"उम्मीद की रौशनी"
अँधेरे सफ़र में जब राह खो जाती है,
थकान से हर उम्मीद सो जाती है।
तभी एक नन्हीं सी किरण मुस्कुराती है,
दिल कहता है — "ज़िंदगी फिर से खिल जाती है।"
टूटे सपनों के बीच भी चमक है कहीं,
जैसे बंजर ज़मीन पर हरियाली हो यहीं।
जो थाम ले उस रौशनी की डोर को,
वो पा ले मंज़िल अपने हर शोर को।
उम्मीद वो चिराग़ है, जो बुझता नहीं,
आँधियों से भी डरकर झुकता नहीं।
ये सिखाती है हर बार गिरकर उठना,
और आँसुओं में भी मुस्कान ढूँढना।
तो चाहे कितने भी तूफ़ान आएं ज़िंदगी में,
मत खोना भरोसा अपनी बंदगी में।
क्योंकि अँधेरों को हराती है वही किरण,
जो दिल से कहे — "कल फिर होगा सुनहरा सवेरा।"
___दिल से कलम तक ___
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प्रेमलता आर्मों
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