सर राह थे लाश के दो टुकड़े
सर इधर पड़ा था धड़ उधर पड़ा था
खून जो तेज़ी से बह रहा था
बिस्तर-ए-ख़ाक खून से तर पड़ा था
पूछा कौन बदबख़्त ज़लील है ये
ग़लती इतनी संगीन जो कर पड़ा था
क़ातिल पास था बोला निसार है ये
मैं हूँ इश्क़, ये मुझ से लड़ पड़ा था
💕
- Umakant