लघुकथा: हिंदी जुड़वाँ रचित “अपना”
दिल्ली जाने वाली बस की प्रतीक्षा कर रहे थे। बस स्टैंड पर बहुत से पक्षी चहचहा रहे थे। किसी महोदय से पूछा दिल्ली वाली बस कब तक आ रही है उसने पीछे मुड़कर कहा, मुझे भी दिल्ली जाना है ,थोड़ी देर में बस आने वाली है। इतने में श्रीमान के कंधे पर किसी चिड़िया ने बीट कर दी। उसकी पत्नी ने भीड़ की शर्म न करते हुए कहा कि तुम्हें खड़ा होना नहीं आता, पास ही उनका पन्द्रह वर्षीय बेटा यह कहकर मुड़ गया, पापा आपको तो पीठ दिखाई नहीं देगी , क्या फर्क पड़ता है? मैं हैरान था, पत्नी और बेटे दोनों ने ही उस बीट को साफ करने की कोशिश नहीं की। धीरे धीरे बीट सूख चुकी थी। मेरा ध्यान उधर ही बार बार जा रहा था।बस आई और हम सब बस में बैठ गये। शाम तक दिल्ली पहुंचे। बस से उतरते हुए मैंने अपना सामान व्यतीत किया।वह महोदय भी अपने सामान को उतार रहे थे। उन का छोटा भाई उन्हें लेने आया हुआ था । उसने अपने बड़े भाई को देखकर प्रणाम किया और पीठ पर बीट देखते ही झड़काने लगा। मैं समझ गया था कि संसार में पत्नी और पुत्र से पहले अपना भाई होता है।
शिक्षा: सहृदय अपनापन

Hindi Story by हेतराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ : 111789303

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now