूँगी।”
नेहा ने हैरानी से पूछा,
“मतलब… तू भविष्य लिख सकती है?”
> “नहीं, मैं वही लिखती हूँ जो होना तय है —
बस इंसान उसे अभी देख नहीं सकता।”
नेहा की साँसें थम गईं।
कलम अपने आप उड़कर पन्ने पर उतरी और खुद लिखने लगी —
> “साल 2030 — जब शब्द वक़्त बन जाएंगे…”
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2. भविष्य का पहला पन्ना
नेहा की आँखों के सामने नीली रोशनी का भंवर बना।
वो खुद को किसी और समय में खड़ी पाई।
सामने एक विशाल स्टूडियो था —
दीवारों पर डिजिटल स्क्रीनें टंगी थीं,
हर स्क्रीन पर वही शब्द चमक रहे थे —
“Written by The Soul Itself.”
एक लड़की टेबल पर झुकी थी — आर्या।
वो अब बड़ी हो चुकी थी, लगभग पच्चीस की।
उसके हाथ में वही कलम थी —
और उसकी आँखों में वही चमक जो कभी नेहा में थी।
नेहा ने काँपती आवाज़ में कहा,
“आर्या… तू यहाँ कैसे?”
लड़की मुस्कुराई —
> “मैं तो हमेशा यहाँ थी, बस तूने मुझे देखा नहीं।”
> “अब कहानी मेरे वक्त की नहीं रही, नेहा…
अब ये समय खुद कहानी का किरदार है।”
कलम हवा में उठी और स्क्रीन पर अपने आप टाइप हुआ —
> “TIME IS NOW WRITING ITSELF.”
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3. वक़्त की साँसें
नेहा ने महसूस किया कि उसके चारों ओर सब कुछ ठहर गया है —
घड़ी की सूइयाँ, हवा की लहरें, और यहाँ तक कि उसकी धड़कन भी।
सिर्फ़ एक चीज़ चल रही थी — कलम।
वो हर पन्ने पर कुछ ऐसा लिख रही थी जो अभी हुआ ही नहीं था।
> “2027 — जब दरभंगा की हवेली फिर खुली।”
“2028 — जब आत्माएँ अपने लेखकों को पुकारेंगी।”
“2029 — जब नेहा अपनी ही कहानी में समा जाएगी।”
नेहा ने चीखकर कहा —
“रुक जा! मैं ये सब नहीं लिखना चाहती!”
> “लेकिन तू खुद कहानी है, नेहा,”
“तू जिस लम्हे को रोकना चाहती है — वो लम्हा तेरे शब्दों से ही बना है।”
वक़्त की हवा ने उसके चारों ओर घेरा बना लिया।
उसने देखा —
हर शब्द अब एक चमकते हुए घड़ी के टुकड़े में बदल रहा है।
हर टुकड़ा बीते और आने वाले लम्हों को जोड़ रहा था।
वो समझ गई —
अब वो “लेखक” नहीं रही।
वो “वक़्त की कलम” बन चुकी थी।
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4. समय का जाल
उधर आर्या ने एक नई डायरी खोली —
उसका नाम लिखा — “कालचक्र — The Circle of Time.”
उसने पहला वाक्य लिखा —
> “जब लेखक समय बन जाए…”
तभी उसकी डायरी के पन्ने अपने आप पलटने लगे।
हर पन्ने पर नेहा की लिखावट उभर आई —
वो बातें, जो नेहा ने कभी नहीं लिखीं थीं,
पर भविष्य में लिखने वाली थी।
> “आर्या, जब मैं मिट जाऊँगी, तू मुझे शब्दों में पाना।”
“वक़्त के हर मोड़ पर, मेरा नाम किसी कलम की नोक पर ज़रूर होगा।”
आर्या की आँखें भर आईं।
उसने आसमान की ओर देखा —
और नीली हवा में नेहा का चेहरा झलक गया।
वो बोली —
“नेहा, तू गई नहीं… तू वक़्त बन गई है।”
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5. रूह की घड़ी
रात के तीन बजे दिल्ली के घड़ी टॉवर ने तीन बार घंटी बजाई।
पर हर बार के साथ हवा में नीली रेखा फैलती गई।
शहर की डिजिटल घड़ियाँ रुक गईं।
समय ठहर गया।
लेकिन मोबाइल स्क्रीन पर एक लाइन उभरी —
> “Written by The Soul — Episode 45 is live.”
लोगों ने देखा — वो एपिसोड उन्होंने कभी लिखा ही नहीं था।
फिर भी उनके नाम से प्रकाशित हुआ था।
हर लेखक के मन में वही सवाल गूँजा —
“कौन लिख रहा है हमारी कहानियाँ?”
और तभी हवा में फुसफुसाहट आई —
> “वक़्त।”
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6. जब वक़्त ने खुद को पढ़ा
नेहा की रूह अब हवेली और दिल्ली दोनों में नहीं थी —
वो “बीच” में थी,
जहाँ शब्द और समय एक-दूसरे में घुल जाते हैं।
उसने देखा —
वो खुद अपनी लिखी कहानी पढ़ रही है,
और उसी पल वो कहानी खुद उसे लिख रही है।
एक अनंत चक्र।
कहानी जो कभी खत्म नहीं होती।
कलम ने अब आखिरी बार लिखा —
> “अब कोई लेखक नहीं, कोई पाठक नहीं —
सिर्फ़ वक़्त है, जो खुद को शब्दों में समझने की कोशिश कर रहा है।”
नेहा मुस्कुराई।
उसने नीले आसमान की ओर देखा —
और उसमें समा गई।
घड़ी ने फिर से चलना शुरू किया।
लेकिन उसकी सूइयों पर अब स्याही के धब्बे थे।
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7. अंतिम पंक्तियाँ
कुछ हफ्तों ब पर एक नई कहानी प्रकाशित हुई —
“वक़्त की कलम — लेखक: Unknown”
लोगों ने पढ़ा और लिखा —
> “ये कहानी जैसे हमारे अंदर से निकल रही हो…”
हर स्क्रीन पर वही नीली चमक तैर गई।
हर दिल में वही एहसास —
कि शायद हम सब किसी अनदेखे लेखक की किताब में किरदार हैं।
और कहीं, किसी आयाम में,
नेहा, आर्या और “रूह की कलम” अब भी लिख रहे हैं —
वो पन्ने जो अभी भविष्य में आने वाले हैं।
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🌙 एपिसोड 45 समाप्त
🕯️ आगामी एपिसोड 46 — “वक़्त की कलम और अधूरी रूह”
जहाँ समय के परे जाकर,
नेहा की रूह एक नई आत्मा से टकराएगी —
जो कहेगी:
> “मैं तेरे शब्दों से नहीं, तेरी ख़ामोशी से जन्मी हूँ…”