कैसे रहूंगी

मां मैं कैसे रहूंगी
बना तो दिया तूने मुझे ठोस
पर फिर भी मैं कैसे रहूंगी
सब जान के तूने बियाहा है
पर फिर भी अंजान है वो
ना जाने तेरे बिना कैसे रहूंगी
तुझसे दूर और उसके साथ
जो पास होके भी ना लगता पास
सारी उम्र मैं कैसे रहूंगी
ज़माना सच में बहुत खराब हैं
अपने ही मतलबो के लिए साथ हैं
तेरे जैसा दिल मैं कहां से लाऊंगी
ना जाने उसके संग कैसे रहूंगी


साक्षी ✍️

Hindi Poem by Sakshi : 111860234

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