🌸 Poem: पहली बारिश की याद
पहली बूंद जैसे ही गिरी ज़मीं पर,
मिट्टी की खुशबू ने दिल को छू लिया भीतर।
आँखें बंद करते ही बीते साल लौट आए,
बचपन की गलियों में फिर वही रंग छा गए।
कभी हम कागज़ की नाव बना कर,
बरसाती पानी में उसे तैराते।
दोस्तों के संग भागते-दौड़ते,
खुद भीगते, हँसते और खिलखिलाते।
माँ की आवाज़ दूर से आती—
“रुक जाओ! भीग गए तो बुखार हो जाएगा।”
पर उस डाँट में भी प्यार छुपा होता,
जैसे बारिश का संगीत दिल में समा जाता।
फिर जवानी आई, मौसम वही रहा,
लेकिन एहसासों का रंग नया चढ़ा।
कॉलेज की कैंटीन, पकौड़ों की खुशबू,
चाय की प्याली और दिल की धड़कनों का राग शुरू।
वो पहली बारिश, जब नज़रें मिलीं,
भीगे हुए लम्हों में मोहब्बत पली।
बारिश की हर बूंद ने नाम लिखा,
दिल के कागज़ पर एक ख्वाब खिला।
कभी छत पर खड़े होकर आसमान निहारा,
कभी भीगी सड़कों पर हाथों में हाथ थामा।
हर साल पहली बारिश हमें याद दिलाती,
कि प्यार भी बारिश की तरह सबकुछ भिगो जाती।
आज बरसों बाद भी जब पहली बूंदें गिरती हैं,
दिल फिर उसी कहानी में लौटकर सिहरती है।
हथेली में पकड़ती हूँ वो नन्हीं-सी बूंद,
मानो उसमें छुपा हो मेरा पूरा बचपन और सुकून।
पहली बारिश आज भी मेरे लिए दुआ है,
जिसमें माँ की डाँट भी है, दोस्तों की हँसी भी है,
और उस अनकहे प्यार की याद भी है,
जो मेरे दिल में अब तक ज़िंदा है।
शायद इसी लिए—
पहली बारिश कभी बूढ़ी नहीं होती,
वो हमेशा दिल की किताब का पहला पन्ना बनी रहती है।
_______दिल से कलम तक ______
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प्रेमलता आर्मों
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