आज की माँ
दिल्ली की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में मीरा रहती थी - एक सिंगल मदर, जिसने अपने बेटे आरव के लिए पूरी दुनिया छोड़ दी थी। हर सुबह वो पाँच बजे उठती, टिफिन बनाती, यूनिफॉर्म प्रेस करती और आरव को स्कूल भेजकर खुद ऑफिस निकल जाती।
मीरा कोई पारंपरिक माँ नहीं थी जो चौखट पर खड़ी इंतज़ार करती। वो पैंटसूट पहनती, मीटिंग्स करती और कोड लिखती थी। लेकिन उसका दिल, हर माँ की तरह, अपने बच्चे के लिए ही धड़कता था।
एक दिन आरव उदास घर आया। उसकी आँखों में आँसू थे।
"माँ, स्कूल में सब कहते हैं कि तुम बाकी मम्मियों जैसी नहीं हो। तुम स्कूल इवेंट्स में नहीं आती, हर दिन खाना नहीं बनाती, और हमेशा काम में रहती हो।"
मीरा मुस्कुराई, उसके पास बैठ गई और उसका चेहरा अपने हाथों में लिया।
"बेटा, आज की माँ सिर्फ रसोई तक सीमित नहीं है। वो बाहर जाकर भी तुम्हारे लिए लड़ती है, तुम्हारे सपनों को हकीकत बनाने के लिए। मैं काम इसलिए करती हूँ क्योंकि मैं तुम्हें सबसे अच्छा देना चाहती हूँ।"
आरव ने मीरा को कसकर गले लगाया।
उसे अब समझ आ गया था -
आज की माँ वही है जो हर चुनौती के बीच भी अपने बच्चे के लिए ढाल बनकर खड़ी रहती है — चुपचाप, मज़बूती से और पूरे प्यार के साथ।
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