धरती पर तो वायरस लग गया...चलो चांद पर चलें!
लिखने के बस दो ही ढंग।
या तो ख़ूब पढ़ो, ख़ूब देखो, ख़ूब सोचो... और फ़िर दो लफ़्ज़ अपने भी लिख दो!
...नहीं तो लिखते जाओ, लिखते जाओ, लिखते जाओ और अंत में अपना पुलंदा पाठक के हाथ में देकर कहो - लो, दो शब्द इसमें से छांट लो!
अर्थात कहानी तो सबकी दो ही लफ़्ज़ों की है।
तुलसी कहे राम की, मीरा कहे श्याम की!
वात्स्यायन काम की, प्रेमचंद अवाम की!!