अकेले में कोहराम सा क्यों लगता है।
कोई टूटा हुआ सपना मुझे चुभता है।।
यहा पर वीरानी देखी मेने मानवता की।
हर घर से उसका जनाजा निकलता है।।
गिधो को मिलता नाजुक मास यहाँ पर।
भुखमरी में जब छूट बच्चा मरता है।।
गरीबो के मसीहा बन गये बड़ी कोठीदार।
गरीब का ज़ोपडा अभी भी सुलगता है।।
आंसू की पगडंडी देख कर आंसू न आये।
वो बोला मजदूर तू इतना क्यों मचलता है।।
मेरी कविता कोई अफ़साना नही आंख का।
मनोज ने जो दिखा है वो ही यह लिखता है।।
मनोज संतोकि मानस