आज क्लास में बैठी थी....खिड़की के पास लगे बबूल के पेड़ पर एक बया पक्षी अपना घोंसला बना रहा थी। वह बार बार अपनी मजबूत सी चोंच में कुछ तिनके लाता और बड़ी ही सुंदरता से उस घोंसले को सजाता... लगता जैसे कढाई बुनाई कर रहा है। बड़ी ही कुशल कारीगरी एक एक तिनके की सिलाई कर उसने प्यारा सा घोंसला बनाया।
जब उसने अपना सुंदर सा घोंसला बना दिया तो एक और बया पक्षी आया... वह सावधानी से उस घोंसले का निरीक्षण करने लगा। बार बार वह उस घोंसले के अंदर जाता कुछ अनुमान लगा वापस बाहर आता और ध्यान से कुछ हिसाब किताब करता...मानो वह रहने और आने जाने का सारा गणित लगा रहा हो।
इस घटना को बहुत ध्यान से देखने पर समझ आया कि घोंसला बनाने वाला बया पक्षी नर था और उसने बड़ी सुंदरता से मादा बया के लिए घर बनाया था जिसमे उसके बच्चे आराम से रह सके और निरीक्षण करने वाला पक्षी मादा थी।
इस घटना ने मुझे गहरे चिंतन में डाल दिया।
क्यों प्रकृति ने घर बनाने की जिम्मेदारी बस नर को दी है?क्यों ये जिम्मेदारी मादा के हिस्से नही आती?
क्योंकि प्रकृति जानती है...क्या सही हैं। प्रकृति ने पुरुष को कठोर बनाया ताकि उसके मजबूत कंधे अपने परिवार के लिए एक मजबूत छत और दीवार बन सके ।कही एक लाइन पढ़ी थी
जब पुरुष ने कलम उठाई तो उसने स्त्री को सुशील अन्नपूर्णा विनयपूर्ण देवी लिखा और जब स्त्री ने कलम उठाई तो उसने पुरुष को धोखेबाज चालबाज फरेबी लिखा
दिन रात मेहनत कर के जब वो घर बनाता है...अपने सपनो का महल तब तक अपने परिवार को कोई आंच तक नही आने देता।अपने सुख छोड़ बस अपने परिवार के सुख में लगा रहता है।
मुझे लगता है सिर्फ स्त्री ही नहीं ...पुरुष भी उतनी ही इज्जत , तारीफ, सहानुभूति का हकदार है...
-ArUu