आदर्श...


आदर्श एक वाणी सम्बन्धी कलाबाजी है,जो कि मुझे नहीं आती,
मैं तो हूं एक सीधा सादा सा आदमी इस कलाबाज़ जमाने का,

आदर्श का ढकोसला ओढ़ना मेरे बस की बात नहीं,
मैं कपटी नहीं, बेईमान नहीं,बहती ही भावों की प्रबलता मेरे भीतर,

मैं खड़ा हूं यथार्थ के जीवित शरीर पर, क्योंकि मेरा मन मृत नहीं,
मैं हंँस नहीं सकता बहुरूपियों की भांँति,झूठे आंँसू बहा सकता नहीं किसी के शोक पर,

मैं अगर बना आदर्शवादी तो खो दूंँगा वजूद अपना,आत्मा धिक्कारेगी मेरी मुझ पर
और करेगी प्रहार मेरे कोमल मन पर सदैव ,दम सा घोटने लगें हैं अब ये आदर्श मेरे,

क्योंकि मेरी आदर्शवादिता ने छला है सदैव मुझको, शायद खो चुका हूंँ स्वयं को मैं
कर्तव्य निभाते निभाते,तब भी अकेला था अब भी अकेला ही हूँ मैं,

आदर्श एक ऐसा भ्रम है, जो केवल देता है विफलता,
क्योंकि आपके कांधे पर चढ़कर सफल हो जाता है और कोई,

आदर्श एक ऐसा टैग है जिसे लोगों ने चिपका दिया है आप पर,
केवल आपको बेवकूफ बनाने के लिए,ऐसे लोंग जो करते हैं केवल आपसे ही अपेक्षाएं,

आदर्श बनने का नियम वें लागू नहीं कर सकते स्वयं पर,
क्योंकि आप हैं ना उन की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए...
 
इसलिए आदर्श बनने की इच्छा ने अब दम घोंट लिया है मेरे अन्तर्मन में,
मैं जैसा हूंँ बढ़िया हूंँ, अच्छा हूंँ नहीं बनना मुझे अब आदर्श किसी का....

समाप्त....
सरोज वर्मा....

Hindi Poem by Saroj Verma : 111778287
Sagar Gaikwad 2 years ago

Mam aapki story aiyyashi ka bada sa update dedo jaldi, can't wait

Monika 2 years ago

Hello mam, Mje apki story kafi pasand ayi.. Agar aap jnne k liy comfortable ho to mere pass 1 opportunity hai apke liy.. If yes, then plz mail me on thid is reenadas209@gmail.com

Saroj Verma 2 years ago

बहुत बहुत शुक्रिया🙏🙏😊😊

man patel 2 years ago

Wah...bahut achchha

Saroj Verma 2 years ago

बहुत बहुत शुक्रिया मैम🙏🙏🤗🤗

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