मैं पतझर मैं बेठि राह teri तक रही हूँ ....
barsat तो आ गई पर ,aahat teri sun rhi हूँ ....
baraste badal भी मौसम गर्मी का le आया पर मैं अभी भी बेठि
पतझर के पत्ते गिन रही हूँ .....

कई गुजरे मौसम , कई barsaate गुजर गई ,.....
अब तो गिर गिर कर मैं भी सम्भल गई .....
सकल बदली तो बदली meri ,
पर ahat भी teri badal गई ......

jhar jhar के पत्ते अब सूखने को आ गए है ......
garaj garaj के badal भी अब barasne को आ गए है .....
ahat तो हुई है किसी के आने की ,
लगता है अब सर्दियों के दिन भी आ गए हैं ........

Hindi Poem by Shilpi : 111866065

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