✍️ Drishti Diaries – Part 2: अनजानी सी मुलाक़ात
"Main Drishti hoon... aur shayad kal jo हुआ, usse main abhi तक भूल नहीं paayi."
Library wala din bas ek इत्तेफाक था… ऐसा main soch रही थी.
Lekin aaj jab college के गलियारे se गुज़र रही thi, mujhe वही चेहरा फिर दिखा।
वो सीढ़ियों पर बैठा था, हाथ में वही किताब thi jo उसने mujhe लौटाई थी।
मैं ठहर गई… शायद usne महसूस किया, क्योंकि उसने धीरे से सिर उठाया और मुस्कुराया।
"तुम्हें किताबें सच में पसंद हैं… या बस यूँ ही उठा लेती हो?" उसने हल्की सी शरारत से कहा।
मुझे समझ नहीं आया kya जवाब दूँ। बस हँसकर निकल जाना चाहती थी, लेकिन कदम जैसे रुक गए।
"कभी-कभी किताबें… हमें वो बता देती हैं jo लोग सीधे-सीधे नहीं कह पाते," मैंने हिम्मत करके कहा।
वो कुछ पल चुप रहा… और फिर बोला:
"तो आज से… तुम मुझे किताब की तरह पढ़ सकती हो।"
मेरे दिल की धड़कन सच में तेज़ हो गई। ये कैसा इंसान है? पहली मुलाक़ात से ही ऐसे बातें करता है…
क्या ये बस मज़ाक tha, ya सच?
वो उठकर मेरे पास आया और बोला:
"वैसे, मेरा नाम आर्यन है। और शायद तुम्हें अब तक ये जान लेना चाहिए था।"
उसका हाथ आगे बढ़ा… और मेरी डायरी का ये दूसरा पन्ना वहीं से शुरू हुआ।