मैं और मेरे अह्सास

माँ के बेटे को बद्दुआ नहीं लगती हैं l
कभी ज़माने की हवा नहीं लगती हैं ll

हमारे बेह्तरीन मुस्तकबिल के लिए l
अपनों ने दी हुईं सज़ा नहीं लगती है ll

मुहब्बत मे जरा सी छेड़खानी हुई l
बातों मे रूठना अदा नहीं लगती है ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111804534

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