ये मन के बवाल का कुछ यू सवाल है........
न जाने अपनों के कारण ही परेशान है......
बहुत समझाया था मैंने इसको ........
पर क्या करे इसको दूसरों पे अभिमान है.....
न जाने कब टूट कर बैठ जाता है.....
दूसरों के रवैये से.......
फिर खुद ही टूट कर खुद को कोसने लग जाता है.......
अब थोड़ा तो समझदार हो रहा है.......
किसी की परवाह से पहले ही मुझे समझने लग जाता है.....
अपने टूटे हुए टुकड़ों को दिखाने लग जाता है......
और कहता है कि बस अब और मत दुखाओ इसको .....
वरना ये तुम्हारे लायक भी नहीं रह जाएगा......
बस आज कुछ यू ही मन ने सवाल किया है.......
बस आज कुछ यू ही मन ने सवाल किया है.......