आजकल मेरे कई शुभचिंतक मुझसे पूछते हैं कि पहले मेरे लेखन में सकारात्मकता हुआ करती थी लेकिन अब नहीं, ऐसा क्यों ?
मैं उनसे केवल इतना कहना चाहती हूँ - “एक भरे हुए चाय के प्याले में और चाय डालने से चाय उँडलकर बाहर ही आनी है इसलिए अपनी चाय का ज़ायका खराब क्यों करना !
उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’