बचपन के दिन भी क्या दिन थे
जिसमें
हम हर किस्से कहानियों पर यकीन कर लेतें थे
हम सयाने क्या हुए
अब हर कीसी पे
और हर कीसी की बात पर संदेह होता है
#रखना चाहते
खुद को उस बचपन में
पर क्या करें
ये दुनिया वाले हमे हमारा सयानापन याद दिला देतें है
... ✍️वि. मो. सोलंकी "विएम"
#रखना