स्त्री क्या है 👉👇
👉संघर्ष की प्रतिमूर्ति है,गृहस्थाश्रम की पूर्ति है।
भावों की अभिव्यक्ति है,ईश्वर की बहिरंगा शक्ति है।
वेदों की जननी है,कर्तृ है धात्री-दिवस की रात्री है।
सुःशीला-उरमीला है,उस मूर्तिकार की शीला है।
व्यक्तित्व की ऊंचाई का अनुस्वार है, करतार है।
शुक्लपक्ष की चांदनी है,उपमारहित मधुबनी है।
रागों की रागिनी है,जीवन संगिनी है।
कोमलाङ्गी-शुभांङ्गी है,मृदुला-शिवांगी है।
स्वाहा औ स्वधा है,जीवन प्रतिस्पर्द्धा है।
मानस की श्रद्धा है,डमरू निनाद है।
तेजोमय नारसिंही,उर्वशी रूपवान है।
सिध्दहस्त स्वामिनी है,दमकती दामिनी है।
दहकती अंगार है, प्राकृत श्रृंगार है।
पौराणिक शतरूपा है,कारणीं संहार है।
चहुँ दिश औ कलप प्रति,तुम्हरी जय-जयकार है।
सनातनी_जितेंद्र मन