महाशक्ति
लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय मोहल्ले में रहने वाली नीलम एक स्कूल शिक्षिका थी। उम्र लगभग 38 साल, दो बच्चों की माँ, और पति एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटेंट। बाहर से सब कुछ सामान्य लगता था — सुबह बच्चों को स्कूल भेजना, फिर खुद स्कूल जाना, शाम को खाना बनाना, बच्चों की पढ़ाई देखना — वही रोज़मर्रा की जिंदगी।
लेकिन इस सामान्य ज़िंदगी के पीछे छिपी थी एक संघर्षरत महिला की असाधारण कहानी।
नीलम के पति राकेश शराब का आदी था। गुस्सैल स्वभाव और शक करने की आदत ने नीलम की जिंदगी को एक बंद कमरे जैसा बना दिया था। आए दिन ताने, चिल्लाना, हाथ उठाना — ये सब नीलम के जीवन का हिस्सा बन चुके थे। मोहल्ले में सब जानते थे, लेकिन "ये घर का मामला है" कहकर सब चुप रहते।
कई बार नीलम ने सोचा कि वह सब कुछ छोड़ दे, बच्चों को लेकर मायके चली जाए, लेकिन फिर बच्चों का भविष्य, समाज की बातें, और आर्थिक असुरक्षा उसे रोक देतीं।
एक दिन, स्कूल में एक वर्कशॉप हुआ — "घरेलू हिंसा पर जागरूकता"। वहां एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा,
"चुप रहना भी अपराध को बढ़ावा देना है। हर बार जब आप सहती हैं, आप अपने साथ-साथ अगली पीढ़ी को भी यही सहना सिखा रही होती हैं।"
उस दिन नीलम देर तक सोचती रही। रात को जब राकेश ने फिर से शराब के नशे में उसे अपशब्द कहे और धक्का दिया, तो पहली बार उसने राकेश की आंखों में आंखें डालकर कहा —
"बस बहुत हुआ। अब और नहीं। अगर तुम नहीं सुधरे, तो मैं पुलिस में शिकायत करूँगी। और ये वादा है — अपने बच्चों को डर नहीं, हिम्मत सिखाकर बड़ा करूँगी।"
राकेश हँस पड़ा। लेकिन जब अगले दिन नीलम ने अपने स्कूल की मदद से एक NGO से संपर्क किया, और पहली बार पुलिस से औपचारिक शिकायत की, तो उसका डर जाता रहा। मोहल्ले के लोग चौंके, लेकिन नीलम को कोई परवाह नहीं थी।
उसे समझ आ गया था —
"महाशक्ति कोई देवी नहीं जो आसमान से उतरे — वो हर उस औरत के अंदर है जो चुप्पी तोड़ती है, जो अपने आत्म-सम्मान के लिए खड़ी होती है।"
नीलम ने न सिर्फ अपनी जिंदगी में बदलाव लाया, बल्कि स्कूल में लड़कियों को आत्मरक्षा, कानूनी अधिकार और आत्म-सम्मान के पाठ पढ़ाने शुरू किए। धीरे-धीरे वह अपने शहर में महिलाओं की आवाज़ बन गई।
नीलम जैसी महिलाएँ ही आज की असली 'महाशक्ति' हैं — जो दर्द से नहीं, साहस से इतिहास लिखती हैं।