एक श्रृँगार का गीत आपकी नज़र
गीत
कह रहा है भ्रमर बनके मन वावरा,
प्रीत के कुछ सुमन अब खिला जाईए,,
मन के मंदिर का स्थान सूना पड़ा,
प्रेम की बनके मूरत समा जाईए,,
चाँदनी जब गगन में चमकने लगे,
याद आता है तब मुझको मुख आपका,,
मन के कोने से आवाज आती है तब,
मेरा दुख आपका , मेरा सुख आपका,,
मन मरुस्थल मेरा, है बिछाए नयन,
प्रेंम की आप गंगा बहा जाईए,,
जाने लम्वित है कब से प्रणय याचिका,
मै लजाता रहा और कह ना सका,,
वेदना झेल कर मौन साधे रहा,
था नयन में समन्दर जो बह ना सका,,
आज विश्वास है, ये मेरी आस है,
प्यास अधरो की मेरी मिटा जाईए,,
वेदना के जो मनके मिले हैं मुझे,
प्रेंम धागे में उनको पिरोता रहा,,
मेरे अधरों की मुस्कान खोई नहीं,
जब हृदय में विकट दर्द होता रहा,,
गीत मेरे बने प्रीत की इक डगर,
साथ चल कर तनिक गुनगुना जाईए,,
रूप ऐंसा दिया ईश ने आपको,
ब्रम्हचारी का मन डगमगाने लगे,,
कर दो अधरों से तुम अपनी जादूगरी,
एक मुर्दे में भी जान आने लगे,,
कामिनी, यामिनी, सुनलो गजगामिनी,
दामिनी बनके जौहर दिखा जाईए,,
शब्द "रावत"ने गीतों में ढाले हैं जो,
आपके रूप का मात्र आभास है,,
अपना घूंघट हटा कर तनिक देख लो,
चक्षुओं में भरी प्यास ही प्यास है,,
गीत की जीत हो, प्रीत ही प्रीत हो,
रीत मनमीत ऐंसी चला जाईए,,
मन के मंदिर का स्थान सूना पड़ा,
प्रेंम की बनके मूरत समा जाईए।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत
भोपाल
7999473420
9993685955
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