श्रवण कुमार की कथा
श्रवण कुमार भारतीय संस्कृति और रामायण काल की एक ऐसी पवित्र कथा का पात्र है, जो "माता-पिता की सेवा और आज्ञाकारिता" का प्रतीक माना जाता है। उसकी कहानी संतानों के लिए आदर्श है।
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जन्म और स्वभाव
श्रवण कुमार का जन्म एक ग़रीब किन्तु धर्मपरायण परिवार में हुआ था। उसके माता-पिता अंधे थे। श्रवण बचपन से ही अत्यंत सेवा भावी, विनम्र और धर्मनिष्ठ था। उसका सबसे बड़ा उद्देश्य अपने माता-पिता की सेवा करना और उन्हें सुख देना था।
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तीर्थयात्रा की इच्छा
जब उसके माता-पिता वृद्ध हो गए, तब उन्होंने अपने बेटे से कहा —
“बेटा, अब हमारा जीवन अंतिम पड़ाव पर है। मरने से पहले हम चारों धाम और तीर्थ स्थानों की यात्रा करना चाहते हैं।”
श्रवण कुमार ने प्रेमपूर्वक उत्तर दिया —
“माता-पिता! आपकी यह इच्छा मेरे लिए आज्ञा है। मैं आपको तीर्थयात्रा अवश्य कराऊँगा।”
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कंधे पर पालकी यात्रा
क्योंकि माता-पिता अंधे और वृद्ध थे, श्रवण ने दो टोकरियाँ बाँस की एक लंबी बल्लियों से बाँधकर कंधों पर पालकी बना ली। एक टोकरी में माँ और दूसरी में पिता को बिठाकर, वह स्वयं पैदल ही तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़ा।
वह दिन-रात अपने माता-पिता को ढोकर नदियों, जंगलों और पहाड़ों से गुजरता रहा।
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घटना – दशरथ द्वारा वध
एक बार श्रवण अपने माता-पिता को लेकर जंगल में किसी नदी (सरयू नदी) के किनारे पहुँचा। वहाँ उसके माता-पिता को प्यास लगी।
श्रवण जल लेने के लिए मटकी लेकर नदी किनारे गया। संयोग से उसी समय अयोध्या के राजा दशरथ शिकार खेलने निकले थे। उन्हें जल भरने की ध्वनि सुनाई दी। दशरथ को भ्रम हुआ कि कोई जंगली पशु जल पी रहा है। उन्होंने निशाना साधकर बाण चला दिया।
बाण लगते ही श्रवण घायल होकर तड़प उठा।
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अंतिम शब्द
राजा दशरथ वहाँ पहुँचे तो देखा कि यह कोई पशु नहीं बल्कि एक ब्रह्मचारी युवक है। उन्होंने पछतावा करते हुए श्रवण से क्षमा माँगी।
श्रवण ने कहा —
“राजन्! मैंने अपने माता-पिता को नदी किनारे बैठाया है। वे अंधे हैं और मेरी बाट जोह रहे हैं। कृपया उन्हें जल पहुँचा दीजिए और मेरी मृत्यु का समाचार भी धीरे-धीरे दीजिए, क्योंकि अचानक सुनने पर उनका हृदय टूट जाएगा।”
इतना कहकर उसने प्राण त्याग दिए।
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माता-पिता की मृत्यु और शाप
दशरथ ने करुणा से भरे मन से श्रवण के माता-पिता को जल दिया और सारा वृतांत बताया।
श्रवण के माता-पिता ने यह सुनते ही अत्यंत दुख में प्राण त्याग दिए। मरते समय उन्होंने दशरथ को शाप दिया —
“जिस प्रकार आज हम अपने पुत्र-वियोग में तड़प रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हें भी पुत्र-वियोग का दुःख सहना पड़ेगा।”
यह शाप आगे चलकर राम के वनवास और दशरथ की मृत्यु का कारण बना।
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शिक्षा
श्रवण कुमार की कथा हमें सिखाती है कि —
माता-पिता की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं।
माता-पिता की इच्छा पूरी करना संतान का सबसे बड़ा कर्तव्य है।
किसी भी कार्य में जल्दबाज़ी और बिना सोचे-समझे कदम उठाने से अनर्थ हो सकता है।