मेरे नाम का तात्पर्य ही ‘भोर’ है अर्थात् प्रातःकाल का वह समय जब धवल अंबर सूर्य की लालिमा में रँगा हुआ बहुत ही मनोहारी लगता है ।
पंछी अपने नीड़ की कनखियों से झाँकते हुए कलरव करने लगते हैं ।
स्वच्छंद गगन में उन्मुक्त विचरण करने को तत्पर वे पंछी बस अपने पंखों पर विश्वास करके ऊँची उड़ान भरते हैं ।
ठीक वैसे ही मैं भी ‘एक उन्मुक्त पंछी’ हूँ जो अपने हौंसलों की उड़ान भरने के लिए तत्पर है ।